रविवार, 18 जनवरी 2009
जयप्रकाश नारायण बनाम डा. श्रीकृष्ण सिन्हा
एक बार जयप्रकाश नारायण ने डा. श्रीकृष्ण सिन्हा के शासन काल को ‘भूमिहार राज’ कहा तो श्रीबाबू ने भी उन्हें पलट कर यह जवाब दे दिया कि ‘जेपी भी जातपांत से उपर नहीं उठ सके।’ सन् 1957 के चुनाव में पराजित नेता के.बी. सहाय के राजनीतिक भविष्य के मुद्दे पर इन दिग्गज नेताओं के बीच हुए लंबे पत्र -व्यवहार को बिहार की राजनीति का दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय ही माना गया। इस पत्र -व्यवहार ने उस समय कई लोगों का मन खट्टा किया था। इस घटिया पत्र -व्यवहार के प्रसंग को छोड़ दें तो इन नेताओं का व्यक्तित्व इन सब ओछी चीजों से आम तौर पर उपर था। जेपी-श्रीबाबू पत्र-व्यवहार को एक पुस्तक में संजोया है वरिष्ठ पत्रकार डा.एन.एम.पी. श्रीवास्तव ने।इन दोनों नेताओं के बीच हुए पत्र -व्यवहार के विवरण को पढ़ने से ऐसा लगता है कि राजनीति और प्रशासन में भ्रष्टाचार और जातिवाद के बीज बोने का काम उन स्वतंत्रता सेनानियों ने ही जाने -अनजाने कर डाला था जिन नेताओं को स्वतंत्रता के बाद देश के शासन की बागडोर मिली थी।हालांकि यह बात भी मजबूती से कही जा सकती है कि आज देश व प्रदेश के शासन व राजनीति में भ्रष्टाचार व जातिवाद की जो मात्रा है,उसके मुकाबले तब के भ्रष्टाचार व जातिवाद अत्यंत मामूली थे।हालांकि उन स्वतंत्रता सेनानियों से कुछ और संयम की उम्मीद थी। बिहार के प्रथम मुख्य मंत्री डा.श्रीकृष्ण सिंहा को राजनीति से संन्यास लिए जेपी ने लिखा कि ‘ महेश प्रसाद सिंहा और के.बी.सहाय चुनाव@1957@हार गए।सहाय को कुछ नहीं मिला।पर महेश बाबू राज्य खादी बोर्ड के अध्यक्ष बना दिए गए।उन्हें सरकारी बंगला दे दिया गया।बाद में वे प्रदेश कांग्रेस के खजांची भी बनाए गए।दूसरी ओर तमाम सेवाओं के बावजूद के.बी.सहाय आज कुछ भी नहीं हैं।’ जेपी ने श्रीबाबू को लिखा कि लिखा कि ‘आप मुझसे बेहतर जानते हैं कि बिहार की राजनीति कितना नीचे गिर चुकी है और कितना भ्रष्टाचार पनप चुका है, यह भी आप जानते हैंै। इसके कई कारण होंगे, पर संभवतः सबसे बड़ा कारण यह है कि नेतागण व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और स्वार्थ में लिप्त हैं।आप और अनुग्रह बाबू के बीच प्रतिद्वंद्विता से राज्य में जातीयता ने खतरनाक स्वरूप ग्रहण कर लिया है।’ डा.श्रीकृष्ण सिंहा ने जय प्रकाश नारायण को लिखा कि ‘आप बाजार की गपशप पर विश्वास करते हैं।आपके पत्र में यह संकेत है कि आप महेश बाबू को नीचा करने की और के.बी.सहाय को उठाने की कोशिश कर रहे हैं।मैंने तो वर्षों तक कृष्ण बल्लभ बाबू को ऐसे पद पर रखा जिसका महेश बाबू सपना भी नहीं देख सकते थे।भूमिहारवाद का आरोप भी गलत है। श्रीबाबू ने एक पत्र में लिखा कि जेपी भी जातपांत से उपर नहीं उठ सके हैं और वे चाहते हैं कि उनके स्वजातीय के.बी.सहाय को मैं अपना उतराधिकारी बना दूं। उन दिनों किसी नेता द्वारा अपना उतराधिकारी बनाने की गुंजाइश कम ही थी।वैसे भी डा.श्रीकृष्ण सिंहा के बाद विनोदानंद झा बिहार के मुख्य मंत्री बने थे।कांग्रेस विधायक दल में नेता पद के चुनाव के बाद विजयी होने पर कोई नेता आम तौर पर मुख्य मंत्री बनता था।पर जेपी और श्रीबाबू में जिन दो स्वतंत्रता सेनानियों के राजनीतिक भविष्य को लेकर दुर्भाग्यपूर्ण पत्र व्यवहार हुआ,उन नेताओं के बारे में कुछ जानिए।क्या ये नेतागण जेपी और श्रीकृष्ण सिंहा के ‘संरक्षण’ के हकदार थे ? के.बी.सहाय और महेश प्रसाद सिंहा बाद के वर्षो में क्रमशः मुख्य मंत्री और मंत्री बने।इन पर भ्रष्टाचार के भीषण आरोप लगे।सन् 1967 में जब बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो इन दो नेताओं सहित कुल छह कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए अय्यर आयोग का गठन किया गया। सुप्रीम कोर्ट के जज रहे अय्यर साहब ने अन्य आरोपितों के साथ- साथ इन दो नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के कुछ आरोपों को सही माना।महेश बाबू पर गंडक सिंचाई योजना के ठेकेदार रमैया के मैनेजर से घूस लेने का आरोप साबित हो गया था।के.बी.सहाय पर अन्य आरोपेां के अलावा अपने ही पुत्र को अपनी ही कलम से नाजायज तरीके से सरकारी खान का पट्टा देने का आरोप सही पाया गया। के.बी.सहाय और महेश बाबूू ने स्वतंत्रता के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई थीं।पर आजादी के बाद गद्दी पाने पर वे संयम नहीं रख सके।ऐसा नहीं है कि तब बिहार कांग्रेस में संयमी स्वतंत्रता सेनानियों की कोई कमी थी।पर उनके राजनीतिक कैरियर की चिंता करने वाले जेपी और श्री बाबू जैसे दिग्गज नेता नहीं थे।के.बी.सहाय कुछ वर्षों तक श्रीकृष्ण सिंहा के गुट में थे।पर संबंध बिगड़ा तो के.बी.सहाय ने एक अवसर पर कहा कि ‘यदि साठी @भूमि घोटाला @कांड को लेकर डा.श्रीकृष्ण सिंहा ने मेरा इस्तीफा लिया होता तो उनकी स्थिति भी लज्जास्पद हो जाती क्योंकि वे भी साठी भूमि कांड के लाभान्वितों में शामिल थे।’ प्रभात खबर (२४-१०-2008)
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