महात्मा गांधी और डा.आम्बेडकर के बीच हुए पूना पैक्ट के जरिए अनुसूचित जाति के लिए विधायिका में आरक्षण की राह खुली थी।
इन दोनों महान नेताओं के लिए वह पैक्ट बड़ी उपलब्धि के रूप में सामने आया था।
यह पैक्ट यानी समझौता 24 सितंबर 1932 को पूना के यरवदा जेल में महात्मा गांधी और डा.आम्बेडकर के बीच हुआ था।आजादी की लड़ाई के दौरान उन दिनों महात्मा गांधी जेल में थे।
उससे पहले ब्रिटिश सरकार ने दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचक मंडल बनाने का प्रस्ताव दिया था।महात्मा गांधी ने यह कहते हुए उसका विरोध कर दिया था कि इससे हिंदू समाज टूट जाएगा।महात्मा गांधी ने 20 सितंबर 1932 को जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया ।दरअसल ब्रिटिश सरकार ने पृथक निर्वाचक मंडलों के बारे में डा.आम्बेडकर का सुझाव मान लिया था।यह सुझाव गोलमेज सम्मेलन में डा.आम्बेडकर ने दिया था।
डा.आम्बेडकर नहीं चाहते थे कि महात्मा गांधी इस सवाल पर आमरण अनशन करें।डा.आम्बेडकर ने तब कहा था कि ‘मैं विश्वास करता हूं कि महात्मा जी अपने जीवन और हमारे लोगों के अधिकारों में से किसी एक को पसंद करने के लिए मुझे नहीं खींचेंगे।क्योंकि मैं अपने लोगों को आने वाली पीढि़यों में हिंदुओं के लिए उनके हाथ -पैर बांध कर उन्हें कभी न सौंप सकूंगा।’ डा. आम्बेडकर का यह बयान बहुत कड़ा था।पर जब महात्मा गांधी ने अनशन शुरू कर दिया तो डा.आम्बेडकर पिघले।उन्होंने कहा कि ‘अनशन से समस्या उत्पन्न हो गई और वह समस्या थी कि गांधी जी के प्राण कैसे बचाएं जाएं।उनके प्राण बचाने का केवल एक ही उपाय था ,वह यह कि ‘कम्युनल एवार्ड’ को बदल दिया जाए जिसे गांधी जी कहते थे कि उससे उन्हें बड़ा आघात पहुंचा है। ब्रिटिश प्रधान मंत्री ने इसे बहुत बार स्पष्ट कर दिया था कि ब्रिटिश मंत्रिमंडल अब उसे वापस नहीं लेगा न उसमें कोई परिवत्र्तन करेगा।बल्कि वे किसी ऐसे सिद्धांत जो सवर्ण हिंदुओं और अछूतों को मान्य हो,उसमें जोड़ने को थे।’
डा.आम्बेडकर ने कहा कि ‘ यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि मैं ऐसी स्थिति में पड़ गया कि वैसी सांप -छछूंदर की स्थिति में शायद कोई न पड़ा होगा।बहुत घबराने की स्थिति थी।मुझे दोनों में से किसी एक विकल्प को चुनना था।मेरे सामने कत्र्तव्य था जो मानवता का बड़ा अंग था गांधी जी के प्राणों की रक्षा करना।दूसरी ओर मेरे सामने समस्या थी अछूतों के उन अधिकारों की रक्षा करने की जिन्हें प्रधान मंत्री ने दिए थे।
मैंने मानवता की पुकार का वरण किया और महात्मा गांधी के प्राणों की रक्षा की और कम्युनल एवार्ड में ऐसे परिवत्र्तन करने पर मैं सहमत हो गया जिस पर गांधी जी सहमत थे।’
पूना पैक्ट के नाम से चर्चित इस समझौते का मूल स्वरूप इस प्रकार से थाः
1. प्रातीय विधान सभाओं में सामान्य निर्वाचित सीटों में से दलित वर्गों के लिए सीटें सुरक्षित की जाएंगी जो निम्न प्रकार से होंगी।
मद्रास -30 ,बम्बई और सिंध -15 ,पंजाब-8 , बिहार और उडी़सा-18 ,सेंट्रल प्रोविंस -20 ,आसाम - 7 ,बंगाल - 30 ,यू.पी.- 20 यानी कुल 148 ।
2. इन सीटों के लिए चुनाव संयुक्त निर्वाचन प्रणाली द्वारा किया जाएगा।
3. केंद्रीय व्यवस्थापिका में दलित वर्गों का प्रतिनिधित्व समझौते के उपर्युक्त पारा- दो के अनुसार होगा जो संयुक्त निर्वाचन प्रणाली के सिद्धांत पर होगा।
4. केंद्रीय व्यवस्थापिका में दलित वर्गों के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या 18 प्रतिशत होगी और उनका चुनाव भी उपर्युक्त पद्धति से होगा।
5 . अभ्यर्थियों के पैनल की प्राथमिक चुनाव व्यवस्था कें्रद्रीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं के लिए -जिनका ऊपर उल्लेख किया गया है-प्रथम दस वर्षों के बाद समाप्त हो जाएगी।
इसके अलावा भी कुछ प्रावधान किए गए थे।
पूना पैक्ट के नतीजे के बारे में डा.आम्बेडकर ने 1937 के चुनाव के बाद लिखा कि प्रश्न है कि पूना समझौता करने से अस्पृश्यों को क्या लाभ मिला ?
इसे समझने के लिए हमें विधान मंडलों के लिए हुए चुनाव परिणमों की निरख-परख करनी होगी।भारत सरकार अधिनियम 1937 की व्याख्या के अनुसार नये विधान मंडलों के लिए चुनाव हुए।जहां तक अस्पृश्यों कव संबंध है,फरवरी 1937 में जो चुनाव हुए,वे पूना समझौते के अनुसार हुए।संयुक्त प्रांत में आरक्षित कुल 20 सीटों में से 16 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जात हुई।
कुल मिलाकर देश की 151 सीटों में 78 सीटें कांग्रेस को मिलीं।’
@ लाइवबिहार.लाइव में प्रकाशित मेरा लेख@
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें