रविवार, 18 जनवरी 2009

पटना पुलिस गोली कांड पर जेपी बनाम नेहरू

जय प्रकाश नारायण आम तौर पर जवाहर लाल नेहरू की बड़ी इज्जत करते थे।पर मौका आने पर वे कभी-कभी उनकी तीव्र आलोचना करने से परहेज भी नहीं करते थे। बल्कि लाल बहादुर शास्त्री की राय में ‘जेपी ही एक ऐसे व्यक्ति हैं जो नेहरू की आलोचना कर सकते हैं और उनकी आलोचना को पंडित जी गंभीरता से लेते हैं। ।’यह प्रसंग तब का है जब डा.अनुग्रह नारायण सिंहा जीवित थे।वे नहीं चाहते थे कि जेपी, नेहरू जी की सार्वजनिक रूप से कटु आलोचना करें।वे चाहते थे कि लाल बहादुर शास्त्री यह बात जेपी से कहें।क्योंकि जेपी जब इस तरह की बात बोलते हैं तो अनुग्रह बाबू के बारे में कांग्रेस के भीतर गलतफहमी होती है।अनुग्रह बाबू के जेपी काफी करीबी थे। उधर जेपी लाल बहादुर शास्त्री के रिश्तेदार थे। लाल बहादुर शास्त्री को किसी ने अनुग्रह बाबू का यह संदेश पहुंचाया तो शास्त्री जी ने कहा कि जेपी ही हैं जो पंडित जी को कुछ कह सकते हैं।यदि जेपी भी कुछ नहीं कहेंगे तो नेहरू जी तानाशाह हो जाएंगे।खैर यह तो हुई उनकी बात ।पर एक बार जेपी ने नेहरू के खिलाफ जो कड़ा बयान दिया, वह ऐतिहासिक ही साबित हुआ। यह बात सन् 1955 की है।पटना में पुलिस गोली कांड हुआ था। बी.एन.कालेज का छात्र दीनानाथ पांडेय मारा गया था।छात्रगण गोली कांड की न्यायिक जांच की मांग कर रहे थे।पर तत्कालीन मुख्य मंत्री डा़. श्रीकृष्ण सिंहा न्यायिक जांच के खिलाफ थे।जनता में इस गोली कांड को लेकर भारी असंतोष था।सरकार के खिलाफ रोष था जिसे शांत करने के लिए जवाहर लाल नेहरू ने 30 अगस्त 1955 को पटना के गांधी मैदान में आम सभा को संबोधित किया।उस सभा में नेहरू ने प्रेस और भीड़ को भला बुरा कहा और न्यायिक जांच की मांग को ठुकरा दिया। तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के इस भाषण को उनका बेजोड़ अभिनय करार देते हुए जय प्रकाश नारायण ने एक कड़ा व लम्बा प्रेस बयान जारी किया।उनका यह बयान 2 सितंबर 1955 के अखबारों में छपा।जेपी ने अपने बयान में कहा कि ‘यह एक ऐसी घटना है जिस पर चुप रहने का अर्थ होगा कि मैं अपने नागरिक कत्र्तव्य का पालन नहीं कर रहा हूं।अभी प्रधान मंत्री पटना आए।अपार भीड़ इस उम्मीद में जमा हुई कि ऐसे शब्द सुनने को मिलेंगे जिनसे उनका मन शांत हो सके।लेकिन प्रधान मंत्री ने उनके जख्मों पर नमक छिड़का,अपना आपा खोकर वे भीड़ पर चिल्लाए,पटना प्रेस को गाली दी और पुलिस जुल्म के विरूद्ध आवाज उठाने के लिए नागरिकों की भत्र्सना की।ब्रिटिश राज में जो लोग जुल्म की भत्र्सना करते थे उनका शुमार देश भक्तों में होता था लेकिन स्वराज में उन्हें गद्दारों की तरह देखा जाता है।’ जेपी ने कहा कि ‘प्रधान मंत्री कम्युनिस्टों पर बहुत से दोषारोपण करने में संलग्न हैं।कोई शक नहीं कि उन्हें बताया गया है कि सारे बखेड़े के जिम्मेदार कम्युनिस्ट हैं।पटना में हमारे बहादुर पुलिस वालों को, जो अपना ज्ञान तंतु खो चुके हैं,हर जगह एक कम्युनिस्ट बम लिए हुए नजर आता है और इसी ने इस कम्युनिस्ट कहानी को फैलाया है।जैसा कि सभी जानते हैं कि मैं कोई कम्युनिस्ट प्रशंसक नहीं हूं लेकिन मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं हो रही कि इस सारी उथल पुथल में उनकी भूमिका संयमित रही है।कम्युनिस्टों के भीतर बहुत सी कमियां हैं,लेकिन वे संगठित और अनुशासित लोग हैं।’ घटना के बारे में नेहरू के आकलन को चुनौती देते हुए जेपी ने कहा कि ‘नेहरू ने वही कहा जो उन्हें कहने को कहा गया। उनके कान इतनी चालाकी से भरे गए कि कुछ बाकी न रहा।मुझे सबसे अधिक धक्का इस बात से लगा कि प्रधान मंत्री के मन में यह शिष्टाचार तो है कि बी.एन.कालेज जाकर कहीं वे आयोग को कठिनाई में न डाल दें।लेकिन गोली कांड की घटना पर बोलते समय उन्होंने इस भावना का परिचय नहीं दिया।उन्होंने जोर- जोर से और बार -बार विद्यार्थियों और नागरिकों के हुड़दंग की भत्र्सना तो की लेकिन दूसरे पक्ष के विरूद्ध आरोपों पर वे एक शब्द भी नहीं बोले।’ ‘बिहार में देश भक्तों की कमी नहीं है और मुझे नहीं लगता कि देश भक्ति पर श्री नेहरू ने हमें कोई प्रशंसनीय पाठ पढ़ाया है।देश भक्ति मात्र एक कपड़े के टुकड़े की पूजा में नहीं, बल्कि निश्चित राष्ट्रीय सदाचारों,जीवन के निश्चित मूल्यों ,जनता और सरकार के आचरण के निश्चित स्तरों में है।बहुत दुःखी मन से मैंने ये पंक्तियां लिखी हैं।मेरे लिए राजनीतिक आंदोलन के दिन समाप्त हो चुके हैं।किसी विवाद में पड़ने की अब मुझमें शक्ति नहीं है।पिछले कुछ दिनों में बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष सहित कई लोगों ने मुझ पर अनुचित हमला किया है।फिर भी मैं शांत रहा।’ प्रभात खबर (२६-१२-2008)

कोई टिप्पणी नहीं: