शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

बिहार में हुई थी गांधी के नैतिक मूल्यों की हत्या

सुरेंद्र किशोर
अक्सर मेरे मित्र, शुभचिंतक व रिश्तेदार मुझसे यह कहते रहे हैं कि मैं अब किताबें लिखूं। मैं करीब चालीस साल से पत्रकारिता में हूं, इसलिए वे ठीक ही कहते हैं। यह माना जाना चाहिए कि मेरे पास कुछ अनुभव इकट्ठे हो चुके हैं जिन्हें पाठकों के बीच भी बांटा जाना चाहिए। मैं भी चाहता हूं कि मैं कुछ किताबों पर पहले से जारी अपना स्थगित काम अब पूरा कर लूं। पर कुछ आलस्य और कुछ कार्य व्यस्तता के कारण फिलहाल यह संभव नहीं हो पा रहा है। शायद जल्दी ही इस दिशा में कुछ काम शुरू हो जाए ! कुछ वरिष्ठ पत्रकार मुझसे यह भी कहते हैं कि मैं कम से कम पत्रकारिता को लेकर अपने कुछ अनुभव बांटू। डर लगता है। आज कितने पत्रकार हैं जो किसी वरिष्ठ पत्रकार के साथ अनुभव बांटने को तैयार हैं ? शायद अत्यंत थोड़े ही हैं। उन थोड़े लोगों को इस डायरी की पहली किस्त के जरिए मैं बिहार के पत्रकारों से एक बात कहना चाहता हूं। यदि वे बिहार में या बिहार पर राजनीतिक पत्रकारिता करते हैं तो उन्हें कम से कम तीन चीजें पढ़ लेनी चाहिए। उनमें से पहली है अय्यर कमीशन की रपट। दूसरी है मधोलकर कमीशन की रपट। तीसरा है चारा घोटाले से संबंधित अदालत में दाखिल आरोप पत्र। अय्यर कमीशन और मधोलकर कमीशन की रपटों की कापियां पटना के ही गुलजार बाग में स्थित सरकारी प्रेस में मिल जाएंगीं। चारा घोटाले के आरोप पत्र की कापी कहां मिलेगी, यह तो मैं फिलहाल नहीं कह सकता, पर कहीं न मिले तो उन दिनों के दैनिक अखबारों की फाइलें तो पढ़ी ही जा सकती हैं। बिहार की राजनीति और राजनीतिक हस्तियों की दशा-दिशा समझने के लिए ये तीन चीजें जाननी चाहिए। इन्हें पढ़ने से इस राज्य की शासन व्यवस्था और यहां के नए-पुराने नेताओं व उनकी राजनीति की प्राथमिकताओं को समझने में सुविधा होगी। साथ ही किसी मुद्दे या व्यक्ति या दल पर अपनी राय तय करने में भी सहूलियत होगी। इनमें कई ऐसी बातें दर्ज हैं जिनकी चर्चा करने पर आज की पीढ़ी के कई लोग यह कह देते हंै कि शायद ऐसा नहीं हुआ होगा। आज महात्मा गांधी की पुण्य तिथि है। उनकी हत्या तो 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में हुई थी,पर उनके नैतिक सिद्धांतों की हत्या तो उनके ही कुछ प्रमुख बिहारी अनुयायियों ने उससे कुछ महीने पहले बिहार में ही कर दी थी। महात्मा गांधी ने बिहार में 1946 में गठित अंतरिम सरकार के एक मंत्री को हटा देने के लिए सरकार के मुखिया से कहा था। उस मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। पर तब सरकार के मुखिया ने ऐसा करने से साफ इनकार करते हुए कह दिया था कि मैं खुद इस्तीफा दे दूंगा, पर उस मंत्री को नहीं हटाउंगा। महात्मा उस मंत्री के बारे में कितना सही थे, यह बात अय्यर आयोग की रपट को पढ़ने से पता चलेगा। यह तो उदाहरण है। पर यह अकेला उदाहरण है, ऐसा कहना उस मंत्री के प्रति अन्याय होगा जिसे हटाने की सलाह बापू ने दी थी। बिहार एक दिन में बीमारू राज्य नहीं बना। इसे बीमारू और हास्यास्पद राज्य भगवान ने भी नहीं बनाया। बल्कि उन स्वार्थी नेताओं, अफसरों और समाज के दूसरे हिस्से के प्रभावशाली लोगों ने ही बनाया। इस दुर्गति का सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही रहा। अब जब इसे बीमारू राज्य से निकालने की कोशिश चल रही है तो इस काम में अनेक तत्व बाधक बन रहे हैं। ऐसी नौबत एक दिन में नहीं आई है। यह अकारण नहीं है कि मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने अपनी हाल की विकास यात्रा के दौरान यह घोषणा की कि वे अपनी ही सरकार में व्याप्त भष्टाचार के खिलाफ युद्ध छेड़ेंगे। यह भी अकारण नहीं है कि कल समाप्त हुए राजगीर जदयू चिंतन शिविर के मंच से मुख्य मंत्री को अपने ही दल के कार्यकत्र्ताओं से यह कहना पड़ा कि ‘लूट की छूट चाहिए तो दूसरा नेता चुन चुनिए।’
(30 जनवरी, 2009)

कोई टिप्पणी नहीं: