संयोग से मैंने आज सुबह इ टी नाउ चैनल लगा दिया।
उस पर न्यायपालिका पर गंभीर चर्चा चल रही थी।
मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि अतिथियों में कोई
व्यक्ति अपनी बारी से पहले नहीं बोल रहा था।
विभिन्न चैनलों पर इन दिनों जारी टाॅक शो के भारी शोर गुल, हंगामे और अशालीन शब्दों के प्रयोग के कारण उत्पन्न भीषण गर्मी के बीच इ टी नाउ पर आज की चर्चा ठंडीे हवा के झोंके की तरह थी।
अन्य चैनलों को भी चाहिए कि जहां तक संभव हो सके वे शालीन स्वभाव के वैसे अतिथियों को ही बुलाएं जिनकी आदत बारी से पहले बोलने की ना हो।यदि कोई बोलते हैं तो उनकी आवाज बंद कर दी जानी चाहिए।
इससे होगा यह कि श्रोतागण बातें सुन और समझ सकेंगे ।उनके समय का सदुपयोग होगा।चैनलों और एंकरों की साख बढ़ेगी।
चैनलों पर आने वाले कुछ खास नेता तथा अन्य पेशे के कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी उदंडता के लिए कुख्यात हैं।वे न तो शालीनता का ध्यान रखते हैं और न ही एंकरों की बात मानते हैं।यह भी नहीं सोचते कि उनकी बात कोई सुन या समझ पा रहा है भी या नहीं ।
पता नहीं, कुछ एंकर भी ऐसे शोरगुल की अनुमति क्यों देते हैं ! जहां भी मैं किसी चैनल पर ऐसे उदंड वक्ताओं-प्रवक्ताओं को देखता हूं, तुरंत चैनल बदल देता हूं।
वैसे भी शोरगुल और हंगामे के कारण ऐसी टी वी चर्चाओं में मेरी रूचि कम होती जा रही है।
आप कहेंगे कि इ टी नाउ की आज की चर्चा में जितने प्रतिष्ठित व शालीन लोगों को बुलाया गया था,उतनी संख्या में प्रतिष्ठित व शालीन लोग राजनीतिक चर्चाओं के लिए उपलब्ध ही नहीं हैं।पर मेरी समझ है कि चैनल वाले यदि खोजेंगे तो मिल सकते हैं।राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं में से भी कुछ शालीन हैं तो कुछ अन्य अशालीन।
हालांकि मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जितने अतिथि इन दिनों चैनलों पर आते हैं, वे सब के सब अशालीन ही हैं।उनमें कुछ शालीन लोग भी हैं।पर उनकी आवाज दब जाती है।
उस पर न्यायपालिका पर गंभीर चर्चा चल रही थी।
मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि अतिथियों में कोई
व्यक्ति अपनी बारी से पहले नहीं बोल रहा था।
विभिन्न चैनलों पर इन दिनों जारी टाॅक शो के भारी शोर गुल, हंगामे और अशालीन शब्दों के प्रयोग के कारण उत्पन्न भीषण गर्मी के बीच इ टी नाउ पर आज की चर्चा ठंडीे हवा के झोंके की तरह थी।
अन्य चैनलों को भी चाहिए कि जहां तक संभव हो सके वे शालीन स्वभाव के वैसे अतिथियों को ही बुलाएं जिनकी आदत बारी से पहले बोलने की ना हो।यदि कोई बोलते हैं तो उनकी आवाज बंद कर दी जानी चाहिए।
इससे होगा यह कि श्रोतागण बातें सुन और समझ सकेंगे ।उनके समय का सदुपयोग होगा।चैनलों और एंकरों की साख बढ़ेगी।
चैनलों पर आने वाले कुछ खास नेता तथा अन्य पेशे के कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी उदंडता के लिए कुख्यात हैं।वे न तो शालीनता का ध्यान रखते हैं और न ही एंकरों की बात मानते हैं।यह भी नहीं सोचते कि उनकी बात कोई सुन या समझ पा रहा है भी या नहीं ।
पता नहीं, कुछ एंकर भी ऐसे शोरगुल की अनुमति क्यों देते हैं ! जहां भी मैं किसी चैनल पर ऐसे उदंड वक्ताओं-प्रवक्ताओं को देखता हूं, तुरंत चैनल बदल देता हूं।
वैसे भी शोरगुल और हंगामे के कारण ऐसी टी वी चर्चाओं में मेरी रूचि कम होती जा रही है।
आप कहेंगे कि इ टी नाउ की आज की चर्चा में जितने प्रतिष्ठित व शालीन लोगों को बुलाया गया था,उतनी संख्या में प्रतिष्ठित व शालीन लोग राजनीतिक चर्चाओं के लिए उपलब्ध ही नहीं हैं।पर मेरी समझ है कि चैनल वाले यदि खोजेंगे तो मिल सकते हैं।राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं में से भी कुछ शालीन हैं तो कुछ अन्य अशालीन।
हालांकि मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जितने अतिथि इन दिनों चैनलों पर आते हैं, वे सब के सब अशालीन ही हैं।उनमें कुछ शालीन लोग भी हैं।पर उनकी आवाज दब जाती है।
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