सारे सरकारी विज्ञापन बंद कर देने
की आपकी खुन्नस भरी मांग
में इमरजेंसी वाली
मानसिकता प्रकट हो
गई सोनिया जी !
..............................................
--सुरेंद्र किशोर-
लगता है कि तानाशाही मानसिकता के मामले में सोनिया गांधी इमर्जेंसी वाली इंदिरा गाधी से भी एक कदम आगे चली र्गइं हैं।
इमरजेंसी में भी सभी अखबारों के सारे सरकारी विज्ञापन बंद नहीं हुए थे।
पर, सोनिया गांधी कह रही हैं कि
‘‘दो साल के लिए सरकार को प्रिंट,टेलीविजन और आॅनलाइन मीडिया को कोई विज्ञापन नहीं देना चाहिए।’’
यदि सोनिया जी ने यह कहा होता कि गैर जरुरी सरकारी विज्ञापन न छपे तो बात समझ में आती।
तब कहा जाता कि सोनिया किसी निजी खुन्नस के तहत यह बयान नहीं दे रही हैं।
दरअसल जो बात संभव ही नहीं है ,उसकी मांग कर देना खुन्नस निकालना भर ही तो है !
क्या यह संभव है कि सांसदों की वेतन आदि की सारी सुविधाएं समाप्त कर दी जाएं ?
संभव नहीं है,इसीलिए तो मात्र 30 प्रतिशत की
ही कटौती की गई।
यदि सोनिया की सलाह मानकर सरकार कोई विज्ञापन न दे तो देश में अगले दो साल तक सारे निर्माण कार्य भी ठप हो जाएंगे।
क्योंकि निर्माण कार्यों के टेंडर अखबारों में ही तो निकलते हैं।
सरकार जनहित में अन्य अनेक जरुरी सूचनाएं तथा निदेश अखबारों के जरिए ही तो लोगों तक पहुंचाती है।
आज के दैनिक जागरण ने ठीक ही लिखा है-
‘‘आपातकाल की तरह ही मीडिया को फिर से नष्ट करने की मानसिकता पार्टी पर हावी हो रही है।’’
8 अप्रैल 20
की आपकी खुन्नस भरी मांग
में इमरजेंसी वाली
मानसिकता प्रकट हो
गई सोनिया जी !
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--सुरेंद्र किशोर-
लगता है कि तानाशाही मानसिकता के मामले में सोनिया गांधी इमर्जेंसी वाली इंदिरा गाधी से भी एक कदम आगे चली र्गइं हैं।
इमरजेंसी में भी सभी अखबारों के सारे सरकारी विज्ञापन बंद नहीं हुए थे।
पर, सोनिया गांधी कह रही हैं कि
‘‘दो साल के लिए सरकार को प्रिंट,टेलीविजन और आॅनलाइन मीडिया को कोई विज्ञापन नहीं देना चाहिए।’’
यदि सोनिया जी ने यह कहा होता कि गैर जरुरी सरकारी विज्ञापन न छपे तो बात समझ में आती।
तब कहा जाता कि सोनिया किसी निजी खुन्नस के तहत यह बयान नहीं दे रही हैं।
दरअसल जो बात संभव ही नहीं है ,उसकी मांग कर देना खुन्नस निकालना भर ही तो है !
क्या यह संभव है कि सांसदों की वेतन आदि की सारी सुविधाएं समाप्त कर दी जाएं ?
संभव नहीं है,इसीलिए तो मात्र 30 प्रतिशत की
ही कटौती की गई।
यदि सोनिया की सलाह मानकर सरकार कोई विज्ञापन न दे तो देश में अगले दो साल तक सारे निर्माण कार्य भी ठप हो जाएंगे।
क्योंकि निर्माण कार्यों के टेंडर अखबारों में ही तो निकलते हैं।
सरकार जनहित में अन्य अनेक जरुरी सूचनाएं तथा निदेश अखबारों के जरिए ही तो लोगों तक पहुंचाती है।
आज के दैनिक जागरण ने ठीक ही लिखा है-
‘‘आपातकाल की तरह ही मीडिया को फिर से नष्ट करने की मानसिकता पार्टी पर हावी हो रही है।’’
8 अप्रैल 20
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