मंगलवार, 14 नवंबर 2017

खुशवंत सिंह चाहते थे कि नेहरू के खिलाफ लिखने वाले मथाई पर सरेआम लगे कोड़े




मशहूर पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह ने कहा था कि जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ लिखने वाले एम.ओ.मथाई को सरेआम कोड़े लगाए जाने चाहिए।
पाकिस्तान  के जिया उल हक जैसा शासक यहां होता तो वह मथाई को चैराहे पर कोड़े लगाने के लिए यहां भी कानून बनाता।
 पर, अपने खिलाफ लिखने वालों के साथ  खुद प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू का ऐसा सलूक नहीं था।वे कैसा  सलूक  
करते थे,उसका नूमना दिल्ली का एक बड़ा अखबार समूह था।
  प्रधान मंत्री नेहरू ने उस अंग्रेजी दैनिक अखबार और उस ग्रूप की साप्ताहिक पत्रिका का प्रवेश तीन मूत्र्ति भवन में बंद करवा दिया था।बस इतना ही।कोई दूसरी दंडात्मक कार्रवाई नहीं।तब प्रधान मंत्री तीन मूत्र्ति भवन में रहते थे।
  एम.ओ.मथाई प्रधान मंत्री नेहरू के 13 साल तक निजी सचिव रहे।
मथाई ने  नेहरू के सार्वजनिक जीवन और निजी जीवन के बारे में सत्तर के दशक में कई जानी-अनजानी बातें लिखीं।
 दो खंडों में लिखी गयी संस्मरणात्मक पुस्तकों को तब इंदिरा गांधी ने भी पढ़ी थी।
उन्होंने तो मथाई पर कोई कार्रवाई नहीं की किंतु  मीडिया और राजनीतिक हलकों में उस पर काफी चर्चाएं हुईं।तीखी प्रतिक्रियाएं भी हुईं।
उन पुस्तकों में जहां अधिकतर मामलों में नेहरू की तारीफ की गयी है,वहीं कुछ बातें  उनके खिलाफ भी जाती हैं।
इन पुस्तकों को पढ़ने पर  कई लोगों की यह धारणा बनी  कि किसी नेता के निजी सचिव को अपने बाॅस के बारे में ऐसी बातें ंंनहीं लिखनी चाहिए।यदि लिखता है तो उसे नमक हराम ही माना जाएगा।
कुछ लोगों ने मथाई को सरेआम नमक हराम  कहा। मथाई ने इस पर यह सफाई दी कि ‘सच कहा जाए तो नेहरू जी भी मेरे उतने ही आभारी थे जितना मैं उनका।’
  मथाई की नेहरू के बारे में कुल मिलाकर कैसी राय थी,उसे मथाई की सिर्फ एक टिप्पणी से समझा जा सकता है।
एक बार जार्ज फर्नांडिस ने नेहरू के खिलाफ एक कड़ा बयान दिया था।उस पर मथाई ने कहा कि नेहरू एक महान नेता थे।
जार्ज फर्नांडिस नेहरू के जूते का फीता बांधने की भी औकात नहीं रखते ।’
  लोहियावादी समाजवादियों की एक विचार पत्रिका ‘सामयिक वात्र्ता’ ने मथाई की पुस्तकोंे के बारे में अपने 1979 के  जुलाई अंक में लिखा कि ‘पुस्तक में इंदिरा गांधी और उनके बेटों के बारे में ऐसी चर्चाएं हैं जिसे हमारे भद्र समाज के लोग अच्छा नहीं मानते हैं।अपनी दोनों पुस्तकों से मथाई ने अपने को निश्चय ही छिछला व्यक्ति साबित कर दिया है।पर दोनों पुस्तकें उन लोगों के छिछलेपन को भी प्रकट करती है जिन्हें हम संभ्रांत ,सुरूचिसंपन्न और बहुत कुछ समझते हैं।
और इसी अर्थ में मथाई के छिछलेपन के बावजूद उनकी पुस्तकों का अर्थ गंभीर हो जाता है।’
 मथाई की एक पुस्तक का नाम है -नेहरू युग,जानी-अनजानी बातेंें।दूसरी पुस्तक का नाम है-नेहरू के साथ तेरह वर्ष।हिंदी में उन्हें वाणी प्रकाशन ने छापा था।पर अब वे पुस्तकें शायद आउट आॅफ प्रिंट हो गयी हंै।
 कुछ बातों और विवादों को नजरअंदाज कर दें तो इन दो पुस्तकों को पढ़ने से यह लग जाता है कि आजादी के बाद के हमारे शासकों ने देश के साथ कितना अच्छा और कितना बुरा किया।
दरअसल मथाई तेरह साल तक केंद्र की सत्ता के जितना करीब थे,उतना अन्य कोई नहीं था।इसीलिए कुल मिलाकर मथाई की किताबों का कोई जोड़ नहीं है।
   किसी एक लेखक की पुस्तक से किसी शीर्ष नेता की पूरी अच्छाइयों और सारी कमियों का एक साथ पता चल जाए,ऐसा बहुत कम होता है।पर मथाई ने यह काम कर दिया है।
 मथाई की पुस्तक के महत्व का इस बात से भी पता चलता है कि  यू.पी.एस.सी.की तैयारी कराने वाली एक नामी संस्था ने अनिवार्य रूप से पढ़ी जाने वाली पुस्तकों की सूची में मथाई की पुस्तकों को भी उन दिनों शामिल किया था।
मेरी भी यह राय रही है कि आजादी के तत्काल बाद के भारत की दशा-दिशा किसी को जाननी हो तो उसे मथाई की पुस्तकें पढऩी  चाहिए ।और, आजादी के शुरूआती वर्षों के  बिहार के हुक्मरानों  को बाहर -भीतर से जानना हो तो अय्यर कमीशन की रपट पढ़ी जानी चाहिए।@लाइवबिहार.लाइव में 14 नवंबर 2017 को प्रकाशित मेरे काॅलम भूले-बिसरे से@

   
  
  


  

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