सोमवार, 6 नवंबर 2017

  मैं सुनता था कि ईश्वर की तरह इस देश में भ्रष्टाचार भी
सर्वव्यापी है।पहले यह बात मुझे एक कहावत भर लगती
थी।
लगता था कि किसी को  अपनी
बात को दमदार बनाना होता है तो वह ऐसा कह देता है।
पर, हाल के कुछ अनुभवों से अब लग रहा है कि वह सिर्फ  कहावत नहीं बल्कि  हकीकत है।हालांकि अपवाद तो सब जगह होते हैं।
बिहार के देहाती इलाके से मेरे एक रिश्तेदार ने एक माह पहले  फोन पर सूचना दी थी कि ‘ स्थानीय बैंक शाखा में  खाता खोलने के लिए  बैंक कर्मी ने मुझसे रिश्वत मांगी है।क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता ! कैसी सरकार है यह ?’
  एक परिचित कल पटना स्थित मेरे आवास पर आए।वह राजस्व कर्मचारी के यहां से लौट रहे थे।
मैंने उनसे कहा कि पहले तो  मालगुजारी  बहुत कम लगती थी। महंगी के अनुपात में उसमें बढ़ोत्तरी हुई है या नहीं ?
उन्होंने बताया कि बढ़ोत्तरी भी हुई है,पर एक नया खेल भी चल रहा है।
अब राजस्व कर्मचारी को रसीद काटने के लिए प्रत्येक रसीद पर सौ रुपए की रिश्वत भी देनी पड़ती है।उसके बिना वह रसीद काटेगा ही नहीं। 
  इसे ही कहते हैं लहर गिन कर पैसे कमाना ।
मेरी जानकारी के अनुसार बैंक खाता खोलने और मालगुजारी की रसीद कटवाने में रिश्वतखोरी की परंपरा संभवतः हाल में शुरू हुई है।
यानी जहां भी पहले काम मुफ्त में हो जाता था,वहां भी भ्रष्टाचार पहुंच चुका है।लगता है कि घूसखोर लोग पिछले  जन्म में कवि थे।कहा ही जाता है कि ‘जहां न पहुंचे रवि, वहां जाए  कवि !’ कृपया कवि जी बुरा न मानेंगे।मैंने सिर्फ पहंुच
के मामले मेें यह तुलना की।अन्य मामलों में कत्तई नहीं।

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