सिर्फ आपदा आने पर ही हमें सालती है भ्रष्टाचार-काहिली की कथाएं--सुरेंद्र किशोर
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कोरोना वायरस ऐसी महामारी है जिसका मुकाबला अमीर देश भी नहीं कर पा रहे हैं।
जरुरतों के अनुपात में वहां भी मेडिकल संरचनाएं नाकाफी ही साबित हो रही हैं।
सर्वाधिक पीड़़ादायक स्थिति यह है कि इस मर्ज की दवा तक का इजाद होना अभी बाकी है।
पर, इस बीच हमारा हाल कैसा है ?
सरकार व जनता का मनोबल तो ऊंचा है।
इसे बनाए रखने में सरकार का भी योगदान है।
पर, मरीजों की देखभाल के लिए ढांचागत प्रबंधन यहां पहले ही जैसा अत्यंत नाकाफी है।
इस देश में जितने डाॅक्टर चाहिए,उससे पांच लाख कम हैं।ग्रामीण व अर्ध शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य से संबंधित ढांचागत व्यवस्था तो
राम भरोसे है।
न तो हम पर्याप्त संख्या में चिकित्सा कर्मी तैयार कर पाएं हैं और न ही अस्पताल और बेड।
सरकारी अस्पतालों की आधी मशीनें
तो खराब ही रखी जाती है।
हमारे पास वैसी क्षमता तो कत्तई नहीं है कि हम चीन की तरह 10 दिनों में 1000 बेड का अस्थायी अस्पताल बना लें।
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यहां सिस्टम में भ्रष्टाचार व काहिली हंै।
स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करने के लिए कंेद्र और राज्य सरकारें जितने पैसों का आबंटन भी करती हैं,उसका सदुपयोग नहीं हो पाता।
आबंटन भी जरुरत के अनुपात में कम ही होता है।
निगरानी तंत्र में ही घुन लगा हुआ है।
तंत्र का अधिकतर अंग लूट की ताक में रहता है।यह हाल कमोवेश पूरे देश का है।
हमारी अनेक अन्य समस्याओं का भी सबसे बड़ा व मूल कारण भ्रष्टाचार ही है।
भारत के बारे में चीन में एक कहावत है-‘‘भारत सरकार अपने बजट के पैसों को ऐसे लोटे में रखती है जिसमें अनेक छेद हैं।’’
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महान उक्तियों के बावजूद
नतीजा निराशाजनक
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आजादी के बाद से ही नेताओं ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने की जरुरत समझी।
फिर भी स्थिति में अब जाकर थोड़ा सुधार हुआ है।
यानी पिछले कुछ वर्षों में महा घोटाले तो थमे हैं,पर खुदरा घोटाले जारी हैं।यदि हमें कोरोना जैसी विपत्ति पर अपनी दयनीयता के कारण शर्मिंदा नहीं होना है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के सिवा कोई चारा नहीं।
इस मौके नेताओं की उक्तियों से आपको अवगत करा दूं।
भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए--महात्मा गांधी।
भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैंप पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए--जवाहर लाल नेहरू।
भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी फेनोमेना है--इंदिरा गांधी।
सत्ता के दलालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए--राजीव गांधी।
मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं --मधु लिमये।
इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है--मनमोहन सिंह।
भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता--सुप्रीम कोर्ट ।
.भ्रष्ट लोगों से छुटकारा पाने का रास्ता यही है कि कुछ लोगों को लैंप पोस्ट से लटका दिया जाए-सुप्रीम कोर्ट।
‘‘हमारा संकल्प है जनता को लूटने वालों को उनकी सही जगह पहुंचाने का।
इस पर काम हो रहा है।
कुछ लोग चले भी गए हैं।
खुद को कानून से ऊपर मानने वाले बेल के लिए चक्कर काट रहे हैं।’’
--नरेंद्र मोदी।
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आत्म मंथन का अच्छा अवसर
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इन दिनों घर से बाहर निकलना मना है।इसलिए लगभग सारी गतिविधियां ठप हैं।
राजनीतिक गतिविधियों का ठप होना नेताओं के लिए अखरने वाली बात है।
पर, कोई हर्ज नहीं !
बाहर नहीं तो नेता जी खुद के भीतर ही चले जाएं !
थोड़ा आत्म -मंथन कीजिए।
सोचिए कि आपने पिछले कुछ वर्षों में क्या खोया और क्या पाया ?
खोया तो क्यों खोया ?
पाया तो उसे बनाए रखने के लिए आपको क्या-क्या करना है ?
क्या वैसा आप कर रहे हैं ?
या, कुछ दूसरे ही दुनियादारी ‘‘काम-धंधे’’ में लगे हुए हैं ?
दुबले होते एक राजनीतिक दल की स्थिति कैसे सुधरे ?
उस पर उस दल के हितचिंतकों के अनेक लेख इन दिनों छप रहे हैं।
कारण भी बताए जा रहे हैं और निराकरण भी।
पर सुधार के कोई लक्षण नहीं।
क्योंकि कारण भी गलत है और निराकरण भी।
यहां तक कि एक खास रपट को भी कांग्रेस हाईकमान ने नजरअंदाज कर दिया।
एंटोनी कमेटी ने रपट सोनिया गांधी को 2014 में ही दे दी।
उसमें अन्य कारणों के साथ- साथ यह भी लिखा गया था कि मतदाताओं को, हमारी पार्टी अल्पसंख्यक की तरफ झुकी हुई लगी जिसका हमें नुकसान हुआ।
पर कांग्रेस हाईकमान ने एंटोनी की इस बात को भी नजरअंदाज कर दिया।वैसे भी एंटोनी साहब की सीमा है।खुल कर वे पूरी बात बोल नहीं सकते।
इसलिए बेहतर यह होगा कि कांग्रेस कुछ खास तरह के विशेषज्ञों को विदेश से बुलाए।
उनसे कहें कि हमारी दुर्दशा के कारणों को आप ही हमें निर्भीक होकर बताएं।ं
साथ ही उससे उबरने के उपाय भी।
शायद कोई राह मिल जाए !
यदि कांग्रेस सचमुच कोई राह खोजना चाहती है !!
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और अंत में
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आपात काल में दुकानदारों के लिए यह जरुरी कर दिया गया था कि
वे अपनी दुकानों में मूल्य सूची टांगेें।
वे टांगने को मजबूर थे।
आज कोरोना वायरस आपदा से उत्पन्न स्थिति का गलत लाभ उठाकर कुछ व्यापारी मुनाफाखोरी कर रहे हैं।
क्या प्रशासन मूल्य सूची की तख्ती लटकाने के लिए उन्हें एक बार फिर बाध्य नहीं कर सकता ?
सब्जी के एक ही बाजार में एक ही सब्जी कई भाव में बिकती रहती हैं।
शासन चाहे तो हर सब्जी मार्केट में एक -एक मूल्य सूची का बोर्ड लगवा सकता है।
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27 मार्च 20 के प्रभात खबर,पटना में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से ।
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