मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कांग्रेस सरकार बनाम रामनाथ गोयनका वाला ‘इंडियन एक्सप्रेस’

भूली-बिसरी याद


इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह के मालिक रामनाथ गोयनका का दो -दो बार कांग्रेस सरकारों से भीषण संघर्ष हुआ था। किसी अन्य मीडिया समूह से केंद्र सरकार की शायद ही कभी वैसी भिड़त हुई होगी! पहली बार इंदिरा गांधी सरकार से और दूसरी बार राजीव गांधी सरकार से।

इन भिड़ंतों के परिणामस्वरूप गोयनका व एक्सप्रेस समूह पर शासन ने समय -समय पर अनगिनत मुकदमे लादे। विकली के संपादक प्रीतीश नंदी से लंबी बातचीत में आर.एन.जी. यानी रामनाथ गोयनका ने एक बार कहा था कि आई.पी.सी. में जितनी धाराएं हैं, उन सबके तहत हम पर मुकदमे हो चुके हैं।

आर.एन.जी.स्वतंत्रता सेनानी भी थे। संविधान सभा के सदस्य थे। दो बार लोकसभा के लिए भी चुने गए थे। गोयनका जी जयप्रकाश नारायण के मित्र थे। उन्होंने जेपी आंदोलन का समर्थन किया था। आपातकाल में इंदिरा सरकार ने एक्सप्रेस समूह के निदेशक मंडल को भंग करके उसके प्रधान पद पर एक दूसरे अखबार समूह के मालिक को बैठवा दिया था।

एक दिन गुस्से में लाल रामनाथ गोयनका तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल के आफिस में गए। उन्हें इतनी कड़ी बातें कह कर आ गए जितनी कड़ी बातें किसी अखबार मालिक ने कभी किसी केंद्रीय मंत्री को सामान्य दिनों में भी नहीं कही होगी, वह तो आपातकाल था।

स्वतंत्र चेता लोगों के लिए आपातकाल में भय-आतंक का ऐसा माहौल सरकार ने बना रखा था जैसा अंग्रेजों के राज में भी नहीं था। जानकारों के अनुसार गोयनका जी लौटते समय सोच रहे थे कि पहुंचने के साथ ही मैं गिरफ्तार कर लिया जाऊंगा। पर उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई।

गोयनका जी को बाद में महसूस हुआ कि उसका कारण क्या था। फिरोज गांधी कभी एक्सप्रेस के प्रबंधक निदेशक थे। गोयनका के पास के उस परिवार से संबंधित कुछ सनसनीखेज दस्तावेज थे।
गिरफ्तारी के बाद उनके लीक हो जाने का भय था।



गोयनका जी की सरकार से दूसरी भिड़ंत राजीव गांधी के शासनकाल में हुई। राजीव के शासन काल के प्रारंभिक दिनों में तो गोयनका राजीव से खुश थे। तब तक राजीव की छवि ‘मिस्टर क्लीन’ की थी। संभवतः इसीलिए राजीव से दोस्त सुमन दूबे को एक्सप्रेस का संपादक बना दिया गया था।

पर जब बोफोर्स तथा एक पर एक अन्य घोटालों के दलदल में राजीव सरकार फंसती चली गई  तो एक्सप्रेस समूह से सरकार का टकराव हो गया। नतीजतन एक्सप्रेस समूह परिसर में छापामारी के लिए सरकारी एजेंसियों को लगा दिया गया।

नई दिल्ली स्थित एक्सप्रेस बिल्डिंग के एक हिस्से को ध्वस्त करने का उप राज्यपाल जगमोहन ने आदेश जारी कर दिया। पर अंततः सुप्रीम कोर्ट में गोयनका की जीत हुई।

इस बीच गोयनका के एक्सप्रेस समूह पर एकतरफा पत्रकारिता का आरोप लगता रहा। पर अंततः दोनों मामलों में यह बात साबित हुई कि गोयनका व एक्सप्रेस सही थे। सही बातें कहने के सिलसिले में कोई एकतरफा भी नजर आता है तो इस देश की अधिकतर जनता उसे पसंद करती है। किया भी।

इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए लोस चुनाव में न सिर्फ इंदिरा सरकार सत्ता से बाहर हो गई, बल्कि खुद इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी लोकसभा की अपनी सीटें भी हार गए।

अस्सी के दशक के बोफोर्स आदि विवाद के बाद राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी की ऐसी हार हुई कि उसके बाद कांग्रंस को कभी लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका।


  ---सुरेंद्र किशोर-28 अप्रैल 2020     

  

कोई टिप्पणी नहीं: