नरेंद्र मोदी बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे।
बाद के वर्षों में पार्टी आॅफिस में यदाकदा झाड़ू भी
लगा देते थे ।
आज वे प्रधान मंत्री हैं और एक सफल प्रधान मंत्री हैं।
यही नहीं, धीरुभाई अंबानी जीवन के प्रारंभिक दिनों में यमन में पेटोल पंप पर अटेंडेंट थे।
पर आज उनका परिवार देश का सर्वाधिक अमीर घराना है।
इन दो महारथियों ने मामूली कामों से शुरुआत करने में कोई संकोच नहीं किया था।
पर आज अनेक लोग इस संकोचवश कि अपने लोग क्या कहेंगे, अपने घर के आसपास ऐसे काम की संभावना को भी नकारते हुए अन्य प्रदेशों में चले जाते हैं।
और जब कोरोना जैसी विपत्ति आती है तो उन्हें वहां से लौटने तक मंे अपार कष्ट होता है।
वैसे तमाम लोग जो मजदूरी करने के लिए बिहार-उत्तर प्रदेश से दूसरे प्रदेशों में जाते हैं,यह भी सच है कि उनमें से सभी लोग अपने घरों के आसपास काम नहीं पा सकते।
कुछ लोग अधिक कमाई के लिए बाहर जाते हैं।जाते रहेंगे।
उसमें हर्ज नहीं है।
पर जिन लोगों के पास घर में ही इतने साधन उपलब्ध हैं कि वे कोई छोटी सी दुकान से शुरूआत कर सकते हैं,वे क्यों जाएं ?
जो आटा चक्की या फिर कर्ज से जीप खरीद सकते हैं।वे भी बाहर चले जाते हैं।
ऐसा वे पारिवारिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए करते हैं।
ऐसा परिवार और इतना मामूली काम ?लोग क्या कहेंगे ?
विपत्ति में अपनों का सहारा
...................................................
दिल्ली से बिहार लौटे मजदूर को यह कहते सुना गया कि हम अब फिर कभी दिल्ली नहीं जाएंगे।
पता नहीं,यह तात्कालिक रोष था या
यह स्थायी भाव भी बनेगा !
यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
साथ ही, यह बात भी कही जानी चाहिए कि दिल्ली वालों को अपना दिल थोड़ा बड़ा करना चाहिए।
पटना में घर बेच कर दिल्ली में बसे एक बुजुर्ग व्यक्ति ने
मुझसे पिछले दिनों कहा था कि
‘‘मुझसे गलती हो गई।यहां कोई सामाजिक जीवन है ही नहीं।’’
बिहार में बिजली आपूत्र्ति और सड़कों की स्थिति पहले से बेहतर है।
इसलिए छोटे -मोटे स्वरोजगार की गंुजाइश भी बढ़ी है।
यदि कृषि आधारित उद्योगों की ओर सरकारें कुछ अधिक ध्यान दंे तो भी पलायन कम हो सकता है।
इस बीच एक अच्छी खबर आई है।
कोरोना और उसके कुप्रभाव से अर्थ- व्यवस्था को बचाने के लिए केंद्र सरकार बाजार से 4.88 लाख करोड़ रुपए जुटाएगी।
बेहतर हो, इन पैसों में से कुछ कृषि आधारित उद्योग में लगाने से किसानों को भारी लाभ मिलेगा।
किसानों की क्रय शक्ति बढ़ेगी तो वे करखनिया माल भी अधिक खरीद सकेंगे।उससे कारखाने भी बढ़ेंगे।
सब दिन रहत न एक समाना
........................................
कोरोना वायरस के लिए सब बराबर हैं।क्या राजा और क्या रंक !
एक तरफ परेशान होकर मजदूर दिल्ली से पैदल अपने गांवों की ओर जा रहे हैं तो
दूसरी ओर अनेक अपार दौलत के मालिक अपनी संपत्ति का आकलन कर रहे हैं।कुछ वसीयत तैयार करने के लिए वकीलों से विमर्श कर रहे हैं।
शेयर बाजार का मौजूदा रुख कायम रहा तो आने वाले दिनों में पता नहीं क्या-क्या होने वाला है।
कोराना का असर शेयर बाजार ही नहीं अर्थ -व्यवस्था पर भी पड़ना ही है।
इस देश के लिए संतोष की बात है कि जानकार लोगों के अनुसार अन्य अनेक देशों की अपेक्षा हम लोग बेहतर स्थिति में रहेंगे।
कोरोना जैसी विपत्ति जब आ जाती है तो कई लोगों को लगता है कि कफन में जेब नहीं होती।
पर विपत्ति टलने के साथ ही अनेक लोग एक बार फिर समझने लगते हैं कि वे यहां का ‘कमाया’ शायद लेकर ऊपर भी जाएंगे !!
......................................
उपलब्धियों के साथ-साथ
मारक विफलताएं भी
.....................................
नाग पुर के एक डाक्टर ने सुप्रीम कोर्ट से एक याचना की है।वह याचना चिकित्सकों को जरुरी उपकरण मुहैया कराने के लिए है।
डाक्टर चाहते हैं कि देश भर के चिकित्साकर्मियों को पर्सनल प्रोटेक्सन की सामग्री मिले।
इसके लिए अदालत सरकार को निदेश दे।
अब भला बताइए कि इतनी छोटी किंतु जरुरी चीज के
लिए आजादी के 70 साल बाद भी किसी को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़े।यह अत्यंत चिंता की बात है।
आजादी के बाद से ही टैक्स के पैसांे के दुरुपयोग व लूट के कारण ऐसी नौबत आई है।
इसी के साथ यह भी खबर है कि इस देश में कोरोना मरीजों की जांच में देरी इसलिए भी हो रही है क्योंकि हमारे देश में बहुत कम संख्या में प्रयोगशालाएं हैं।
कोरोना विपत्ति से उबरने के बाद उम्मीद है कि इस देश की सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों की बुनियादी जरुरतों पर जरुर कुछ अधिक काम करेंगी।
क्योंकि इस देश के गरीब कौन कहे, सामान्य आय के लोगों की कमाई भी निजी चिकित्सा व शिक्षा का खर्च उठाने लायक नहीं है।
और अंत में
...........................
यूनानी कहावत है और सही भी है कि
‘‘ईश्वर उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हंै।’’
पटना में प्रशासन ने घाट पर जाने से रोका तो छठव्रती रो पड़ीं।
उधर दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में शामिल लोगों ने क्या किया,वह भी लोगों ने देखा।
....................
--कानोंकान, प्रभात खबर,
पटना,3 अप्रैल 20
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें