सोमवार, 26 जनवरी 2009
भ्रष्टों के लिए भी त्वरित अदालत जरूरी
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने यह एक बड़ी अच्छी बात कही है कि जदयू के कार्यकत्र्ता आगे बढ़कर भ्रष्ट पदाधिकारियों को निगरानी दस्ते की गिरफ्त में दे दें।किसी मुख्य मंत्री से ऐसी बात सुनने के लिए बिहार की जनता तरस रही थी। मुख्य मंत्री की इस टिप्पणी से दो बातें सामने आती हैं। एक तो यह कि मुख्य मंत्री,राज्य प्रशासन से भ्रष्टाचार वास्तव में कम करना चाहते हैं।दूसरी बात यह है कि भ्रष्टाचार से लड़ने वाली परंपरागत प्रशासनिक व्यवस्था फेल हो रही है।इसीलिए तो किसी दल के कार्यकत्र्ताओं से ऐसी अपील की जा रही है। पर इस अपील में एक कमी है।इस अपील के साथ मुख्य मंत्री को यह भी कहना चाहिए था कि जो जदयू कार्यकत्र्ता भ्रष्ट अफसरों को गिरफ्तार करांएगे उन्हें आर्थिक पुरस्कार दिया जाएगा और राजनीतिक पद या चुनावी टिकट देते समय उनके नाम पर विशेष तौर पर विचार किया जाएगा।यदि राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं को ऐसे काम के लिए आर्थिक पुरस्कार मिलने लगे तो अन्य दलों के कुछ ईमानदार राजनीतिक कार्यकत्र्ता भी इस काम में हाथ बंटा सकते हैं।अभी तो किसी भी दल के ईमानदार कार्यकत्र्ताओं की आर्थिक हालत दयनीय ही है। एक आर्थिक अपराधी के बारे में केंद्र सरकार को गुप्त सूचना देने पर युवा तुर्क चंद्र शेखर को भी करीब चालीस साल पहले केंद्र सरकार ने भारी आर्थिक पुरस्कार दिया था।चंद्र शेखर बाद में प्रधान मंत्री भी बने थे।बिहार में ंऐसे छोटे छोटे आर्थिक पुरस्कार भी मिलने लगंे तो ईमानदार कार्यकत्र्ताओं का स्वाभिमान बचा रह जाएगा। इन दिनों राजनीति में ईमानदार कार्यकत्र्ता और नेता ढंूढ़ना कठिन है,पर कुछ तो जरूर हैं जो इस काम में सरकार की मदद कर सकते हैं। दरअसल बिहार का प्रशासनिक तंत्र भ्रष्टाचार में इस कदर डूबा हुआ है कि ब्रिटेन या किसी भी देश के विशेषज्ञ से प्रशासनिक सुधार में मदद ले लीजिए,पर जब तक भीषण भ्रष्टाचार कम नहीं होगा,सुधार का कोई मतलब नहीं रहेगा।योजना आयोग की अर्जुन सेनगुप्त रपट में कहा गया है कि भारत के 84 करोड़ लोग औसतन बीस रुपए प्रतिदिन पर ही गुजर करने को अभिशप्त हैं। आयोग की ही एक अन्य रपट में कहा गया है कि नक्सलवाद का मुख्य कारण गरीबी और विस्थापन है। इस बारे में भले लोगों के बीच अब यह आम सहमति बनती जा रही है कि इस देश में गरीबी का मुख्य कारण सरकारी भ्रष्टाचार ही है। आजादी के बाद के शासक तो कहते रहे कि मंत्रियों और अफसरों के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करोगे तो उनमें पस्तहिम्मती आएगी । उसके बाद के एक नेता की टिप्पणी थी कि क्या कीजिएगा,भ्रष्टाचार तो पूरी दुनिया में है।आज के कई नेता कह रहे हैं कि जनता ही चाहती है कि भ्रष्ट लोग चुनाव जीतें और शासन चलाएं। पर तीनों बातें गलत हैं।इस बीच चीन ने भ्रष्टाचारियों के लिए फांसी की सजा की व्यवस्था करके अपने देश को एक विकसित देश बना लिया। हमारे प्रदेश बिहार में पिछले तीन साल के भीतर करीब 25 हजार छोटे- बड़े अपराधियों को जब त्वरित अदालतों के जरिए सजाएं दिलवा दी गईं तो भीषण अपराध के कारण जारी भारी भय और आतंक का माहौल समाप्त हो गया ।यदि यही फार्मूला उन भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ भी लागू किया जाए जो घूस लेते रंगे हाथोंें पकड़े जा रहे हैं तो बिहार सरकार के दफ्तरों में भ्रष्टाचार भी कम होगा।आज स्थिति यह है कि राज्य सरकार के दफ्तरों में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है जितना पहले कभी नहीं था।इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भ्रष्ट लोगांे को सजा नहीं मिल पा रही है।जबकि डी.जी.स्तर तक के पुलिस अफसर .और वरिष्ठ आई.ए.एस. अफसर भी भ्रष्टाचार के आरोप में बिहार में गिरफ्तार हो रहे हैं।दूसरी ओर, राज्य के प्रशासनिक अफसर संघ खुलेआम यह कह रहा हैं कि उसके सदस्यों के खिलाफ स्टिंग आपरेशन नहीं चलना चाहिए और एक अन्य सेवा संघ अपने उन सदस्यों के पक्ष में भी आंदोलन की धमकी सरकार को दे रहा है जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं।इनकी हिम्मत और बेशर्मी तो देखिए ! राज्य के भले के लिए ऐसे लोगों को रास्ते पर लाना बहुत जरूरी है। राष्ट्रीय सहारा, पटना (20-11-२०08)
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