सोमवार, 26 जनवरी 2009
घुसपैठ रोकने के लिए भी कड़ाई जरूरी
आतंकी हमलों से मुकाबले के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी के गठन और नए कानून बनाने का फैसला सराहनीय है। देर आए,दुरूस्त आए। पर, इसके साथ ही इस देश में विदेशियों की बेरोकटोक घुसपैठ पर रोक भी उतनी ही जरूरी है।इस ओर अभी इस देश की विभिन्न सरकारों का पूरा ध्यान जाना बाकी है।कम से कम तीन स्थलोंं से आए दिन बेरोकटोक घुसपैठ की खबरें अक्सर आती रहती हैं।वे स्थल हैं नेपाल-भारत सीमा, बंगला देश बोर्डर और समुद्री रास्ते । इन तीनों स्थानों में तैनात विभिन्न सरकारों के संबंधित अधिकतर कर्मचारियों और अफसरों के बीच व्याप्त भारी भ्रष्टाचार, आतंकियों के लिए इंधन का काम करता है।इस राष्ट्रद्रोही भ्रष्टाचार पर कड़ाई से अंकुश लगाए बिना आतंकी घटनाओं पर काबू पाना कठिन होगा। सन् 1993 के बंबई विस्फोट कांड में कुछ सरकारी अफसरों और कर्मचारियों को भी अदालत ने सजा सुनाई ।उन पर आरोप था कि उन लोगों ने आर.डी.एक्स.की खेपों को समुद्री मार्ग से बंबई पहुंचाने में दाउद इब्राहिम के लोगों की मदद की।इसके बदले उन्हें रिश्वत के रूप में भारी धन राशि मिली थी।आज भी महाराष्ट्र में एक नेता दूसरे पर यह आरोप लगाता रहता है कि वह दाउद इब्राहिम की मदद करता है।यानी इस देश में कस्टम पुलिस और कोस्टल गार्ड को ऐसा बनाना पड़ेगा ताकि उसके अफसर व कर्मचारी रिश्वत लेकर हथियार,गोले बारूद या किसी घुसपैठी को भारतीय सीमा में घुसने का मौका नहीं दे ।क्या ऐसा कभी हो पाएगा ? दरअसल अभी इस देश में जो कड़ा कानून बन रहा है और जो केंद्रीय एजेंसी कायम हो रही है,वे भारत के भीतर पहुंच चुके आतंकियों से निपटने के लिए हैं।पर विदेशी आतंकवादी तो ‘शहीद’ होने के लिए ही बारी- बारी से इस देश में पहुंचते हैं। उन्हें अपने कारनामे करके मर जाना पसंद है। उनके लिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि भारत का कानून कितना कड़ा है या नरम।कोई भी कानून उन्हें फांसी से अधिक भला और क्या दे सकता है ! अधिक गंभीर सवाल तो यह है कि उन फिदाइनों को भारत की सीमा में प्रवेश करने से ही कैसे रोक दिया जाए। पर, यह तब तक नहीं रुकेगा जब तक हमारी सीमाएं भ्रष्ट कर्मियों के हाथों असुरक्षित रहंेगीं।सीमाएं सुरक्षित तब तक नहीं रहेंगी जब तक सीमाओं पर ऐसे अफसर व कर्मचारी तैनात किए जाते रहेंगे जिन्होंने मानव तस्करी तथा दूसरे प्रकार के सामान की तस्करी के धंधे को अपनी नियमित आय का जरिया बना लिया है।ऐसे भ्रष्ट लोक सेवकों को अक्सर उच्च अधिकारियों व सत्ताधारी नेताओं का भी संरक्षण प्राप्त रहता है।यह धंधा पहले तस्करी को संरक्षण देने के लिए चलता था।अब उन्हीं तस्करों ने आतंकियों और उनके लिए हथियारों की तस्करी के काम को भी अपना लिया है। बंगला देश की सीमा पर तैनात हमारे सुरक्षाकर्मियों के एक बड़े हिस्से पर यह आरोप लगता रहता है कि वे रिश्वत की मामूली रकम भी ले लेकर बंगला देशियों को भारत की सीमा में अवैध तरीके से प्रवेश कराते रहते हैं।याद रहे कि बंगला देश वैसे आतंकियों का गढ़ बना हुआ है जो भारत में आकर बड़ी -बड़ी आतंकी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। अंत में नेपाल -भारत सीमा के बारे में भी कुछ ।यह सीमा तो बिलकुल खुली हुई है।इस सीमा से लगे अनेक पुलिस थानों में तैनाती के लिए रिश्वत की बोली लगती है।सीमा से सटे बिहार के जिलों के अधिकतर एस.पी.पर आए दिन यह आरोप लगता रहता है कि वे थाना प्रभारियों की तैनाती के लिए थानों की ‘बोली’ लगवाते हैं।पुलिस की उपरी आय इस मद में है कि तस्करी के माल और संदेहास्पद व्यक्तियों को कोई थाना प्रभारी कितना अधिक इधर से उधर टपवा देता है।यह विदेशी आतंकवादियों के लिए आदर्श स्थिति है।इस पर रोक लगाए बिना आतंकी घटनाओं पर रोक कैसे लगेगी ? राष्ट्रीय सहारा, पटना (18-12-2008)
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