रविवार, 26 अप्रैल 2020

आजादी और गुलामी का फर्क
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बहुत साल पहले मैंने एक आई.सी.एस.अफसर 
का संस्मरण पढ़ा था।
वह अंग्रेजों के जमाने में एक जिले का कलक्टर था।
उसने लिखा कि जब किसी गांव में आग लगती थी तो वहां राहत पहंुचाने के लिए सरकार के पास कोई फंड नहीं हुआ करता था।
  हमलोग स्थानीय व्यापारियों से आग्रह करते थे कि वे मदद करें।
 उनसे जो कुछ मिलता था,उसी से उन अभागों को थोड़ी-बहुत राहत पहुंच पाती थी।
   अब आज का जमाना देखिए।
कोरोना महामारी के समय में विभिन्न हमारी सरकारें लोगों को राहत पहुंचा रही हैं।
  कितना पहुंचा रही हैं,कैसे पहुंचा रही हैं ,इसको लेकर मतभेद हो सकता है।
पर आज का हाल अंग्रेजों के जमाने जैसा तो नहीं ही है !
आजादी ने हमें अपने लोगों का ध्यान रखने का भरसक अवसर दिया है। 
   यदि आजादी के बाद की विभिन्न सरकारों के कामकाज और उपलब्धियों पर गौर करें तो माना जाएगा कि बहुत काम हुए हैं।
पर, उतने नहीं हुए जितने हो सकते थे।
मुख्य कारण सरकारी भ्रष्टाचार रहा।
नतीजतन 2011-12 के आंकड़ों  के अनुसार इस देश के 21 दशमलव 9 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे थे।
यह आंकड़ा सुरेश तेंदुलकर कमेटी की रपट पर आधारित है।
उनमें से करीब 20 करोड़ लोगों को एक ही जून का भोजन उपलब्ध था।
बाद के वर्षों का आंकड़ा जानना भी दिलचस्प होगा।
मेरे पास नहीं है।
पर, बहुत अधिक फर्क तो नहीं ही आया होगा !
यदि फर्क आया होता तो हजारांे-हजार मजदूरों के 
पैदल मार्च का दृश्य आज उपस्थित नहीं होता। 
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कोरोना महामारी के बाद के वर्षों में क्या हमारे हुक्मरान 
कुछ ऐसे ढंग से और इस गति से शासन चलाएंगे ताकि 
कोई भी भारतीय 
भूखा न सोए ? !!
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---सुरेंद्र किशोर--26 अप्रैल 20  
    

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