सत्तर के दशक की बात है। बिहार के एक बड़े नेता ने आत्म हत्या कर ली।उन दिनों इस बात की चर्चा थी।
नेता जी स्वतंत्रता सेनानी थे।बाद में बिहार सरकार के मंत्री बने थे।उन पर भ्रष्टाचार केे आरोप लगे थे।जेल जाने की नौबत आ गयी थी।
स्वतंत्रता सेनानी के रूप में तो वे सगर्व जेल जाते थे।पर, भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने से बेहतर उन्होंने मर जाना समझा।
हालांकि उन पर मामूली आरोप थे।
देश में आज के अनेक नेताओं पर सरकारी खजाने की लूट और महा लूट के जितने बड़े-बड़े आरोप लग रहे हैं,उनके मुकाबले उस नेता जी पर जो आरोप थे,उसे अधिक से अधिक ‘पाॅकेटमारी’ का आरोप कहा जा सकता है।आज कितना फर्क आ गया है राजनीति में पहले के मुकाबले !
नेता जी स्वतंत्रता सेनानी थे।बाद में बिहार सरकार के मंत्री बने थे।उन पर भ्रष्टाचार केे आरोप लगे थे।जेल जाने की नौबत आ गयी थी।
स्वतंत्रता सेनानी के रूप में तो वे सगर्व जेल जाते थे।पर, भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने से बेहतर उन्होंने मर जाना समझा।
हालांकि उन पर मामूली आरोप थे।
देश में आज के अनेक नेताओं पर सरकारी खजाने की लूट और महा लूट के जितने बड़े-बड़े आरोप लग रहे हैं,उनके मुकाबले उस नेता जी पर जो आरोप थे,उसे अधिक से अधिक ‘पाॅकेटमारी’ का आरोप कहा जा सकता है।आज कितना फर्क आ गया है राजनीति में पहले के मुकाबले !
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