गुरुवार, 2 नवंबर 2017

  भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने वाली नरेंद्र मोदी 
 सरकार सी.बी.आई.को सशक्त बनाने के प्रति जरूरत के अनुपात में  जागरूकता नहीं दिखा रही है।
   सी.बी.आई.में फिलहाल करीब एक तिहाई पद खाली हैं जिनमें 1152 पदों पर तो जांच अधिकारी तक नहीं हैं।कुल 7274 पद सृजित हैं।इतने बड़े देश में यह संख्या भी नाकाफी है ।इस संख्या को देख कर लगता है कि यदि सर्वव्यापी भ्रष्टाचार की समस्या पहाड़ जैसी है तो सी.बी.आई.कर्मियों की संख्या चीटियों जैसी हैं।
 केंद्र  सरकार ने हाल में सी.बी.आई. में 598 नये पदों के सृजन की प्रक्रिया जरूर शुरू की है,पर आज की जरूरत के अनुपात में  वे अत्यंत नाकाफी हैं।रोज ब रोज कहीं न कहीं से सी.बी.आई.की जांच की मांग आती रहती है।क्योंकि लोगों का राज्य पुलिस पर भरोसा कम होता जा रहा है।कई मामलों में तो अदालतें ही जांच का भार सी.बी.आई.को सौंप देती हंै।
हाल में  खबर आई है कि सी.बी.आई.से संबंधित मुकदमों में सजा का  प्रतिशत 3 प्रतिशत घटा है। क्या मानव संसाधन की कमी के कारण ऐसा हो रहा है ?
फिर भी याद रहे कि सी.बी.आई.जितने मुकदमों का अनुसंधान करती है,उनमें से करीब 70 प्रतिशत मुकदमों में आरोपितों को अदालतों से सजा मिल जाती है।
  इस देश का दुर्भाग्य है कि इस मामले में राज्यों की  पुलिस का औसत प्रतिशत मात्र 45 है।बिहार का प्रतिशत तो 10 ही है।
 सी.बी.आई.में पदों की संख्या बढ़ाने से सरकार को जो अतिरिक्त खर्च आएगा,उसे सी.बी.आई.अपने कामों के जरिए  सूद सहित सरकार को लौटा देगी।
यानी भ्रष्टाचार के खिलाफ जितनी अधिक कार्रवाई,सरकार के पैसों की उतनी ही अधिक बचत ! पता नहीं , यह मामूली बात केंद्र सरकार को क्यों नहीं समझ में आती है ?


  

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