चाहे दोनों देशों की ‘राजनीति’ की अलग-अलग जो भी तात्कालिक मांग हो, पर कोसी की धार के धागे ने भारत और नेपाल की तकदीरों को आपस में मजबूती से बांध दिया है। संभवतः इसी को ध्यान में रखते हुए अन्य संधियों के साथ-साथ पचास के दशक में इस नदी के बारे में भी भारत और नेपाल के बीच संधि हुई थी और कोसी योजना की नींव रखी गई थी। तब 1950 में नेपाल में 104 साल पुरानी राणाशाही की समाप्ति हुई थी और महाराजा ने गद्दी संभाली थी। भारत से महाराजा का संबंध अच्छा था और दोनों देशों के बीच आपसी हित में कई तरह की संधियां हुईं।इसकी पृष्ठभूमि बताते हुए पूर्व सांसद डाॅ गौरीशंकर राजहंस लिखते हैं कि वर्षों से कोसी नदी नेपाल और उत्तर बिहार में प्रलय मचा रही थी। आजादी के ठीक बाद कोसी क्षेत्र के नेता ललित नारायण मिश्र ने गुलजारी लाल नंदा केे साथ तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात की। ललित नारायण मिश्र ने पंडित नेहरू से कहा था कि कोसी को बांधने का यदि उपाय नहीं होगा, तो नेपाल और बिहार धीरे -धीरे पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे। वहां की उपजाऊ जमीन में केवल बालू ही रह जाएगा। उन दिनों नेपाल के महाराजा महेंद्र भारत के प्रति अत्यंत मित्रता का रूख रखते थे। पंडित नेहरू और महाराजा महेंद्र ने सम्मिलित रूप से कोसी योजना की नींव रखी। ’इस समझौते के तहत कोसी नदी पर भारत व नेपाल के हिस्सों में तटबंध बने और वीरपुर में बराज बना। याद रहे कि सन् 1954 में कोसी नदी में भीषण बाढ़ आई थी, जिससे नेपाल व भारत में भारी तबाही हुई थी। इस बार भी जब कोसी का तटबंध कुशहा के पास टूटा, तो नेपाल के भी एक बड़े क्षेत्र में तबाही और बर्बादी हुई है। यह बात और है कि नेपाल के कुछ लोग इस बर्बादी के लिए भारत सरकार से मुआवजा की मांग कर रहे हैं, जबकि बिहार सरकार कह रही है कि कुशहा के पास कोसी तटबंध की मरम्मत के काम में नेपाल सरकार ने सहयोग दिया होता, तो तटबंध नहीं टूटता। नेपाली मीडिया के एक हिस्से ने भी यह बात लिखी है कि नेपाल सरकार से सहयोग नहीं मिलने के कारण ही तटबंध टूटा। हालांकि बिहार सरकार कह रही है कि तब नेपाल में राजनीतिक माहौल ऐसा था कि सहयोग नहीं मिल सका। पर बाद में यह भी खबर आई कि जैसे ही नए प्रधान मंत्री प्रचंड को खबर मिली कि कोसी तटबंध पर खतरा है, तो उन्होंने तुरंत उसकी मरममत में सहयोग के लिए प्रशासन को लगा दिया। हालांकि तब तक देर हो चुकी थी और तटबंध को टूटने से नहीं बचाया जा सका। नेपाल में यह बात कहने वाले लोग भी हैं कि भारत-नेपाल कोसी समझौता एक भूल थी, पर सरजमीन की स्थिति यह बताती है कि कोसी नदी से होने वाले नुकसानों से यदि दोनों देशों को बचना है, तो दोनों को मिलजुल कर इसका उपाय खोजना और उसे कार्यरूप देना होगा। यदि पुराने समझौते में कोई कमी रह गई है, तो उसमें संशोधन तो किया ही जा सकता है। पर कोसी को एक बड़ी आबादी के लिए अभिशाप तो नहीं रहने दिया जा सकता है। यह बात भी पक्की है कि बांध विरोधियों के तर्कों को मान कर कोसी पर निर्मित बांधों को अब तोड़ा भी नहीं जा सकता। हां, इस अभिशाप को वरदान में बदलने का उपाय जरूर किया जा सकता है। कोसी नदी पर नेपाल क्षेत्र में ऊंचे डैम और बड़े जलाशय के निर्माण की जरूरत महसूस की जाती रही है। अधिकतर नेताओं व विशेषज्ञों ने इसके पक्ष में ही राय दी है। हां, कुछ विशेषज्ञ कुछ कारणवश ऊंचे डैम के विरोधी रहे हैं। हालांकि डैम और जलाशय के समर्थक इसे बिजली उत्पादन व सिंचाई जल की उपलब्धता के लिए जरूरी बताते हैं। नेपाल को भी जल मार्ग मिल जाएगा। वर्षों बाद नेपाल में एक मजबूत और निर्णयकारी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह उम्मीद की जानी चाहिए कि पुराने नेपाल-भारत समझौते में यदि जरूरत हो, तो समुचित संशोधन करके कोसी की बाढ़ से साल-दर-साल हो रही बर्बादी-तबाही से मुक्ति दिलाने का काम अब हो जाएगा। भारत -नेपाल के बीच कुछ अन्य तरह के पुराने समझौतों पर भी नेपाल की नई सरकार एक नई नजर डालना चाहती है, पर बिहार और नेपाल के बाढ़पीडि़त लोग दोनों देशों की सरकारों से यह उम्मीद करेंगे कि सबसे पहले वे बाढ़ की समस्या का ही कोई हल निकालें। यह अच्छी खबर है कि प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह ने कहा है कि नेपाल के प्रधान मंत्री प्रचंड जब दिल्ली आएंगे, तो उनसे कोसी की समस्या पर बातचीत करेंगे। वे जल्दी ही आने वाले हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार रेल मंत्री लालू प्रसाद प्रचंड से मिलने के लिए नेपाल जाना चाहते थे, पर भारत सरकार को यह आशंका थी कि शायद नेपाल की धरती पर भी लालू प्रसाद कोसी की बाढ़ के लिए बिहार सरकार को दोषी ठहरा दें, फिर तो नेपाल सरकार को भी यह अवसर मिल जाएगा कि वह द्विपक्षीय बातचीत में यह मसला उठाए कि भारतीय पक्ष की कुव्यवस्था के कारण ही कुशहा में तटबंध टूटा। इसलिए भारत सरकार ने लालू प्रसाद की प्रस्तावित यात्रा को टाल दिया है। हालांकि लालू प्रसाद तथा भारत के कुछ दूसरे नेता लगातार मीडिया के माध्यम से यह आरोप लगाते रहे हैं कि कुशहा में तटबंध बिहार सरकार की कुव्यवस्था के कारण ही टूटा। इन बयानों को आधार बना कर नेपाल में भारत से 250 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति की मांग भी शुरू हो चुकी है। जो भी हो, यह उम्मीद की जा रही है कि नेपाल के प्रधान मंत्री पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ की अगली भारत यात्रा में कोसी को लेकर जल्दी ही कोई रास्ता निकल आएगा और इस विपदा पर समय -समय पर होने वाली ‘राजनीति’ का अंत हो जाएगा।
पब्लिक एजेंडा (09-09-2008)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें