देश के प्रमुख अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने आज के ‘हिन्दुस्तान’ में लिखा है कि
‘‘सरकार के पास अब संसाधन काफी कम होंगे।
सरकार को इनका इस्तेमाल कुछ इस तरह से करना होगा कि उत्पादन बढ़े और मांग की स्थिति भी पैदा हो।’’
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कल कहा है कि
‘‘आत्म निर्भर और स्वावलंबी बनना कोरोना महामारी से
मिला सबसे बड़ा सबक है।
गांवों को समृद्ध करने का वक्त आ गया है।’’
उत्तर प्रदेश के पूर्व डी.जी.पी. प्रकाश सिंह ने दैनिक जागरण-25 अप्रैल, 20- में लिखा है कि
‘‘पाकिस्तान से जो खतरे हैं,वे तो अपनी जगह पर हैं।
उससे भी ज्यादा खतरा वैश्विक स्तर पर जेहादी आतंक से होने वाला है।’’
इन और इस तरह की स्थितियों से इस देश की सरकारों को
जल्दी ही निपटना होगा।
कैसे निपटेगी ?
क्या पुरानी रीति-नीति काम आएगी ?
कत्तई नहीं।
किसी भी घनघोर समस्या से जूझने ,विकास और कल्याण करने की राह में भारत की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है।
अन्य समस्याएं द्वितीय महत्व की है।
नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उस पर एक हद तक काबू पाया गया है।
पर, अब भी इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना बाकी है।
कोरोना से निपटने के बाद इस देश की अर्थ व्यवस्था में नई जान फंूकनी पड़ेगी।
क्या इस देश के भ्रष्ट नेता,व्यापारी और अफसर ऐसा करने देंगे ?
जब तक भ्रष्टाचार में मुनाफा अधिक और घाटा कम है,
तब तक वे इस देश का पुनर्निर्माण नहीं करने देंगे।
अपना ही घर भरते जाएंगे।
मेरी समझ से कोरोना संकट से निपटने के तत्काल
बाद केंद्र सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे।
1.-भ्रष्टाचार के लिए फांसी का प्रावधान करना ही होगा।
जरुरत पड़ने पर अन्य मामलों में सजाएं बढ़ाई जाती ही रही हैं।
2.-सांसद-विधायक फंड को हमेशा के लिए समाप्त करना होगा।
यह भ्रष्टाचार का ‘रावणी अमृत कुंड’ है।
अधिकतर अफसर व सांसद अपनी सेवा अवधि के प्रारंभिक काल
से ही...............।सब नहीं।
3.-पूर्व केंद्रीय मंत्री चतुरानन मिश्र ने अपनी संस्मरणात्मक पुस्तक ‘‘मंत्रीत्व का अनुभव’’ में लिखा है कि
नब्बे के दशक में केंद्रीय कृषि मंत्रालय से जुड़े संस्थान के निदेशक पद पर
तैनाती के लिए उम्मीदवार को दस
लाख रुपए की रिश्वत देनी पड़ती थी।
नरेंद्र मोदी को खुफिया तौर पर इस बात का पता लगाना चाहिए कि
यह गोरखधंधा अब भी जारी है या बंद है ?
कोई घूस देकर कहीं पद पाएगा तो वह भ्रष्टाचार का कोरोना ही तो फैलाएगा !!
मोदी मंत्रिमंडल के किसी सदस्य पर अब तक महा घोटाले का आरोप तो नहीं लगा है , इस बात की आम लोग भी सराहना करते हैं,पर उससे ठीक नीचे के स्तर को लेकर अब भी कई आशंकाएं व अफवाहें हैं।
उसे सुधारे बिना कोरोना द्वारा नष्ट किए जा रहे इस देश को बाद में भी संभालना मुश्किल होगा।
4.- इस देश में आई.ए.एस.की संख्या तत्काल बढ़ाई जानी चाहिए।
इसके लिए व्यापक तौर पर ‘‘लेटरल बहालियां’’ हों।
उन्हें राज्यों में भी तैनात किया जाए।
यदि जरुरत हो तो संविधान में संशोधन हो।
इस देश की विभिन्न सरकारों में मलाईदार पद अधिक हैं
और आई.ए.एस.अफसर कम।
आप आम तौर पर उनकी बदली करते हैं।
साधारणतया उससे समस्या बनी की बनी रह जाती है।
इस देश में आई.ए.एस.अफसरों के बीच के जो
ईमानदार लोग हैं,उन्हें भी
कत्र्तव्यनिष्ठ बने रहने में अक्सर कठिनाई होती है।
5.- प्रधान मंत्री की बातों से लगता है कि डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के बारे में सही सूचनाएं उन्हें नहीं मिल रही हैं।
उनकी धारणा है कि अब ऐसा नहीं होता कि दिल्ली से सौ पैसे चलते हंै और 15 पैसे ही पहुंच पाते हंै।
मोदी जी को लगता है कि सौ के सौ पैसे पहुंच जा रहे हैं।
मुझे तो सरजमीन से इससे विपरीत खबरें मिलती रहती हैं।
85 पैसों की तो लूट अब नहीं है।
पर लूट तो जारी है।
कितनी लूट है ?
उसकी नमूना जांच प्रधान मंत्री प्रामाणिक एजेंसी से करा लें।
नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट में जो भूमिका निभाई है,
उससे मोदी जी की लोकप्रियता बढ़ी है।
इसलिए इस महामारी से उबरने के बाद मोदी सरकार
कुछ कड़े कदम उठाने का भी जोखिम ले सकती है।
क्योंकि अपवादों को छोड़ कर यह आम धारणा है कि
मोदी गलती कर सकता है,पर बेईमानी नहीं।
ऐसा कदम जैसा सिंगापुर के प्रधान मंत्री ली कुआन यू ने
कभी उठाया था।
अनुशासित व ईमानदार प्रशासन के जरिए ली कुआन ने सिंगा पुर के लोगों की प्रति व्यक्ति आय को 500 डालर से बढ़ा कर 55 हजार डाॅलर कर दिया था।
कुआन के 2015 में निधन के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा था कि
‘‘वे एक दूरदर्शी राजनेता थे।
नेताओं में सिंह थे।
ली कुआन का जीवन हर किसी को अमूल्य सीख देता है।’’
मोदी जी, आपके लिए भी वह सीख लेने का एक अवसर आ गया है।
मत चूको चैहान !!
............................
25 अप्रैल 2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें