बुधवार, 21 जनवरी 2009

कंधार विमान अपहरण कांड से कोई सबक नहीं

आतंकवादी हमलों को लेकर भारत के राजनीतिक दलों में आम सहमति तैयार करना आज भी टेढ़ी खीर है।पर,जिस बात पर कभी विभिन्न दलों के बीच एक खास परिस्थिति में सहमति बन भी जाती है,उस बात को लेकर भी बाद में असहमति जताना और राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करना, इस देश की राजनीति की फितरत बन चुकी है।यह बात लगभग सभी दलों पर लागू होती है।चिंताजनक बात यह है कि ऐसी राजनीति देश की रक्षा के मामलों में भी होती है। मुम्बई के ताजा आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में कंधार विमान अपहरण प्रकरण को एक बार फिर याद करना मौजूं होगा।कंधार अपहरण कांड यह बताता है कि हमारे हुक्मरान अपनी गलतियों से सीखने के लिए कत्तई तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान समर्थित कश्मीरी आतंकवादियों ने 24 दिसंबर,1999 को इंडियन एयर लाइंस के विमान 814 का अपहरण कर लिया।उसे वे कंधार यानी अफगानिस्तान ले गए।तब वह देश तालिबानियों के कब्जे में था।उस विमान के 152 यात्रियों कों आतंकियों ने बंधक बना लिया।कई दिनों के शर्मनाक ड्रामे के बाद हरकत उल अंसार के आतंकी मौलाना मसूद अजहर को रिहा करने के बदले अपहृत विमान के बंधक यात्रियों को छुड़ा लिया गया।आतंकीं को अपने साथ लेकर तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह कंधार गए थे। इससे पहले 27 दिसंबर 1999 को दिल्ली में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी।उस बैठक में यह सहमति बनी थी कि बंधक यात्रियों को किसी भी कीमत पर बचाना है।पर, जब कीमत दे दी गई तो उन्हीें दलों के नेतागण समय- समय पर भाजपा और जसवंत सिंह पर ताने मारते रहते हैं कि आप भी तो मसूद अजहर को साथ लेकर कंधार गए थे।याद रहे कि विचारक और लोगों को प्रेरित करने में माहिर आतंकवादी अजहर कश्मीर के अनंतनाग में 1994 में गिरफ्तार किया गया था।हाल में फिल्म अभिनेता आमिर खान ने कहा है कि ‘मुझे और मेरे बच्चों को कुछ आतंकवादी बंधक बना लें तो मैं अपनी सरकार से यह कहने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहूंगा कि वह मेरी और मेरे बच्चों की परवाह न करें और और देश के व्यापक हित में आतंकवादियों को मार गिराए।’ काश,ऐसा ही साहस उन बंधकों के परिजनों ने दिखाया होता जो तब कंधार में बंधक थे।दुनिया के कई देश कभी ऐसे हालात में भी आतंकवादियों की शत्र्तें नहीं मानते,चाहे कुछ भी हो जाए।पर खुद अटल मंत्रिमंडल के सदस्य जसवंत सिंह और प्रमोद महाजन कंधार के सवाल पर आपस में तू तू मैं मैं कर रहे थे।महाजन की शिकायत थी कि जसवंत जल्दी मसूद अजहर को लेकर कंधार क्यों नहीं जा रहे हैं। उधर दिल्ली में बंधकों के परिजन समूह बना कर सरकार की ऐसी -तैसी कर रहे थे।वे चाहते थे कि जल्दी आतंकियों की शत्र्तें सरकार पूरी कर दे।सरकार ने कारगिल युद्ध के शहीदों की विधवाओं को बुलवा कर उन रिश्तेदारों से मुलाकात और बात कराई।विधवाएं कह रही थीं कि आतंकियों की शत्र्तें मानने पर इस देश की और महिलाएं विधवा बनेंगीं।पर उसका कोई असर उन पर नहीं पड़ा।टी.वी.चैनल उन रिश्तेदारों के हंगामे का दृश्य दुनिया भर को निरंतर दिखा रहे थे । एक बंधक के रिश्तेदार डा.राजीव छिब्बर ने जसवंत सिंह से तब रोष भरे शब्दों में कहा कि ‘तब अपहृत रूबैया के बदले आतंकवादी छोड़े गए थे तो अब क्यों नहीं ?’ अब जरा कंधार काल की प्रशासनिक गलतियों से हाल की गलतियों की तुलना की जाए तो पता चलेगा कि गत नौ वर्षों में इस मामले में हमारी सरकारेंं इस पुरानी राह पर कायम हैं कि ‘हम नहीं सुधरेंगे।’ मुम्बई पर आतंकी हमले के बाद जिस तरह की खुफिया,सुरक्षा और प्रशासनिक विफलताओं की खबरें आईं,वे लोगांे ंको अच्छी तरह याद ही होंगीं।अब जरा कंधार कांड के समय की विफलताओं की चर्चा की जाए।तब की केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव पर आरोप था कि अपहरण की खबर मिल जाने पर भी बैठक बुलाने में उन्होंने देरी की।पी.एम.ओ.के प्रधान सचिव पर आरोप लगा कि विमान जब अमृतसर के पास और फिर अमृतसर में था, तब उसे उन्होंने उलझावपूर्ण संकेत भेजे। फैसले में देरी की। राॅ के तत्कालीन प्रमुख पर आरोप लगा कि अपहरण की खबर पाते ही वे चैकन्ना नहीं हुए। एन.एस.जी. ने राॅ की टीम के इंतजार में वक्त गंवाया।वात्र्ताकारों के बगैर एन.एस.जी.को अमृसर रवाना होना चाहिए था।याद रहे कि अमृसर जाने के लिए विशेष विमान इंतजार करता रहा,पर वात्र्ताकार नहीं पहुंचे।याद रहे कि अपहरणकत्र्ता विमान को काठमांडो से लखनउ,दिल्ली होते हुए अमृतसर ले गए थे।अमृसर में इंधन के लिए विमान रूका।फिर वे उसे कंधार ले गए।सरकार की सबसे बड़ी विफलता यह थी कि वह उस विमान को अमृतसर में अपने कब्जे में नहीं कर सकी।क्या इन गलतियों से भारत सरकार ने इस बीच कोई शिक्षा ग्रहण की हैं ? मुम्बई की ताजा घटना इस सवाल का नकारात्मक उत्तर ही देती है। प्रभात खबर (०५-१२-2008)

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