पूर्वोत्तर के पीडि़त हिंदी भाषी
महाराष्ट्र के हिंदीभाषियों की पीड़ा को लेकर बिहार के नेताओं ने तो एकजुटता दिखाई,पर लगता है कि इसी देश के पूर्वोत्तर राज्यों के हिंदीभाषियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। भाजपा नेता हरेंद्र प्रताप हाल में पूर्वोत्तर के प्रवास पर थे।उन्होंने बताया कि वहां हर रोज चार- पांच हिंदी भाषी मारे जा रहे हैं।वे इसलिए मारे जा रहे हैं क्योंकि वे हिंदी भाषी हैं।असम सरकार ऐसी घटनाओं में मृतकों को तीन लाख रुपए सरकारी मुआवजा देती है।पर हिंदी भाषी मृतकों के परिजनों को वह भी मुआवजा नहीं मिल रहा है। पूर्वोंत्तर के हिंदीभाषियों की हत्याओं में कई मामलों में उन लोगों का हाथ रहता है जो बंगला देशी घुसपैठिए हैं।क्या बिहार के तथाकथित सेक्युलर नेता उन हिंदीभाषियों की सुध इसलिए नहीं ले रहे हैं,क्योंकि इससे उनके खास वोट बैंक के नाराज होने का खतरा है ?
संपादक नीतीश
कई साल पहले की बात है।एक विवाह समारोह में पटना के चर्चित पत्रकार, मंच से सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश कर रहे थे।श्रोताओं में विधान परिषद तत्कालीन सभापति प्रो।जाबिर हुसेन भी थे।जाबिर साहब ने टिप्पणी की कि इस पत्रकार महोदय की यदि नौकरी छूट भी जाए तो भी इन्हें रोजी-रोटी की तकलीफ नहीं होगी। अब इसी तरह की बात मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के बारे में भी कही जा सकती है।यदि नीतीश कुमार कभी राजनीति से उब जाएं तो वे एक सफल संपादक बन सकते हैं।अपनी सरकार के तीन साल पूरा होने से पहले ही जब उपलब्धियों के दस्तावेज इकट्ठे किए जा रहे थे तो यह खबर आई थी कि रिपोर्ट कार्ड का संपादन खुद नीतीश कुमार कर रहे हैं।रिपोर्ट कार्ड जब छप कर आ गया तो पता चला कि नीतीश कुमार एक अच्छे संपादक भी हैं। 48 पेज के रिपोर्ट कार्ड के विभिन्न पन्नों के ले आउट और छपाई मनोहारी हैं।फोटोग्राफ का प्रस्तुतीकरण शालीन और ग्राफ आसानी से समझ में आ जाने वाले हैं। मध्य प्रदेश में अस्सी के दशक में जब अर्जुन सिंह मुख्य मंत्री और अशोक वाजपेयी संस्कृति सचिव थे तो उस राज्य के सरकारी प्रकाशन भी ऐसे ही शालीन,सूचनाप्रद और मनोहारी हुआ करते थे।
भगत सिंह बनाम कायर
अमर शहीद सरदार भगत सिंह और आज के उन अन्य लोगों मंे कितना फर्क है जो आज के भगत सिंह बनना चाहते हैं ?बहुत फर्क है।भगत सिंह ने संेट्रल एसेम्बली में बम फेंका तो उन्होंने स्वीकार भी किया कि उन्होंने ऐसा किया। वे कायर नहीं थे।उन्होंने इस तरह का अन्य काम भी किया तो उसे स्वीकार किया। ंवे इसका कानूनी नतीजा भी भुगतने के लिए तैयार रहे।क्योंकि वे बहादुर थे।परिणाम स्वरूप उन्हें अमर शहीद का दर्जा मिला। पर आज तथाकथित शहीद बनने वाले कायर लोग क्या कर रहे हैं ? तरह- तरह की धार्मिक आस्थाओं व अनास्थाओं के नाम पर वे भारी हिंसा तो कर रहे हैं। वे छिप कर निर्दोष लोगों की जान तो ले रहे हैं,पर पकड़े जाने पर खुद को निर्दोष बता कर साफ रिहा हो जाने और अपनी जान बचा लेने का बहाना भी कर रहे हैं।दरअसल वे क्रांतिकारी नहीं बल्कि कायर हैं।उनके राजनीतिक मददगार तो और भी घटिया जीव हैं।
मौत का सौदागर कौन ?
एक नेता ने कुछ माह पहले नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। तब सोहराबुद्दीन नामक एक अभियुक्त की कथित पुलिस मुंठभेड़ में मौत हो गई थी।सोहराबुद्दीन, अब्दुल लतीफ का ड्रायवर था।लतीफ कभी गुजरात का अंडर वल्र्ड किंग था और वह दाउद इब्राहिम का गुजरात में बिजनेस मैनेजर था। लतीफ 1997 में गुजरात पुलिस की गिरफ्त से भागने की कथित कोशिश में पुलिस की गोली से मारा था।दाउद और लतीफ के हथियारों का जखीरा सहराबुदद्ीन ने उज्जैन के पास अपने गांव के कुएं में छिपा दिया था। कुएं से मिले हथियारों का यह जखीरा 1993 में मुम्बई बम ब्लास्ट के पहले विदेश से भारी मात्रा में लाए गए कुल हथियारों का एक छोटा हिस्सा था।सोहराबुद्दीन की कथित फर्जी मुंठभेड़ में कथित हत्या के खिलाफ मशहूर गीतकार जावेद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है।यह अकारण नहीं है कि उनकी अभिनेत्री पत्नी शबाना आजमी यह आरोप लगाती हैं कि मुम्बई में उन्हें मकान नहीं मिलता। अब जरा लतीफ और सहराबुद्दीन की कथित पुलिस मुंठभेड़ ‘हत्याओं’ की तुलना कर लें।इससे इस देश के नेताओं की ढांेगी धर्मनिरपेक्षता और आतंकवाद के प्रति उनके रवैए का पता चल जाएगा। लतीफ जब मारा गया था तब गुजरात में राष्ट्रीय जनता पार्टी के दिलीप पारीख मुख्य मंत्री थे और वह सरकार कांग्रेस के समर्थन से चल रही थी।तब की गुजरात सरकार,सत्ताधारी राजपा और कांग्रेसी नेताओं ने लतीफ की मौत को गुजरात पुलिस की भारी उपलब्धि माना था। तब के अखबारों मेंे उनके बयान सबूत के रूप में मौजूद हैं। संभव है कि इसके लिए तब संबंधित पुलिस अफसरों को सरकार ने इनाम भी दिया हो।पर जब सहाराबुद्दीन की मौत हुई तो गुजरात की सरकार नरेंद्र मोदी के हाथों में आ चुकी थी।सहराबुद्दीन की मौत पर कांगे्रस के शीर्ष नेताओं ने गुजरात सरकार व मोदी को मौत का सौदागर कहा।इस कांड में कई आई।पी.एस.अफसर जेल भिजवा दिए गए।वे मुकदमा झेल रहे हैं।धर्मनिरपेक्षता के झंडावरदार जावेद साहब अदालत तक पहुंच गए।अच्छा होता यदि इस देश के किसी राष्ट्रभक्त हिंदू या मुसलमान के साथ हुए पुलिस जुल्म पर जावेद कोर्ट जाते।
तिवारी प्रकरण एक चेतावनी
एन.डी. तिवारी-उज्वला प्रकरण वैसे नेताओं के लिए एक चेतावनी है जो ‘ बिन फेरे हम तेरे ’ फार्मूला में विश्वास रखते हैं। याद रहे कि उज्ज्वला सिंह के पुत्र रोहित शेखर ने यह दावा किया है कि आंध्र प्रदेश के राज्यपाल एन.डी.तिवारी ही उनके पिता हैं। यदि यह दावा सही है तो यह तिवारी जी के प्रति उज्ज्वला का विश्वासघात ही माना जाएगा।क्योंकि उन्होंने तिवारी जी से शादी तो नहीं की थी।यूं ही सह जीवन के लिए तैयार हो गई हांेगी। यदि शादी की भी होंगी तो उसकी सूचना आम लोगों को नहीं थी।देश भर से छन -छन कर अक्सर यह खबर आती रहती है कि कई मशहूर नेता ‘बिन फेरे हम तेरे’ बने हुए हैं। क्या तिवारी प्रकरण ऐसे दिलफेंक नेताओं को यह सीख दे पाएगा कि उज्ज्वलाओं पर अब विश्वास करने में नुकसान है।आर्थिक भी और राजनीतिक भी।
तापमान (दिसंबर, 2008)
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