शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

  स्वघोषित अभिभावको ! आदत से बाज आओ
     --सुरेंद्र किशोर-- 
आज सोशल मीडिया में मुख्यतः तीन तरह 
के लोग सक्रिय हैं।
1.-नरेंद मोदी के समर्थक 
2.-नरेंद्र मोदी के विरोधी
3.-निरपेक्ष-यानी मोदी के अच्छे कामों के
समर्थक और
खराब कामों के विरोधी  
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तीनों अपनी -अपनी जगह पर सही हैं जब तक 
कि वे तथ्यपरक हैं।
सूचना में शक्ति होती है।
तीनों से तथ्यपरक सूचनाएं देने की उम्मीद की जाती है।
टिप्पणियां भी उन्हीं तथ्यपरक सूचनाओं पर आधारित हों।
इससे लोगों को ज्ञानवर्धन भी होता है।
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पर,इसके  विपरीत असल में हो क्या रहा है !!?
आपस में बतकूचन अधिक हो रही है।
जिस तरह अधिकतर टी.वी चैनलों की बहसों में होती है।
अक्सर कुछ लोग, कुछ अन्य लोगों के स्वघोषित गार्जियन की 
भूमिका निभाने लगते हैं।
कुछ शालीनता से तो कुछ अन्य बदतमीजी से।
उनकी अपनी -अपनी प्रतिबद्धताएं हैं।
या फिर उनकी डोर किसी अन्य के हाथों में हैं।
कई मामलों में पैसे,विचारधारा और जातिवाद तथ्यों पर हावी रहते हैं।
कुछ लोग बौद्धिक अहंकार में डूबे रहते हैं।
 मोदी समर्थक ,मोदी विरोधियों को उपदेश दे रहे हैं।
मोदी विरोधी, मोदी समर्थकों को प्रवचन दे रहे हैं।
निष्पक्ष लोगों को बारी -बारीे से दोनों के प्रवचन सुनने पड़ जाते  हैं।
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अरे भई ,दूसरे क्या कर रहे हैं, इसकी चिंता छोड़कर 
अपनी भूमिका निभाइए।
दूसरों में समय क्यों लगा रहे हैं ?
आप तथ्य संकलन कीजिए।
लोगों तक पहुंचाइए।
इंफाॅरमेशन इज पावर !
आज कौन ठीक काम कर रहा है और कौन गलत,
इसका निर्णय समय कर देगा।
समय बड़ा निर्मम होता है।
लेखन के स्तर पर इतिहास को छिपाने व उसे तोड़ने-मराड़ने
की यदा -कदा कोशिश होती रहती है।
पर सही बातें कानोंकान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक 
पहंुचती रहती है।    
लोग सही समय पर सही निर्णय कर देते हैं।
अपने हीरो और विलेन तय कर देते हैं।
कल्पना कीजिए !
आज से सौ साल पहले हमारे कौन -कौन हीरो और 
कौन वीलेन थे ?
क्या हम जिन्हें सौ साल पहले जैसा मानते थे ,
उन्हें ही आज भी उसी रुप में मानते हैं ?
अपवादों को छोड़कर 
ऐसा नहीं है।
 डा.राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि किसी महापुरुष 
की मूत्र्ति उसके निधन के सौ साल बाद ही लगाई जानी चाहिए।
क्योंकि सौ साल मंे इतिहास उसके बारे में विचार तय कर चुका होता है।
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--10 अप्रैल 20 

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