अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी ?
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किसी संगठन या सत्ता के पास बिदुर जैसा सलाहकार
होना चाहिए या शकुनी जैसा ?
कौरव पक्ष के पास तो दोनों तरह के सलाहकार थे।
पर, उसने शकुनी की सलाह मानी ।
बिदुर की सलाह को ठुकराया।
नतीजा क्या हुआ ?
डीडी भारती पर जारी धारावाहिक ‘महाभारत’ की अगली
किस्तों से नई पीढ़ी को भी नतीजे का पता चल जाएगा।
आज यह देखकर दुःख होता है कि कुछ संगठनों में न सिर्फ नेतृत्व की गुणवत्ता का संकट है,बल्कि अच्छे सलाहकारों की भी भारी कमी है।
यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
वैसे यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कौन नेता किस तरह की सलाह को मानता है और कौन किस सलाह को ठुकरा देता है।
काफी पहले की बात है।
एक बार एक व्यक्ति ने बिना मांगे एक सलाह एक मुख्य मंत्री को दे दी थी।
सलाह यह थी कि आप अपने मंत्रिमंडल से चार प्रमुख जातियों के सारे मंत्रियों को निकाल बाहर कर दें।
आपकी राजनीति और चमक जाएगी।
उस मुख्य मंत्री ने वह बात नहीं मानी।
पर आज के कुछ नेता इस तरह की बातें भी मान कर अपने ही पैरों में लगातार कुल्हाड़ी मारते जा रहे हैं।
...................................
कुल्हाड़ी मारने के कुछ उदाहरण-
1.-एक राजनीतिक दल ने 2019 के लोस चुनाव से पहले सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत
आरक्षण का संसद में विरोध कर दिया।
2.-दूसरे राजनीतिक दल मोदी सरकार से मांग कर दी कि सरकार मीडिया को विज्ञापन देना बंद कर दे।
3.-एक नेता ने आज यह आरोप लगा दिया कि भाजपा संकट में नफरत फैला रही है।
जबकि इस नेता ने तब्लीगी जमात के प्रमुख के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया। जबकि उस पर नफरत फैलाने का आरोप बनता था।
तब्लीगी मरकज के मौलाना मोहम्मद शाद ने हाल में कहा था कि
‘‘कोरोना कोई बीमारी नहीं है।
बल्कि एक मुसलमान को दूसरे मुसलमान से अलग करने की साजिश है।’’
शाद की आवाज में यह बात टीवी चैनलों पर असंख्य लोगों ने सुनी भी।
ऐसा कह कर उसने अपने अनुयायियों को नियम-कानून-प्रतिबंध तोड़ने के लिए उकसाया।
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--सुरेंद्र किशोर--23 अप्रैल 20
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किसी संगठन या सत्ता के पास बिदुर जैसा सलाहकार
होना चाहिए या शकुनी जैसा ?
कौरव पक्ष के पास तो दोनों तरह के सलाहकार थे।
पर, उसने शकुनी की सलाह मानी ।
बिदुर की सलाह को ठुकराया।
नतीजा क्या हुआ ?
डीडी भारती पर जारी धारावाहिक ‘महाभारत’ की अगली
किस्तों से नई पीढ़ी को भी नतीजे का पता चल जाएगा।
आज यह देखकर दुःख होता है कि कुछ संगठनों में न सिर्फ नेतृत्व की गुणवत्ता का संकट है,बल्कि अच्छे सलाहकारों की भी भारी कमी है।
यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
वैसे यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कौन नेता किस तरह की सलाह को मानता है और कौन किस सलाह को ठुकरा देता है।
काफी पहले की बात है।
एक बार एक व्यक्ति ने बिना मांगे एक सलाह एक मुख्य मंत्री को दे दी थी।
सलाह यह थी कि आप अपने मंत्रिमंडल से चार प्रमुख जातियों के सारे मंत्रियों को निकाल बाहर कर दें।
आपकी राजनीति और चमक जाएगी।
उस मुख्य मंत्री ने वह बात नहीं मानी।
पर आज के कुछ नेता इस तरह की बातें भी मान कर अपने ही पैरों में लगातार कुल्हाड़ी मारते जा रहे हैं।
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कुल्हाड़ी मारने के कुछ उदाहरण-
1.-एक राजनीतिक दल ने 2019 के लोस चुनाव से पहले सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत
आरक्षण का संसद में विरोध कर दिया।
2.-दूसरे राजनीतिक दल मोदी सरकार से मांग कर दी कि सरकार मीडिया को विज्ञापन देना बंद कर दे।
3.-एक नेता ने आज यह आरोप लगा दिया कि भाजपा संकट में नफरत फैला रही है।
जबकि इस नेता ने तब्लीगी जमात के प्रमुख के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया। जबकि उस पर नफरत फैलाने का आरोप बनता था।
तब्लीगी मरकज के मौलाना मोहम्मद शाद ने हाल में कहा था कि
‘‘कोरोना कोई बीमारी नहीं है।
बल्कि एक मुसलमान को दूसरे मुसलमान से अलग करने की साजिश है।’’
शाद की आवाज में यह बात टीवी चैनलों पर असंख्य लोगों ने सुनी भी।
ऐसा कह कर उसने अपने अनुयायियों को नियम-कानून-प्रतिबंध तोड़ने के लिए उकसाया।
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--सुरेंद्र किशोर--23 अप्रैल 20
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