रविवार, 19 नवंबर 2017

अस्पतालों-बाजारों के शौचालयों को ठीक कराए राज्य सरकार



बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा इन दिनों अपने -अपने विभाग के कामों को ठीकठाक करने के लिए सक्रिय नजर आ रहे हैं।
  अच्छी बात है।उत्साह और अच्छी मंशा को देख कर उम्मीद की जा सकती है कि इन विभागांे में अब बेहतरी आएगी।
पर पुराने अनुभव बताते हैं कि  शुरूआती उत्साह पर पानी फिर जाता है जब वास्तविकता से पाला पड़ता है।
दरअसल  आम लोगों से संबंधित इन विभागों को भीषण भ्रष्टाचार ने जितनी मजबूती से जकड़ रखा है,उसमेंे कुछ परिणामदायक काम कर पाना असंभव नहीं तो बहुत कठिन जरूर है।
न तो सभी सरकारी डाक्टरों को उनकी ड्यूटी पर हाजिर कराना
आसान काम है और न ही नगरों की सफाई कराना।
देखना है कि नये मंत्री कितना सफल होते हैं ! मेरी शुभकामना हे।
  हां, ये मंत्री द्वय अपने- अपने महकमे के तहत आने वाले   शौचालयों को ही ठीक कर पाएं तो भी वे नाम कमा लेंगे।
 किसी व्यक्ति की सफाई पसंदगी की जांच इससे नहीं होती कि वह अपना ड्राइंग रूम कितना साफ रखता है बल्कि इससे होती है कि वह शौचालय और रसोई घर के साथ कैसा सलूक करता है।
सन 1972 के मुख्यमंत्री केदार पांडे सिर्फ एक काम के लिए आज भी यदा-कदा याद किए जाते हैं।उनकी सरकार ने परीक्षाओं में कदाचार को बिलकुल ही समाप्त कर दिया था।
    क्या पटना के मौर्य लोक मार्केट काम्प्लेक्स के शौचालयों को ठीक करना आसान काम है ? वर्षों  के अनुभव बताते हैं कि इस काम में बड़े -बड़े हुक्मरान फेल कर गए हैं।
उधर मौर्य लोक जाने वाले हजारों स्त्री -पुरुषों को कितनी परेशानी होती है, वह वे ही जानते हैं।
 वहां अभी जो शौचालय है, वह नरक तुल्य है।उसमें कोई प्रवेश भी नहीं करना चाहता।
 यही हालत राज्य के अन्य मार्केट के शौचालयों का भी  है।कई स्थानों में तो शौचालय हैं ही नहीं।
इससे अधिक मुश्किल काम तो है सरकारी अस्पतालों और निजी क्लिनिकों के शौचालयों को इस्तेमाल लायक बनाना है।
अनेक निजी क्लिनिकों में तो शौचालय का कोई प्रावधान ही नहीं होता है।हैं भी वे इस्तेमाल लायक नहीं होते जबकि चिकित्सकों की आय कम नहीं है।
वैसे विभिन्न पैथों से जुड़े वैसे चिकित्सकों के क्लिनिकों में भी शौचालय नहीं हंै जहां रोज सैकड़ों मरीज और उनके परिजन जाते हैं। इस मानवीय पक्ष की ओर संबंधित मंत्री ध्यान देंगे तो उन्हें लोगबाग याद रखेंगे।
  भ्रष्टाचार के खिलाफ हाईकोर्ट की सराहनीय पहल--
एक निजी चैनल ने स्टिंग आपरेशन के जरिए पटना लोअर कोर्ट के 
कर्मचारियों को रिश्वत लेते पकड़ा और पटना हाई कोर्ट ने तत्काल  उन्हें निलंबित कर दिया।
हाई कोर्ट की इस पहल की सराहना हो रही है।
इस कदम से हाई कोर्ट से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं।
दरअसल ऐसा भ्रष्टाचार सिर्फ पटना कोर्ट तक ही सीमित नहीं है।हाईकोर्ट से उम्मीद बंधी है कि वह अन्य जिलों की ओर भी
ध्यान देगा ताकि आम लोगों की कठिनाइयां कम हो सकें। 
  कचहरियों में ऐसी घूसखोारी की खबरें पहले भी मिलती रही हैं।
पर ताजा स्टिंग आपरेशन में जिस तरह निर्भीक होकर बेशर्मी से और अधिकारपूर्ण ढंग से पैसे ऐंठते हुए कर्मचारी देखे जा रहे हैं,उससे लगता है कि हाल के वर्षों में भ्रष्ट कर्मी अधिक निर्भीक हो गए हैं।
ऐसी निर्भीकता उनमें कैसे आई ?
हाई कोर्ट प्रशासन को इस मनोवृति के पीछे के कारणों की जांच करनी होगी।तभी इस समस्या का समाधान हो पाएगा और गरीब व निःसहाय वादी -प्रतिवादी राहत पा सकेंगे।
   भ्रष्टाचार चीन में अधिक या भारत में ?---
चीन में यह कहा जा रहा है कि ‘यदि चीन खुद को सोवियत संघ की तरह तबाह होने से बचाना चाहता है तो उसे भ्रष्टाचार से और मजबूती से लड़ना होगा।’ क्या भारत के हुक्मरान और विरोधी दलों के नेतागण इस बात पर आकलन  करेंगे कि हमारे यहां चीन से कम भ्रष्टाचार है या अधिक ?
यदि इस देश में भ्रष्टाचार बढ़ता गया तो इस देश का क्या हाल होगा ?
भारत में क्यों भ्रष्टाचार हमेशा ही एक राजनीतिक मुद्दा बन जाता है ?
क्या भ्रष्टाचार कभी देशहित का मुददा  भी बनेगा ? कुछ अपवादों को छोड़ दें तो देश के हर कोने से और हर महकमे से भीषण भ्रष्टाचार की खबरें आ रही हैं।
भ्रष्टाचार को लेकर दिग्गजों की चिंता पुरानी--
महात्मा गांधी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इस देश में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार पर समय -समय पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
पर भ्रष्टाचार है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए।’
जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के तत्काल बाद कहा था कि ‘भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैम्प पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए।’
1988 में समाजवादी नेता और पूर्व सांसद मधु लिमये ने कहा था कि ‘ इस देश के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं।’
सन 1998 में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री मन मोहन सिंह ने कहा था कि ‘इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है।’
सन 2008 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूत्र्ति बी.एन.अग्रवाल और न्यायमूत्र्ति जी.एस.सिंघवी ने कहा कि ‘भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता।’
2003 में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे.एम.लिंगदोह ने कहा कि ‘राज नेता कैंसर हैं जिनका इलाज संभव नहीं है।’
सन् 1998 में केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव एन. सी.सक्सेना ने कहा कि ‘भ्रष्टाचार में जोखिम कम और मुनाफा अधिक है।’
1997 में तो संसद ने राजनीति के अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के खिलाफ मिल कर अभियान चलाने के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया।
इन सब के बावजूद चीजें सुधरती नजर नहीं आ रही हैं।जो थोड़े लोग भ्रष्टाचार के महा दानव के खिलाफ अभियान शुरू करते हैं,उनके खिलाफ ही ताकतवर शक्तियां उठ खड़ी हो जाती हैं।  
     एक भूली बिसरी याद---
सन् 1986 में पुष्पा भारती ने ‘धर्मयुग’ के लिए  लिखे अपने लेख में इन शब्दों में इंदिरा गांधी को याद किया था-- ‘इंदिरा जी के जन्म दिवस पर सोनिया हमेशा चावल और चने से बने कश्मीरी व्यंजन ‘सरवारी’ और मीठे चावल बनवाती थीं।नेहरू परिवार में हर मांगलिक अवसर पर ये चीजें जरूर पकती हैं।
पर अब उनका मन नहीं होता।
एक हूक सी उठती है जी में।पर समय चक्र तो घूमेगा ही और 19 नवंबर आएगा ही।
सोनिया चुपचाप मां के कमरे के सामने दरवाजे पर आम की पत्तियों 
का तोरण लगवा देंगी।प्रियंका के साथ कमरे के हर कोने में फूल सजा देंगी।चादरें ,तकियों के गिलाफ, मेजपोश और तौलिये, सभी कुछ नये रखवा देंगी।
कमरे का माहौल तो नया हो जाएगा, पर क्या होगा उन यादों का जो हमेशा पुरानी ही होती हैं !’  
   और अंत में---
मशहूर भौतिकशास्त्री  स्टीफन हाॅकिन्स ने हाल में यह कहा है कि ‘सन् 2600 तक पृथ्वी आग का गोला बन जाएगी।’
हाॅकिन्स की ऐसी भविष्यवाणियां पढ़कर अनेक लोग उनका मजाक उड़ाते हैं।
पर, दिल्ली के पर्यावरण का जो हाल है,उसे देखकर आप हाॅकिन्स की बातें हवा में उड़ा सकते हैं ?
@प्रभात खबर-बिहार -में 17 नवंबर 2017 को प्रकाशित मेरे कानोंकान काॅलम से@

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