जय प्रकाश नारायण और नाना जी देशमुख की जयंती एक ही दिन पड़ती है।
यह एक संयोग है।पर इन दोनों नेताओं के बीच एक और खास ‘संबंध; भी है।
4 नवंबर 1974 को पटना में सी.आर.पी.एफ. के एक जवान ने जेपी पर जो लाठी चलाई थी,उसे बीच में ही नाना जी ने अपनी बांह पर रोक लिया था।वह लाठी इतनी जोरदार चली थी कि नाना जी को अपनी बांह के इलाज के लिए कई दिनों तक पटना के अस्पताल में रहना पड़ा था ।
यानी वह लाठी बीच में ही नहीं रोक ली गयी होती तो जेपी के साथ उस दिन कुछ भी हो सकता था।याद रहे कि उस दिन जेपी के नेतृत्व में प्रदर्शन के लिए जुलूस आगे बढ़ रहा था कि बीच में ही सी.आर.पी.एफ.ने भीड़ पर निर्मम लाठी चार्ज कर दिया।जब पुलिस छात्रों -नौजवानों को बेरहमी से पीटने लगी तो जेपी ने आगे बढ़कर कहा कि बच्चों को क्यों मारते हो, मुझे मारो।
पुलिस ने उन पर तथा उनके साथ आगे बढ़े नेताओं पर भी बेरहम प्रहार शुरू कर दिया।लाठी चार्ज मेें अनेक बड़े नेता भी घायल हुए जिनमें श्याम नंदन मिश्र,अली हैदर, लखन लाल कपूर और सर्वोदय नेता बाबू राव चंदावार भी शामिल थे।
पर जेपी को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका नाना जी देशमुख की थी।
इसको लेकर नाना जी काफी चर्चा में आए।जेपी आंदोलन में शामिल कुछ दलों के कुछ बड़े राष्ट्रीय नेता ईष्यालु हो गए।
उनमें से एक ने मुझसे पूछा था कि क्या यह सही है कि नाना जी ने अपने हाथ पर लाठी रोक ली थी ? मैंने कहा कि उस खास स्थल पर तो मैं उस समय नहीं था क्योंकि लाठी चार्ज शुरू होने के साथ ही काफी भगदड़ मच गयी।इसलिए मैं प्रत्यक्षदर्शी नहीं था।पर विभिन्न प्रत्यक्षदर्शियों की बातंे सुनने और अस्पताल में नाना जी की बांह की हालत देखकर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि बात सही है।
पटना मेडिकल काॅलेज के राजेंद्र सर्जिकल वार्ड में घायल नानाजी को देखने के लिए न सिर्फ जय प्रकाश नारायण गये थे ,बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी भी दिल्ली से आए।
एक पत्रकार के रूप में मैं भी वहां यदाकदा जाया करता था।अन्य अनेक आंदोलनकारी भी उस दिन लाठी चार्ज में घायल होकर उस अस्पताल में पड़े थे।उन दिनों मैं साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ का बिहार संवाददाता था।
संयोग से जिस दिन अटल जी आए थे तो मैं भी वहां था।
अटल जी ने खुद आमलेट बना कर नाना जी को खिलाया।
न सिर्फ नाना जी को बल्कि मेरे सहित वहां जो भी थे, सबके लिए अटल जी ने बारी -बारी से बनाया और खिलाया।
याद रहे कि नाना जी ही थे जिन्होंने जनसंघ में तब के बड़े नेता बलराज मधोक को दरकिनार करके अटल जी को आगे किया।मधोक जी थोड़ा अतिवादी थे,पर अटल जी समन्वयवादी।
जनसंघ के संगठन मंत्री नाना जी को संभवतः यह लगता था कि इस देश में मधोक के बदले वाजपेयी ही चलेंगे।
जेपी और नाना जी में एक और भी समानता रही।उन लोगों ने देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई,पर वे सत्ता में नहीं गए।
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