सोमवार, 26 जनवरी 2009

ऐसी ही सजा जरूरी

इससे बेहतर खबर कोई और नहीं हो सकती। खास कर जल प्रदूषण की समस्या से जूझनेवाले देश भर के लोग इससे गद्गद् होंगे। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली जल बोर्ड के तीन बड़े अधिकारियों को इसी मंगलवार को तीन हफ्ते की सजा सुनाई है। उन पर यमुना नदी के पानी में गंदे नाले के दूषित जल के प्रवाहित होते रहने से रोकने की जिम्मेदारी दी गई थी। दिल्ली हाई कोर्ट के जज एस.एन. धींगरा ने सजा सुनाते समय कहा कि अब कोई बहाना नहीं चलेगा। इससे पहले बोर्ड के वकील, कोर्ट से यह कह रहे थे कि नालियों को ठीक करने के लिए नया टेंडर जारी किया गया है। कोर्ट ने कहा कि जो अफसर काम नहीें करना चाहते, उनके लिए तो बहाने मिल ही जाते हैं। जिन अफसरों को कोर्ट ने सजा दी है उनमें दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी अरुण माथुर, मुख्य अभियंता (ड्रेनेज) आर.के. जैन और कार्यपालक अभियंता पी. पंत शामिल हैं। इससे दो साल पहले बोर्ड के अफसरों ने कोर्ट को आश्वासन दिया था कि टूटे हुए नाले की मरम्मत करा दी जाएगी। पर कोर्ट को दिए गए इस स्पष्ट आश्वासन का भी जब पालन नहीं हुआ, तो नागरिकों ने कोर्ट से फिर गुहार लगाई। कोर्ट ने संबंधित अफसरों पर 20- 20 हजार रुपए जुर्माना करते हुए कहा कि यह इसी देश में होता है कि ऐसे मामले में भी नागरिकों को कोर्ट की शरण लेनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि ये अफसर जुर्माने की राशि अपने वेतन से देंगे। अदालत ने कहा कि इन अफसरों का जेल जाना फिलहाल अगले तीन महीने तक स्थगित रहेगा, ताकि वे इस बीच नागरिकों की संबंधित शिकायत दूर कर दें। यह सजा गंगा नदी तथा देश की दूसरी नदियों को प्रदूषित करने में ‘मदद’ करने के काम में लगे देश के विभिन्न जल बोर्डों के अफसरों के लिए भी नसीहत साबित हो सकती है, यदि वे कोई नसीहत लेना चाहें। पटना में भी छोटे-बड़े अफसरों व सरकार की लापरवाही से कई गंदे नाले गंगा नदी को रोज -रोज और भी प्रदूषित करते जा रहे हैं। अब तो विशेषज्ञ बताते हैं कि पटना के निकट गंगा का पानी पीने और नहाने को कौन कहे, छूने लायक भी नहीं है। इस बीच केंद्र सरकार ने गंगा बेसिन आॅथारिटी बनाने का सराहनीय निर्णय किया है। गंगा जल को फिर से अमृत बनाने की दिशा में केंद्र सरकार चाहे, तो जल्दी ही जरूरी कदम उठा सकती है। वैसे भी चुनाव करीब है। उसके लिए पैसे आवंटित होंगे। अफसर तैनात होंगे, पर योजना को कार्यान्वित करने के लिए जिस कर्तव्यपरायणता की जरूरत है, उसे अफसरों और कर्मचारियों में पैदा करने के लिए शायद जस्टिस एस.एन. धींगरा जैसे जजों के निर्णय की चाबुक भी चाहिए। याद रहे कि कानपुर में गंगा जल को प्रदूषण से रोकने के लिए हाई कोर्ट का सख्त आदेश है, किंतु उस आदेश को लागू नहीं कराया जा रहा है। यदि वहां भी अदालत की अवमानना को लेकर याचिकाकर्ता सक्रिय हो जाएं, तो मां गंगा को बचाया जा सकता है। अन्यथा वहां तो चमड़े के कारखानों से निर्बाध निकल रहे अत्यंत ही गंदे व जहरीले पानी से गंगा नदी त्राहि -त्राहि कर ही रही है। मायावती जैसी दबंग मुख्यमंत्री का उस ओर ध्यान नहीं है, जो चाहें तो आसानी से दोषी लोगों के होश ठिकाने ला सकती हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी एक बार वायदा किया था कि वे पटना के पास गंगा नदी को प्रदूषित होते रहने से रोकने की कोशिश करेंगे। अब तो गंगा बेसिन आॅथारिटी बन रही है, जिसके सदस्य संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री भी होंगे। उम्मीद है कि बिहार के मुख्यमंत्री पहल करके राज्यों के चुनाव के शीघ्र बाद ऐसी आॅथारिटी के गठन की प्रक्रिया भी पूरी कराने के लिए केंद्र से कहेंगे। केंद्र सरकार की नजर में भी नीतीश कुमार एक गंभीर व काम करनेवाले मुख्यमंत्री हैं। उनकी बातों का असर होगा, ऐसी उम्मीद की जाती है। अन्यथा ऐसा न हो कि गंगा आॅथारिटी के निर्माण का काम घोषणा तक ही सिमट कर रह जाए। राष्ट्रीय सहारा, पटना (27-11-2008)

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