शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

        अरबपति नेताओं से  

       ..............................................

पटना के अदालतगंज स्थित जनशक्ति भवन में सी.पी.आई. के नेताओं ने कोरोना संक्रमितों के लिए हेल्पलाइन सेंटर खोला है।

भामाशाह फांउडेशन अपने ढंग से राहत के काम में जुटा है।

पटना के महिला काॅलेज की शिक्षिका अपराजिता कृष्णा भोजन का इंतजाम कर रही हैं तो गौरव राय आक्सीजन का।

 यह सूची लंबी है।

 इस बीच इस देश के वैसे नेतागण याद आते हैं जिन्होंने सरकारी कोष व अन्य तरीकों से अरबों रुपए लूट रखे हैं।

उनकी ओर से भी तो कोरोना मरीजों को कुछ मदद मिले !!

इससे उनके कुछ पाप धुल जाएंगे।

  आप जानते हैं कि देश भर में फैले वैसे अरबपति नेतागण कौन -कौन हैं !

यहां नाम लेने की जरूरत नहीं।

   जिस गरीब देश का नेता हर हफ्ते अपनी पुलिस से अपने व अपने आका के लिए सौ करोड़ रुपए की वसूली करवाता हो,उसकी ओर से या उसके आका की ओर से कोरोना पीड़ितों की कितनी व क्या मदद हो रही है ?

वैसे वह सौ करोड़ी नेता अकेला नहीं है।

अनेक ने कंबल ओढ़ की घी पिया है।

कुछ अब भी पी भी रहे हैं।

  जियो के टावर तोड़ने वालों व अंबानी

 को इस देश के हर मर्ज की वजह बताने वालों की अब उनके प्रति कैसी राय है जो अंबानी 

जीवनदायी आक्सीजन का इंतजाम कर रहा है ?

.....................................

29 अप्रैल 21



1 मई मधु लिमये का जन्म दिन है

................................................................

अपवादों को छोड़कर आज संसद सहित इस देश की विधायिकाओं मेें आए दिन हंगामा,अराजकता और अशोभन दृश्य उपस्थित होते रहते हैं।

 ...........................................

कई सांसद व विधायक मानते हैं कि हंगामा करके ही वे मीडिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं।

क्योंकि पढ़ने-लिखने,रिसर्च करने व तथ्य एकत्र करके 

सदन के भीतर शासन को निरूत्तर करने की क्षमता-योग्यता उनमें नहीं है।

.......................................................

वे योग्यता हासिल करना भी नहीं करना चाहते।क्योंकि सांसद बनने के लिए वह कोई अनिवार्य गुण रहा नहीं।

..........................................

लोकतंत्र की शालीनता-गरिमा पर छाए ऐसे विकट संकट की घड़ी में मधु लिमये याद आते हैं।वे किसी 

हंगामे के बिना ही संसद व सरकार को हिलाते रहते थे।

लिमये अपनी सीट छोड़कर कभी सदन के वेल में गए

हों,ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिला।

..........................................

    ---सुरेंद्र किशोर--  

.......................................................                       

    बिहार के मुंगेर व बांका से बारी- बारी से लोक सभा में चार बार गये मधु लिमये ने यह सिखाया था कि किसी हंगामे के बिना भी विधायका में किस तरह कटु सत्य भी प्रभावकारी तरीके से बोले जा सकते हैं।

 पर इसके लिए सदन के नियमों की बेहतर जानकारी होनी चाहिए।

   उसके इस्तेमाल की सलाहियत भी।

यह सब सन 1964 में बिहार से पहली बार लोक सभा में गये मधु लिमये को अच्छी तरह आता था।

   दुःख की बात है कि आज विधायिकाओं में अपनी बातें  कहने के लिए प्रमुख दलों को भी  अक्सर हंगामे का सहारा लेना पड़ता है।

  जबकि, मधु लिमये तो ‘वन मैन आर्मी’ थे।

संसद व विधान सभाओं  की गरिमा का अवमूल्यन आज की तरह ही  जारी रहा तो इस देश की लोकतांित्रक व्यवस्था के प्रति ही लोगों के मन में इज्जत बहुत घट जाएगी।

   यह और भी दुःख की बात है कि आज संसद या फिर विधायिका की गरिमा घटाने में करीब- करीब सभी दलों का योगदान है।

  ऐसे में मधु लिमये जैसे ‘‘सभा -चतुर’’ नेता अधिक ही याद आते है।

  वैसे बिहार से चुनाव जीत कर संसद के दोनों सदनों में बारी -बारी से  गये नामी -गिरामी राष्ट्रीय नेताओं की भी कमी नहीं रही।

 उन बड़े नेताओं व काबिल पार्लियामेंटेरियनों में बिहारी भी थे और गैर बिहारी भी।

   पर सबमें मधु लिमये का स्थान बेजोड़ था।

आजादी के बाद बिहार से लोक सभा व राज्य सभा के संदस्य बने नेताओं में जे.बी.कृपलानी,अशेाक मेहता,जार्ज फर्नाडिस,

आई.के.गुजराल,युनूस सलीम,कपिल सिब्बल,रवींद्र वर्मा,नीतीश भारद्वाज,मीनू मसानी,लक्ष्मी मेनन और एम.एस.ओबराय प्रमुख थे।

   पर इनमें मधु लिमये का स्थान अलग था।

   इनके कारण भी बिहार और मुंगेर के नाम दुनिया भर में गौरवान्वित हुए।

  मधु लिमये का बिहार से कुछ खास तरह का लगाव भी रहा।

   वे बिहार से मात्र सांसद ही नहीं थे बल्कि वे राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के साथ-साथ  बिहार की समस्याओं को भी समान ऊर्जा व मनोयोग से संसद के भीतर व बाहर उजागर करते थे।

.................................................................

   बिहार पर उनके लेखन व भाषण  चर्चित हुए। 

हंगामे के बिना आज जिन छोटे -बड़े सांसदों व दलों के लिए अपनी बातें कह पाना कठिन होता है,उन्हें मधु लिमये की संसदीय शैली से इस मामले में अब भी कुछ सूत्र सीख लेना चाहिए । 

   हालांकि यह थोड़ा कठिन दिमागी कसरत का काम है जिससे हमारे अधिकतर नेता जरा दूर ही रहना चाहते हैं।

समाजवादी विचारक मधु लिमये का जन्म 1 मई 1922 को पूणे में हुआ था।

   उनका निधन 8 जनवरी 1995 को दिल्ली में हुआ।

  वे दो बार मुंगेर/1964 और 1967 /और दो बार बांका /1973 और 1977/से लोक सभा सदस्य चुने गये।

   सांसद के रूप में मधु लिमये ने तत्कालीन केंद्र सरकार को इतना हिला दिया था कि इंदिरा गांधी ने 1971 में तत्कालीन बलशाली कांग्रेसी नेता व शेरे बिहार के नाम से चर्चित राम लखन सिंह यादव के सामने अपनी आंचल पसार कर उनसे यह आग्रह किया था कि  आप मुंगेर और बाढ़ की  सीटें हमें विशेष तौर पर उपहार में दे दीजिए।

यानी, इंदिरा जी मधु लिमये और तारकेश्वरी सिंहा को किसी भी कीमत पर हरवाना चाहती थीं।

 इस काम में यादव जी ने उनकी भारी मदद भी की थी। 

दोनों हार गए थे।

  लालू प्रसाद से पहले राम लखन जी ही बिहार के यादवांें के सबसे बड़े नेता थे।

 वैसे भी तब गरीबी हटाओ का नारे का इंदिरा जी के पास बल  था। 

   पर दो साल बाद ही यदि मधु लिमये एक उप चुनाव के जरिए बिहार के ही बांका से 

लोक सभा मंे ंचले गये थे तो यह उनके प्रति बिहारी कृतज्ञ मानस का उपकार का भाव ही था।

  मधु ने बिहार का नाम और भी ऊंचा किया था।

मधु लिमये की चर्चा करने पर 

कुछ  विदेशी राजनयिक भी दिल्ली में यह पूछते थे कि वे कहां से चुनाव जीतते हैं ? 

   याद रहे कि मुंगेर या बांका चुनाव क्षेत्र ब्राहमण बहुल नहीं माना जाता।

   इस सूचना के बाद कई विदेशी राजनयिकों  के मन में यह बात भी कुलबुलाने लगती थी कि तब क्यों बिहार को जातिवादी राज्य कहा जाता है ?

............................................................................... 

    मधु लिमये ने ऐसे समय में लोक सभा में अपनी संसदीय योग्यता की धाक जमाई थी जब के स्पीकर सरदार हुकुम सिंह लोहियावादी समाजवादी सांसदों के सदन में खड़ा होने के साथ ही उन्हें  तत्काल बैठा देने की कोशिश करने लगते थे। क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वे जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गांधी  के खिलाफ कोई कटु बात बोल दे।

   नेहरू 1964 तक प्रधान मंत्री थे।

  नेहरू के कटु आलोचक व अदमनीय समाजवादी नेता डा.राममनोहर लोहिया ने 1963 में लोक सभा में प्रवेश करने के साथ ही नेहरू पर ऐसे कठोर प्रहार शुरू कर दिये थे कि स्पीकर सदा सतर्क रहते थे।

    पर यदि मधु के पास संसदीय फोरम के इस्तेमाल की चतुराई थी,तो उन्हें अपनी बात कहने से 

 स्पीकर रोक भी नहीं सकते थे।

   स्पीकर उन दिनों  लोकलाज का ध्यान रखने वाले नेता हुआ करते  थे।

  संविधान व लोक सभा की कार्य संचालन नियमावली का सहारा लेकर जब मधु लिमये  प्रस्ताव व सूचनाएं देते थे तो उन पर चर्चाएं कराने पर स्पीकर मजबूर हो जाते थे।

   इस तरह संसदीय ज्ञानों का उपयोग करके मधु लिमये देश व समाज के लिए काफी कुछ कर पायेे।

   उनसे ‘‘सकारात्मक ईष्र्या’’ रखने वाले एक अन्य समाजवादी चिंतक व पूर्व सांसद किशन

 पटनायक ने मधु लिमये के बारे में उनके निधन के बाद  लिखा था कि ‘एक श्रेष्ठ कोटि के सांसद के रूप में मधु की प्रतिष्ठा हुई।

  मंत्रियों के भ्रष्टाचार के विरोध में उनका हमला इतना कारगर होने लगा था कि बड़े नेताओं में उनके प्रति भय हुआ।

   सन 1964 से 1967 के बीच सांसद के रूप में उनका जो उत्थान हुआ ,उसका मैं सदन के भीतर प्रत्यक्षदर्शी था।

   संसदीय प्रणाली व संविधान के बारे में उनका ज्ञान अद्वितीय था।

   मधु लिमये शुरू से मेरे लिए आदर, ईष्र्या व असंतोष के पात्र रहे।

   मेरे स्वभाव में है कि ईष्र्या उस व्यक्ति के लिए होती है जिसके लिए मेरे मन प्यार होता है।’

   गौरव की बात है कि मधु लिमये जैसे संसदीय महारथि सिर्फ बिहार से ही सांसद रहे।

   काश ! बिहार को वैसा गौरव  एक बार फिर मिल पाता ।   

.........................................................


गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

 सौ पैसे का घिसकर 15 पैसे बन जाना !

 ...........................................................

सन 1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि 

जन कल्याण के लिए केंद्र सरकार जो खर्च करती है,उसके प्रत्येक रुपए यानी सौ पैसों में से सिर्फ 15 पैसे ही उन तक पहुंच पाते हैं जिनके लिए पैसे आबंटित होते हैं।

....................................

अब सवाल है कि सौ पैसों में से 85 पैसे बीच में ही लूट लिए जाने के लिए कौन-कौन लोग जिम्मेदार रहे हैं ?

क्या राजीव गांधी से पहले बने प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू,इंदिरा गांधी या लाल बहादुर शास्त्री जिम्मेदार थे ?

इनमें से कोई एक जिम्मेदार था ?

या तीनों जिम्मेदार थे ?

यानी, जिस  शीर्ष सत्तासीन व्यक्ति को सरकारी खजाने की रक्षा की जिम्मेदारी थी,उन्होंने उसकी रक्षा क्यों नहीं की ?

उनकी क्या मजबूरी थी ?

ऐसे में क्या वे सफल नेता माने जाएंगे ?

..............................................

या, सौ पैसे के घिस कर 15 पैसे बने जाने के लिए अफसरशाही जिम्मेदार थी ?

क्या अन्य राजनीतिक लोग जिम्मेदार थे ?

या कोई अन्य जिम्मेदार थे ?

क्या इसका तार्किक जवाब देश को कभी मिल पाएगा ?

...................................

--सुरेंद्र किशोर

28 अप्रैल 21


   अमेरिका में प्रति 10 लाख आबादी पर 1754 मौत

    ..............................................

दस लाख आबादी पर भारत में 133 मौत

....................................................

हालांकि हर जीवन बहुमूल्य है।

.....................................

इस देश के बिघ्नसंतोषी फिर भी कह रहे हैं 

कि भारत गर्त में जा रहा है।

....................................................... 

अमेरिका में कोरोना से 5 लाख 86 हजार लोगों की मौत हो चुकी है।

भारत, जिसे गर्त में जाता बताया जा रहा है,वहां यह आंकड़ा दो लाख अब पहुंचा है।

अमेरिका की आबादी 33 करोड़ है।

भारत की आबादी 135 करोड़ है।

...........................................

 .भारत में प्रति दस लाख आबादी पर मृत्यु दर सबसे कम है।

अंतरराष्ट्रीय औसत दस लाख पर 395 है और भारत में 133  है।

अमेरिका में प्रत्येक 10 लाख आबादी पर कोरोना से मृतकों का  आंकड़ा 1754 है।

........................................

प्रदीप सिंह,दैनिक जागरण-29 अप्रैल 21 

.........................................

भारत में अमेरिका जैसा कानून का कठोर शासन होता तो 

तो यहां और भी जानें बचाई जा सकती थीं।

अमेरिका में अदालती सजा की दर 93 प्रतिशत है।

भारत में सजा की दर 67 प्रतिशत है।

यानी, इस देश में कानून का डर कम है।

लोग खुलेआम कोरोना नियमों का उलंघन कर रहे हैं।

यदि यहां भी लोगों में कानून का डर होता तो यहां मृत्यु कम होती।

......................................

इसलिए अदालत, भारत सरकार व राज्य सरकारों को सोचना चाहिए की सजा की दर यहां कैसे बढ़े।

..........................................

--सुरेंद्र किशोर

29 अप्रैल 21

 


सोमवार, 26 अप्रैल 2021

     भगत सिंह पड़ोसी के घर में पैदा हो !

   .................................................... 

  दिक्कत यह है कि अधिकतर लोग यह चाहते हैं कि सत्ता 

में बैठा व्यक्ति तो राजा हरिश्चंद्र हो,पर मेरे अपने बेटे को ऐसी सरकारी नौकरी मिल जाए,जिसमें ऊपरी आमदनी अपार हो।

मैं भी जब वोट देने मतदान केंद्र पर जाऊंगा

तब मेरे मन में कुछ अन्य प्राथमिकताएं होंगी।

हम चाहते हैं कि भगत सिंह मेरे पड़ोस के घर में पैदा हो, मेरे घर में नहीं।

 पर, हम खुद लोकतांत्रिक सक्रिय राजनीति के कंटकाकीर्ण मार्ग पर चार कदम भी नहीं चलेंगे।

   आप जैसे ईमानदार लोग सक्रिय राजनीति में नहीं जाएंगे तो जो जाएगा,वहां वर्षों तक डटा रहेगा ,वही तो राजपाट चलाएगा।

राजपाट चलाने वालों में कुछ ईमानदार होंगे तो कुछ बेईमान भी होंगे।

   यदि आप चाहते हैं कि राजनीति में सक्रिय बेईमानों की संख्या से ईमानदार लोगों की संख्या किसी दिन बहुत अधिक हो जाए तो आप आरामदायक व रूटीन लाइफ त्याग कर बड़ी संख्या में राजनीति में प्रवेश करें ।

इस तरह एक दिन संख्या की दृष्टि से बेईमानों पर हावी हो जाएं।

  किस तरह अरविंद केजरीवाल व उसके गैरराजनीतिक उत्साही साथियों ने दिल्ली की राजनीति पर कब्जा कर लिया।

लेकिन क्या आप ऐसा कर पाएंगे ? 

मुझे तो नहीं लगता।

क्योंकि वह आपके वश की बात नहीं।

आपके वश में जो है,आप वही करेंगे।

कर ही रहे हैं !

.....................................

सुरेंद्र किशोर 

26 अप्रैल 21


 

  


   पक्ष-विपक्ष के जिन नेताओं ने आजादी के बाद से ही इस देश के संसाधनों को चूस-चूस कर अपने व अपने लगुए-भगुए के घर भरे हैं,आज भी भर रहे हैं ,वे ही इस बात के लिए जवाबदेह हैं कि बेड और आॅक्सीजन के बिना इतनी बड़ी संख्या में मरीज आज तड़प -तड़प कर क्यों मर रहे हैं ?

...................................................

सच तो यह है कि कोरोना वैश्विक महामारी से सफलतापूर्वक मुकाबला करने में तो अमीर देश भी असमर्थ हैं।

पर, अपने देश में आजादी के बाद से ही भीषण भ्रष्टाचार नहीं जम गया होता तो हम आज की अपेक्षा थोड़ा बेहतर ढंग से कोरोना महामारी का मुकाबला कर सकते थे,भले पूरी तरह से फिर भी नहीं।क्योंकि इसकी विकरालता की कल्पना किसी को कभी नहीं रही है।

.................................................

   --सुरेंद्र किशोर-

 ...............................................

महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ सी.बी.आई.ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है।

याद करिए ये वही गृह मंत्री हैं जिन्होंने हर महीने 100 करोड़ रुपए की ‘उगाही’ का लक्ष्य मुम्बई के एक कनीय पुलिस अफसर को सौंपा था।

  अपेक्षा के अनुसार ही चर्चित शिवसेना नेता व राज्य सभा सदस्य संजय राउत ने कहा कि 

‘‘यह सी.बी.आई.का एजेंडा है।’’

 यदि मान भी लिया जाए कि यह सी.बी.आई.का एजेंडा है तो गैर बेईमान लोग इसे सकारात्मक एजेंडा ही मान रहे हैं।

संजय जी,

आपका एजेंडा तो नकारात्मक लगता है।

यूं कहें कि भ्रष्टाचार के साथ सहयोगात्मक है।

यानी ‘तुम भी लूटो, हम भी लूटें,लूटने की आजादी है,सबसे ज्यादा वही लूटे,जिसके तन पर खाकी-खादी है।’’

 सहयोग ऐसा कि दोनों राजनीतिक पक्षों में से कोई भी एक दूसरे को डिस्टर्ब न करे।

     देश के संकट का यही सबसे बड़ा कारण रहा है।

एक गैरकांग्रेसी प्रधान मंत्री तो कहा करते थे कि 

‘‘फस्र्ट फेमिली’’ को टच नहीं करना है।’’

  उनके कार्यकाल के पहले से भी यही अघोषित परंपरा चलती रही थी।

फस्र्ट फेमिली कौन है,इसका अनुमान आप लगा लीजिए ।

  पर, आज के प्रधान मंत्री ने इस परंपरा को तोड़ दिया है।

इसे क्या कहा जाए ?

अच्छा या बुरा ?

यदि आज के प्रधान मंत्री के खिलाफ भी किसी को कोई शिकायत है तो कानूनी रास्ता खुला है, कोर्ट जाइए उसके खिलाफ।

डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपने प्रयास से रास्ता खोलने का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट से जारी करवा ही दिया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई भी नागरिक कितनी भी बड़ी हस्ती के खिलाफ कोर्ट में जा सकता है।

खुद स्वामी इस आदेश का लाभ उठाते रहे हैं।  

....................................................

कुछ महीने पहले राज्य सभा सदस्य संजय राउत की पत्नी पर पैसों को लेकर कुछ आरोप लगे थे।

अन्य अनेक नेताओं की तरह राउत ने भी कहा कि जिस तरह का आरोप मेरी पत्नी पर लगा है,उसी तरह का आरोप भाजपा के सौ नेताओं पर भी है।

पर, कार्रवाई नहीं हो रही है।

   यदि कार्रवाई नहीं हो रही है तो संजय राउत जी आप उनके खिलाफ अदालत क्यों नहीं गये ?

डा.स्वामी ने तो अदालत जा -जाकर जयललिता और न जाने कितने बड़े-बड़े नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करवाई है।

   पर,संजय राउत अदालत नहीं जाएंगे।

  वे तो यही चाहेंगे कि तुम सत्ता में हो तो हमें बचाओ।हम सत्ता में आएंगे तो हम तुम्हें बचाएंगे।

  इसी तरह एक दूसरे को बचते -बचाते हुए इस देश के विभिन्न दलों के अधिकतर नेताओं ने सत्ता के भीतर व बाहर रहकर इस देश के साधनों को अपने घरों को भरने के लिए इतना चूसा है कि आज अस्पतालों में बेड व आॅक्सीजन के बिना लोग तड़प-तड़त कर मर रहे हैं।

................................

1985 तक भ्रष्टाचार के मामले में इस देश की स्थिति यह बन चुकी थी कि सौ सरकारी पैसों को हमारे सत्ताधारियों ने घिस कर पंद्रह पैसा बना दिया था।

तब तक इस देश के प्रधान मंत्री कौन -कौन थे ?

याद है न !

  भ्रष्टाचार का ‘‘रावणी अमृत कुंड’’ आज सांसद फंड बन चुका है जिसमें से अधिकतर सांसद(सब नहीं) खुलेआम नजराना-शुकराना ले रहे हैं । 

इसके साथ ही वे छोटे -बड़े सरकारी अफसरों को यही काम दूसरे महकमों में भी करने के लिए हरी झंडी भी दे रहे हैं।

हालांकि वहां भी सब अफसर एक ही तरह के नहीं हैं।

हां,एक बात में लगातारता है।

आज तक कोई प्रधान मंत्री सांसद फंड खत्म नहीं कर सका।

 खत्म करने की हिम्मत नहीं हुई।

नरेंद्र मोदी जैसे ईमानदार नेता को भी खत्म करने की हिम्मत नहीं हो रही है।

यह अधिक चिंताजनक स्थिति है। 

..........................................

और अंत में

......................

एक बार बिहार के मुख्य मंत्री डा.जगन्नाथ मिश्र ने प्रतिपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।

जाहिर है कि आरोप झूठा था।

उस पर कर्पूरी ठाकुर ने बारी -बारी से कई बार मुख्य मंत्री से मांग की कि वे इस मुझ पर लगाए आरोप की जांच कराएं।

पर डा.मिश्र ने जांच नहीं करवाई।

उस पर एक दिन विधान सभा में कर्पूरी जी ने कहा कि आप मेरे खिलाफ जांच इसलिए नहीं करवा रहे हैं क्योंकि आपको डर है कि आपके खिलाफ भी जांच होने लगेगी।

...........................


रविवार, 25 अप्रैल 2021

    जान है तो जहान है !

  .........................................................

      सुरेंद्र किशोर  

  .......................................................

शिक्षा,स्वास्थ्य,संचार और सेना !

 सरकार के लिए ये प्रमुख जिम्मेवारी वाले क्षेत्र हैं।

प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं।

रहने भी चाहिए।

सरकार के लिए किसी तरह का व्यापार द्वितीय प्राथमिकता वाला क्षेत्र होना चाहिए।

कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारांे 

की भूमिका में बढ़ोत्तरी की जरुरत रेखांकित की है।

इसके साथ ही, इन चार क्षेत्रों में भ्रष्टाचार के मौजूदा स्तर को भी कड़ाई से कम करना होगा।

मौजूदा महामारी संकट के दौर में देश की विभिन्न सरकारें व चिकित्सकगण भरसक 

अच्छा काम कर रहे हैं।

हां, कुछ राजनीतिक बयानबाजियांे को नजरअंदाज ही कर देना चाहिए।

 पर, इस संकट के दौर से निकल जाने के बाद सरकारों को  स्वास्थ्य के क्षेत्र पर खास तौर पर फोकस करना होगा।

आज अन्य लोगों के साथ -साथ राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं की परेशानी भी देखने लायक है।

अधिकतर छोटे -बड़े नेता लोग आॅक्सीजन, बेड या अन्य तरह की सुविधाएं , लोगों को दिलाने में बुरी तरह 

असमर्थ हो रहे हैं।

बड़े -बड़े चिकित्सक भी कभ- कभी इस काम में खुद को लाचार पा  रहे हैं।

उन्हें भी इस समस्या पर सोच-विचार करना होगा।

पुरानी कार्य शैली अब किसी की नहीं चलेगी। 

........................................

23 अप्रैल 21



 किसी ने ठीक ही कहा था,

‘‘पुस्तक देने वाला मूर्ख !

लौटाने वाला महामूर्ख !!’’

.............................

पुस्तक के साथ अन्य पठन-पाठन व संदर्भ सामग्री को भी अब आप जोड़ लीजिए।

...................................

जिस दिन इस देश के लोग होल्डर के साथ लिखने के लिए कलम देने लगें,उसी दिन से आप किताब भी पढ़ने के लिए किसी को देना शुरू कर दीजिएगा।

........................................

आपने ध्यान दिया होगा,बैंक में या कहीं और जब कोई अनजान व्यक्ति कुछ लिखने के लिए आपसे कलम मंागता है तो आप क्या करते हैं ?

आप होल्डर को अपने पास रखकर कलम उसे दे देते हैं।

  क्योंकि होल्डर के बिना उसके लिए कलम व्यर्थ ही साबित होगी।

...........................................

--सुरेंद्र किशोर

25 अप्रैल 21


शनिवार, 24 अप्रैल 2021

    कारोना की महा विपत्ति में भी कुछ लोग  

 खोज रहे हैं अपने लिए सत्ता और संपत्ति !!

............................................

    --सुरेंद्र किशोर--

............................................. 

नोटबंदी के ठीक बाद उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव हुआ था।

तब राजग विरोधी दल यह अनुमान लगा रहे थे कि वहां उनकी ही सरकार बनेगी।

क्योंकि मोदी सरकार ने नोटबंदी 

करके पूरे देश को बैंकों के सामने लाइन में खड़ा कर दिया।

लोगों से रोजगार छिन गए।

..............................

पर, राजग विरोधियों का वह अनुमान गलत निकला।

क्योंकि अधिकतर मतदाताओं को ‘मुख्तार अंसारी’ जैसों का राज मंजूर नहीं था।

उन्होंने छोटी विपत्ति (नोटबंदी ) को मंजूर करते हुए बड़ी विपत्ति की वापसी को रोक दिया।

..............................................

गुजरात विधान सभा चुनाव से ठीक पहले जी.एस.टी.लागू हुआ।

मुख्य प्रतिपक्ष ने उसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहा।

उसने गुजरात चुनाव नतीजे में अपनी सत्ता की वापसी की उम्मीद देखी।

पर उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई्र।

..........................................

गत साल कोरोना की शुरूआत के समय लाखों बिहारी मजदूरों की पीड़ादायक पैदल वापसी लोगों ने अपने टी.वी.सेटों पर देखी।

बिहार के प्रतिपक्ष को लगा कि नीतीश सरकार अब नहीं रहेगी।

  पर, मतदाताओं ने उनकी इच्छा पूरी नहीं की।

क्योंकि उन्हें लगा कि बिहार में भी ‘‘मुख्तार अंसारी’’ जैसों का राज वापस नहीं आना चाहिए।

हां,बिहार विधान सभा में राजग की सीटें जरूर घटीं।पर उसके दो अलग कारण थे ।उन कारणों का मजदूरों के कष्टप्रद पलायन से कोई संबंध नहीं था।

..............................................

अब आइए कोरोना नए व भयंकर रूप की चर्चा करें।

कुछ राजग विरोधी दल और नेतागण तो अब 2024 के लोस चुनाव में केंद्र से मोदी सरकार के सफाए का सपना भी देखने  लगे  हैं।

........................................

क्या ऐसा हो जाएगा ?

पिछले अनुभवों को देखकर तो नहीं लगता।

..................................

क्योंकि ऐसी प्राकृतिक विपत्ति के लेकर अधिकतर लोग किसी सरकार से यह उम्मीद करते हैं कि उसने राहत-सेवा की भरसक कोशिश की या नहीं ?

या उसने भी विपत्ति को अपने लिए लूट का अवसर बनाया ?

इस मामले में जनता जिस नतीजे पर पहुंचती है,उसके अनुसार निर्णय करती है।

...............................................

वैसे पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव और 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के नतीजे कुछ ठोस राजनीतिक संकेत दे सकते हैं।

...........................................

कल्पना कीजिए कि 2024 के लोक सभा चुनाव में राजग हार गया।

प्रतिपक्ष को बहुमत मिल गया।

फिर क्या होगा ?

प्रधान मंत्री कौन बनेगा ?

कांग्रेस का कोई अन्य ‘‘मनमोहन सिंह’’ ?

क्षेत्रीय दलों में से कोई ‘‘देवगौड़ा’’ ?

ममता बनर्जी या कोई और ?

..................................

कल्पना कीजिए गैर राजग सरकार केंद्र में बन गई।

उस सरकार का पहला काम क्या होेगा ?

इस मामले में पिछले अनुभव आपको राह दिखाते हैं।

 पहला काम होगा-गैर राजग दलों खासकर कांग्रेसी नेताओं के नेताओं के खिलाफ जितने मुकदमे चल रहे हैं, उन्हें उठा लेना या कमजोर कर देना।

............................

दूसरा काम होगा-जिस तरह मनमोहन सिंह की सरकार चल रही थी,उसी तरह की सरकार को चलाना।

.....................................

1979 के प्रधान मंत्री चरण सिंह ने संजय गांधी के खिलाफ जारी मुकदमों को वापस लेने से मना कर दिया था।

 नतीजतन उनकी सरकार गिरा दी  गई।

  चंद्रशेखर की सरकार ने बोफोर्स केस उठाने से इनकार कर दिया।

नतीजतन उनकी सरकार चली गई।

............................................

अब एक नई स्थिति की कल्पना कीजिए।

नए ‘मनमोहन सिंह’ तो वैसा कोई भी काम कर देंगे।

पर, कोई गैरकांग्रेसी प्रधान मंत्री क्या करेगा ?

कितना गरल पान करेगा ?

............................................

अब 1971 के बिहार के गांव की एक कहानी।

तब मैं गांव में रहता था।

भीषण बाढ़ आई थी।

सारण जिले के दिघवारा के सिनेमा हाॅल के पास हम नाव पर सवार होते थे और करीब साढ़े तीन किलोमीटर दूर अपने दालान के पास ही उतरते थे।

उससे पहले कांग्रेसी सरकार से नदी पर बांध बनाने की गुहार की जाती थी।

सरकार की प्राथमिकता में वह बात नहीं थी।

लोग मान रहे थे कि इस बार यानी 1972 के बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के विधायक रामजयपाल सिंह यादव तो हारेंगे ही।

पर, हुआ उल्टा।

वे जीत गए।

....................................

मैंने दिघवारा के एक मतदाता से पूछा,

‘‘ऐसा क्यों हुआ ?’’

उसने भोजपुरी में कहा कि बाढ़ तो भगवान ने भेजा था।

किंतु भरपूर रिलीफ (सामग्री)तो हमें जयपाल बाबू ने ही  दिया।

.....................................

अब देखना है कि मौजूदा कोरोना महा विपत्ति के दौरान चल रहे सरकारी राहत कार्यों से देश के लोग कितने संतुष्ट या नाराज हैं ?

इसका भी असर अगले किसी चुनाव पर पड़ेगा।

वैसे देश में कोरोना के अलावा भी चुनावी मुद्दे और भी हैं और रहेंगे भी।

..................................................  

  24 अप्रैल 21

 

    

 


बुधवार, 21 अप्रैल 2021

 


    पश्चिम बंगाल चुनाव नतीजे की प्रतिध्वनि

     .....................................................      

     --सुरेंद्र किशोर--

    .............................................................

 कुछ लोग यह अनुमान लगा रहे हैं कि यदि ममता बनर्जी दुबारा मुख्य मंत्री बन गईं तो 2024 के लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को परेशानी होगी।

    इस स्थापना से सहमत होना जरा कठिन है।

पहले यह समझना होगा कि नरेंद्र मोदी 2014 और 2019 के चुनाव क्यों जीत गए थे।

  मेरी समझ से उसके तीन प्रमुख कारण थे 

!.-मनमोहन सिंह सरकार के भीषण भ्रष्टाचार।

2.-अधिकतर गैर राजग दलों में वंशवाद और परिवारवाद।

3.-मोदी विरोधी दलों में ‘तुष्टिकरण’ की होड़।

तुष्ट्रिकरण यानी सामान्य व गरीब मुस्लिमों का तुष्टिकरण नहीं।

बल्कि, उनके बीच के अतिवादी व जेहादी तत्वों का तुष्टिकरण।

   यदि सामान्य गरीब मुसलमानों व दलितों के विकास के लिए कोई सरकार कुछ अधिक ही खर्च कर दे तो उससे देश मजबूत ही होगा।

..........................................

अब अनुमान लगाइए कि आगामी 2 मई के बाद कितने मोदी विरोधी दल व नेता उपर्युक्त तीन मामलों में नरेंद्र मोदी से बेहतर दिखाई पड़ने लगेंगे ?

   दूसरी ओर , यदि ममता बनर्जी जीत भी गईं तो उस जीत में मुस्लिम वोट बैंक (जिनमें घुसपैठियों का ही अधिक योगदान होगा) का ही सर्वाधिक योगदान माना जाएगा।

पिछली जन गणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिम हैं।

अब बताइए कि वह जीत केंद्र की राजनीति को कैसे प्रभावित करेगी ?

’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’

हंा,यदि किन्हीं अन्य अप्रत्याशित कारणों से मोदी सरकार की भारी विफलता इस बीच जनता के सामने आ गई तो फिर नहीं कहा जा सकता कि 2024 के लोस चुनाव में कैसा रिजल्ट होगा !

लेकिन वे अप्रत्याशित कारण कौन -कौन से हो सकते हैं ?

इस संबंध में अनुमान के घोड़े दौड़ाइए।

.........................................

21 अप्रैल 21 

 


सोमवार, 19 अप्रैल 2021

  लाॅक डाउन लगाने से लोगों को अधिक परेशानी होगी या नहीं लगाने से अपेक्षाकृत ज्यादा जन हानि होगी ?

.........................................

बिहार सरकार उसका आकलन करे

फिर कदम उठाए

...................................

तैयारी के बाद कम से कम 8-10 दिनों का 

लाॅक डाउन जरूरी 

......................................................

रोज-रोज के इस्तेमाल के जरूरी सामान जुटा लेने की लोगों को दो -तीन दिनों की बिहार सरकार पहले मुहलत दे दे।

   फिर सरकार राज्य में कम से कम आठ या दस दिनों का लाॅक डाउन करे।

लाॅक डाउन में भी बाहर निकलने के लिए ‘पास’ देने में इस बार उदारता दिखाए।

  इन दो -तीन दिनों में कमजोर वर्ग के वैसे लोगों के घरों में शासन अनाज पहुंचा दे जिनके समक्ष रोज कमाओ रोज खाओ वाली मजबबूरी रहती है।

  ....................................

बिहार सरकार मान रही है कि पिछली बार की अपेक्षा इस बार कोरोना की तीव्रता-व्यापकता काफी अधिक है।

फिर गत साल जैसी लाॅकडाउन वाली कड़ाई क्यों नहीं ?

संकेत तो यही हैं कि लाॅक डाउन के बिना लोग पाबंदियां मानने वाले हैं नहीं।

  फिर राज्य सरकार सोच ले-

लाॅक डाउन के बिना जितनी जानें जाएंगी,उसके लिए कुछ निहितस्वार्थी लोग आम लोगों को शासन के खिलाफ कितना भड़काएंगे ?

जनता कितना भड़केगी ?

लाॅक डाउन के बाद कुछ लोगों को जितनी परेशानी होगी,क्या वह पहले की स्थिति में हुई परेशानी से कम होगी ?

राज्य सरकार तुलना करे और अपेक्षाकृत कम नुकसानदेह स्थिति के लिए कदम उठाए।

..............................................

---सुरेंद्र किशोर

18 अप्रैल, 21   

  


रविवार, 18 अप्रैल 2021

 संविधान सभा के सदस्य व इंडियन एक्सप्रेस के 

संस्थापक रामनाथ गोयनका के जन्म दिन(18 अप्रैल) पर

...................................................

--सुरेंद्र किशोर--

.....................................................  

देश के एक बड़े नामी संपादक ने अपने यहां दीवाल पर 

सिर्फ रामनाथ गोयनका की तस्वीर लगा रखी थी,

किसी पत्रकार की नहीं।

गोयनका जी को वे प्रेस की स्वतंत्रता के प्रतीक पुरूष 

मानते थे।

हालांकि उस संपादक ने कभी ‘इंडियन एक्सप्रेस’ समूह में काम नहीं किया जिसके गोयनका जी मालिक थे।

गोयनका जी स्वतंत्रता सेनानी थे।

संविधान सभा के सदस्य थे।

दो बार राजस्थान से लोक सभा के सदस्य चुने गए थे।

  यानी, वे सामान्य अखबार मालिकों से अलग थे।

वे जानते थे कि यदि अपने अखबार की स्वतंत्रता बनाए रखनी हो तो अखबार को सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

 इसीलिए उन्होंने देश के कुछ महानगरों में अपनी बहुमंजिली इमारतें बनवाईं।

इमारत के कुछ स्थानों में अखबार के प्रेस व आॅफिस वगैरह रहे।

 बाकी को किराए पर उठा दिया ।

किराए के पैसों से अखबार का घाटा पूरा होने लगा।

हालांकि अखबार में आज जैसी शाहखर्ची नहीं थी।

मालिक गोयनका अपनी फिएट के खुद ही ड्रायवर थे।

  एक्सप्रेस समूह से जुड़े दैनिक जनसत्ता में मैंने 18 साल तक(1983-2001) पटना से काम किया।

  खबरें टाइप करने के लिए हम ‘वन साइड पेपर’का इस्तेमाल करते थे।

 हमें रोज-रोज जो बहुत सारी प्रेस विज्ञप्तियां मिलती थीं,उनकी ‘पीठ’ सादी रहती थी।

उसे हम ‘वन साइड पेपर’ कहते थे।

यानी, एक्सप्रेस में इसी तरह की मितव्ययिता की जाती थी।

नतीजतन हमारी स्वतंत्रता बनी रहती थी।

चाहे हम एकतरफा ही क्यों न लिखें।

कई बार हम एकतरफा जरूर होते थे,किंतु गलत नहीं।

.......................................

चंद्रशेखर सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में बिहार सरकार जन संपर्क विभाग के एक बड़े अफसर मेरी शिकायत लेकर संपादक प्रभाष जोशी से दिल्ली में मिले थे।

कहा कि आपके संवाददाता हमारी सरकार के खिलाफ बहुत लिखते रहते हैं।

जोशी जी ने कहा कि गलत लिखते हैं क्या ?

उन्होंने कहा कि गलत तो नहीं लिखते लेकिन पुरानी बातें लिखते रहते हैं जिनका अब कोई मतलब नहीं।

अफसर साहब साथ में जनसत्ता के लिए एक पेज का सरकारी विज्ञापन भी लेकर गए थे।

जोशी जी ने जवाब दिया कि ‘‘आप ऐसी पार्टी की सरकार का बचाव करने आए हंै जिस पार्टी की प्रधान मंत्री कहती हंै कि हमने एन.टी.रामाराव सरकार की बर्खास्तगी की खबर टेलीप्रिंटर पर देखी।’’

  उसके बाद अपना विज्ञापन समेट कर अफसर साहब लौट आए।

ऐसा रामनाथ गोयनका के कारण ही संभव होता था।

गोयनका जी के जीवनकाल में ऐसे अनेक उदाहरण आए दिन एक्सप्रेस समूह में देखे जाते थे जहां खबरों के सामने सरकारी विज्ञापनों की परवाह नहीं की जाती थी।

...............................................

यह आरोप सही नहीं है कि गोयनका जी नेहरू परिवार के सदा खिलाफ रहे थे।

हां,वे सभासद के रूप में नेहरू जी का तब विरोध करने वालों में शामिल थे जब वे यानी नेहरू डा.राजेंद्र प्रसाद के बदले सी.राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनवाने की जिद कर रहे थे।

याद रहे कि सरदार पटेल के हस्तक्षेप के कारण अंततः राजेन बाबू ही प्रथम राष्ट्रपति बने।

तब कई बड़े नेताओं को यह लगता था कि देश की सत्ता के सभी शीर्ष पदों पर एक ही जाति का व्यक्ति नहीं होना चाहिए।

...........................................

गोयनका जी ने फिरोज गांधी को पचास के दशक में  एक्सप्रेस का प्रबंध निदेशक बनाया था।

एक्सप्रेस की जमीन के लीज के कागज पर एक्सप्रेस की ओर से फिरोज गांधी का ही हस्ताक्षर हुआ था।

प्रारंभिक काल में जब राजीव गांधी ने यह संकेत दिया कि वे ‘‘मिस्टर क्लीन’’ हैं तो गोयनका जी

ने राजीव के बाल सखा सुमन दुबे को एक्सप्रेस का संपादक बनाया।

पर, जब प्रधान मंत्री राजीव गांधी बोफोर्स तथा कुछ अन्य घोटालों को लेकर सरकार का व अपना अतार्किक बचाव करने लगे तो एक्सप्रेस समूह केंद्र सरकार से उलझ पड़ा।

उसकी कीमत भी एक्सप्रेस को चुकानी पड़ी थी।

उसकी परवाह गोयनका जी को कभी नहीं रही ।

.............................

गोयनका जी मूल रूप से बिहार(दरभंगा जिला) के ही निवासी थे।

बाद में वे ‘‘लोटा-डोरी लेकर’’ मद्रास चले गए और उन्होंने वहां छोटा अखबार शुरू किया जो बाद में देश भर मंें फैला। 

..........................................

18 अप्रैल 2021


शनिवार, 17 अप्रैल 2021

     ---दोहरा मापदंड--

 गत साल के बिहार विधान सभा के चुनाव को स्थगित कर देने की प्रतिपक्ष ने जोरदार मांग की थी।

ऐसी ही मांग प्रशांत किशोर ने भी की थी।

उनकी मांग कोरोना की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए की गई थी।

क्या अब वही प्रतिपक्ष पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव को स्थगित करने की मांग कर रहा है ?

नहीं कर रहा है।

जबकि, आज गत साल की अपेक्षा कोरोना ने अधिक विकराल रूप धारण कर लिया है।

--सुरेंद्र किशोर-17 अप्रैल 21


शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

 इहलोक-परलोक वासियों से

............................................

  वे लोग अब तो थोड़ा अफसोस कर लें !

जिन्होंने आजादी के बाद 

से ही अब तक भ्रष्ट-लुटेरे नेताओं - अफसरों - अन्य संबंधित लोगों को समर्थन दिया, ताकत दी और उनका बचाव किया।

  दल,जाति, विचारधारा तथा कुछ अन्य आधार पर लोकतंत्र के लुटेरों को ताकत नहीं मिली होती तो आज अपना देश थोड़ा बेहतर होता।

  गंभीर मरीज कम से कम आॅक्सीजन के बिना तो नहीं मरते।

जो अपार सार्वजनिक धन लूट में चले गए,वे यदि बचते तो बेहतर मेडिकल तथा अन्य संरचनाओं पर खर्च हुए होते।

हालांकि लोकतंत्र के सारे संचालक लुटेरे ही नहीं थे।न ही आज सारे वैसे हैं।

पर अच्छे लोगों की कम ही चलती रही है।

   ....................................

--सुरेंद्र किशोर

 16 अप्रैल 21


 


 पहले दुनिया,कोरोना की दूसरी लहर से स्तब्ध हुई।

अब चुनौती भारत में है।

.............................................

देश के प्रायः सभी हिस्सों में,मास्क न लगाने के दृश्य आम हैं।

दो गज की दूरी भी नहीं है।

क्या हम आपदाओं को आदतन बुलाते हैं ?

............................................

सामूहिक व्यवहार में यह असावधानी क्यों ?

स्वानुशासन के बगैर ,व्यवस्थित समाज,राज और व्यवस्था चल सकती है ?

.....................................

हरिवंश,

राज्य सभा के उप सभापति,

दैनिक भास्कर,

16 अपैल 21 


 शिक्षक नेता व बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति प्रो.अरुण कुमार नहीं रहे।

कांग्रेस नेता अरुण बाबू शालीनता की प्रतिमूत्र्ति थे।

अन्य दलों के नेता लोग भी उनका सम्मान करते थे।

विधान परिषद स्थित उनके आॅफिस में अक्सर मैं उनसे मिला करता था। 

उनकी दो बातें मुझे अब भी याद आती हैं।

वे कहा करते थे कि दूरदर्शन ही इस देश का प्रतिनिधि चैनल है।

उनकी दूसरी बात लीक से हट कर थी।

विधान परिषद की सदस्यता के आखिरी दौर में उनके दल यानी कांग्रेस के कई नेताओं को यह लगता था कि अगली बार वे चुनाव हार जाएंगे।क्योंकि दूसरे दल अपेक्षाकृत मजबूत हो चुके थे।इसलिए वे अपने लिए दूसरे दल में जगह खोज रहे थे।

एक चर्चित कांग्रेसी नेता मेरे सामने अरुण बाबू से कह रहे थे कि आप फलां दल में शामिल हो जाइए।

वे खुद उस दल मंे जा रहे थे या जा चुके थे।

  इस पर अरुण बाबू ने उनसे कहा कि मैं चुनाव हारूं या जीतूं,किंतु मैं कांग्रेस नहीं छोड़ूंगा।

 ......................................................

---सुरेंद्र किशोर

15 अप्रैल 21  


गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

    दिल्ली के मयूर विहार-3 के कम्युनिटी सेंटर पर 74 वर्षीय पत्रकार देवीदास गुप्त पत्नी के साथ कोविड जांच कराने गए थे।

तीन घंटे चिलचिलाती धूप में कतार में खड़े रहे।

  काउंटर पर बैठा व्यक्ति काउंटर के बंदी समय से पहले शटर डाउन कर दिया।

 देवीदास गुप्त दंपति सहित क्यू में खड़े 50 व्यक्ति ठगे से रह गए।

.............................................. 

कोरोना ने इस देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमी की पोल खोल कर रख दी है।

संरचना की कमी के साथ-साथ काम चोरी का भी बोलबाला है।

 अन्यथा, बंदी के समय से पहले ही काउंटर बंद नहीं होता।

  वैसे तो अभूतपूर्व महामारी कोरोना ने पूरी दुनिया में स्वास्थ्य-व्यवस्था की कमियां उजागर कर दी हैं। 

  पर भारत की पहले से ही जर्जर- व्यवस्था ने मरीजों को बहुत अधिक दुःख दिया है और दे रही है।

इस बीच विपरीत परिस्थितियों में भी हमारे देश के अधिकतर स्वास्थ्य कर्मियों ने जान पर खेल कर मरीजों की सेवा भी की है।कर भी रहे हैं।

कई चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों ने जान भी गंवाई।

कई मरीजों के परिजनों से दुव्र्यवहार भी सहा।

 ............................................

कल्पना कीजिए कि आजादी के तत्काल बाद हमारे देश के संसाधनों को हमारे ही अनेक हुक्मरानों ने दोनों हाथों से नहीं लूटा होता तो क्या स्वास्थ्य -व्यवस्था आज की अपेक्षा बेहतर नहीं होती ?

1985 में ही प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने स्वीकारा था कि दिल्ली से सरकार की ओर से जो 100 पैसे भेजे जाते हैं,उनमें से सिर्फ 15 पैसे ही जनता तक पहुंच पाते हैं।

1985 के बाद के वर्षों में भी स्थिति कमोवेश वैसी ही रही।

हाल के वर्षों में कुछ मामलों में जहां राजनीतिक कार्यपालिका ईमानदार भी है तो प्रशासनिक कार्यपालिका कमोबेश पहले जैसी ही है।

.......................................

कल्पना कीजिए कि 1947 और 1985 के बीच में लूट लिए गए 85 पैसे भी विकास,संरचना व कल्याण कार्यों में लगे होते तो उनका सकारात्मक असर स्वास्थ्य महकमे पर भी पड़ता।

फिर हम कोरोना महा विपत्ति का थोड़ा बेहतर ढंग से मुकाबला कर पाते।

हालांकि सफल मुकाबला तो विकसित देश भी नहीं कर पा रहे हैं तो हम किस खेत की मूली हैं।

 ......................................

 -- सुरेंद्र किशोर 

  14 अप्रैल, 21

 ......................................... 


मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

 भवन विहीन विद्यालयों से भी 

शत प्रतिशत मैट्रिक रिजल्ट। 

कैसे होता है यह चमत्कार ?

 कोई हमारा ज्ञानवर्धन तो करे !

    ......................................

    --सुरेंद्र किशोर--

   .......................................

दैनिक हिन्दुस्तान की खबर है कि इस साल पटना जिले के 20 भवन विहीन माध्यमिक विद्यालयों के सभी परीक्षार्थी मैट्रिक पास कर गए।

यह बात मुझे थोड़ी अविश्वसनीय लगती है।

मैं ओल्ड माॅडल (1963) का परीक्षार्थी जो ठहरा !!

क्या परीक्षा में कदाचार के बिना ऐसा चमत्कार संभव हुआ ?

क्या पढ़ाई का स्तर आसमान छू रहा है ?

  ऐसे ही एक स्कूल के कुल 155 छात्रों में से 75 छात्र प्रथम श्रेणी में इस साल मैट्रिक पास हुए।

(हम एकमा स्कूल से 1963 में 14 लोग प्रथम श्रेणी में आए थे तो जिले में उस स्कूल का भी नाम हुआ था)  

 पर आज के रिजल्ट तो कुछ अधिक ही अविश्वसनीय लगते हंै।

कोई मुझे समझाए कि हाल के वर्षों में ऐसा कैसे होने लगा 

है ?

हमारे जमाने में तो सबसे कम प्रथम श्रेणी और उससे अधिक द्वितीय श्रेणी में परीक्षार्थी पास होते थे।

तृतीय श्रेणी की संख्या तो बहुत बड़ी हुआ करती थी।

 क्या अब यह असंभव नहीं लगता कि कुल परीक्षार्थियों में

सर्वाधिक परीक्षार्थी प्रथम श्रेणी में पास कर जाए !

उससे कम द्वितीय श्रेणी में और सबसे कम तृतीय श्रेणी में ?

मेधा की जांच का कौन सा नया फार्मूला आया है ?

ऐसी स्थिति पर चिंता और चिंतन स्वाभाविक है।

इस मामले में ऐसे चमत्कारिक रिजल्ट

देने वाले संबंधित अफसरों व शिक्षकों से मैं अपना ज्ञानवर्धन करने को तैयार हूं।

शायद वे ही सही हों।

मैं गलत साबित हो जाऊं !

कोई हर्ज नहीं।

मेरी चिंता यह है कि आज राज्य में शिक्षा का हाल कैसा है ?

क्या रिजल्ट उसके समानुपातिक आते हैं ?

.........................................

8 अप्रैल 21

.....................................



सोमवार, 12 अप्रैल 2021

 जो व्यक्ति प्रकृति और प्राकृतिक जीवन शैली

से जितना अधिक करीब है,

वह सामान्यतः कोरोना से भी उतना ही ज्यादा दूर है।

.............................................

---सुरेंद्र किशोर

12 अपैल 21

 


रविवार, 11 अप्रैल 2021

     चुनाव या बंगलादेशियों के लिए युद्ध !

        --सुरेंद्र किशोर-- 

यदि चुनावी मुकाबला मुख्यतः बंगलादेशी घुसपैठियों के समर्थकों और विरोधियों के बीच हो तो रिजल्ट क्या होगा ?

आप खुद ही अनुमान लगा लीजिए।

इसके लिए किसी प्रशांत किशोर की गवाही की जरूरत ही क्या है ! 

 14 जुलाई, 2004 को गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने संसद को बताया था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों की संख्या 57 लाख है।

  पिछले 17 साल में वाम मोर्चा व ममता बनर्जी सरकारों के कार्यकाल में घुसपैठियों की संख्या बढ़ा-बढ़ाकर अपने वोट बैंक में वृद्धि करने के अलावा और क्या -क्या काम हुए हैं ?

............................................

--सुरेंद्र किशोर--11 अप्रैल 21


   ममता बनर्जी वर्षों से नरेंद्र मोदी को

   सरेआम गुंडा कहती आ रही हैं।

  .................................................................

 आजादी के बाद ममता बनर्जी इस देश की संभवतः पहली 

मुख्य मंत्री हैं जो लगातार अपने देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक रूप से गुंडा कहती रहती हैं।

   (22 दिसंबर, 2016 के दैनिक ‘‘द पायनियर’’ 

की संबंधित कटिंग की स्कैन काॅपी प्रस्तुत है।)

  इसके बावजूद कुछ अन्य बड़े नेता यह आरोप

लगाते रहते हैं कि इस देश में बोलने की आजादी नहीं है।

................................

इस देश के किसी चैक-चैराहे पर किसी मजबूत आदमी को आप जरा गुंडा कह कर देख लीजिए,आपका क्या 

हाल होता है !!

पर,चंडूखाने को छोड़ दें तो राजनीति ही ऐसी जगह है जहां आप किसी को कुछ भी कह कर बच सकते हैं।

क्या इसीलिए कुछ लोग राजनीति में नहीं जाना चाहते ?

........................................

सुरेंद्र किशोर

9 अप्रैल 21   


       बिजनेसमैन भी अपनी संतान को 

      शिक्षित व काबिल बनाते हैं।

     ..................................................

किंतु इस देश के वंशवादी-परिवारवादी 

दलों की अगली पीढ़ियों को कमान देने से पहले 

कितना शिक्षित किया जाता है ?

.................................................

--सुरेंद्र किशोर-- 

..................................................

  टूव्हीलर श्रेणी में हीरो दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है।

उसका इंश्योरेंस डिस्टीब्यूशन बिजनेस भी देश का सबसे बड़ा है।

   ऐसा कैसे संभव हुआ ?

इसका कारण बताते हैं कंपनी चेयरमैन सुनीलकांत मुंजाल।

 उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि 

‘‘हमने कोशिश की कि हम हर पीढ़ी को अच्छी शिक्षा दें।

मुंजाल इस बात से सहमत थे कि आम तौर पहली पीढ़ी बिजेनस तैयार करती है।दूसरी पीढ़ी उसे एक मुकाम पर ले जाती है।

ज्यादातर मामलों में तीसरी पीढ़ी उसे बर्बाद कर देती है।

..................................................

अब इसकी तुलना इस देश की वंशवादी-परिवारवादी  राजनीतिक पार्टियों से कीजिए।

.................................

आजादी के लड़ाई के दिनों और बाद के कुछ वर्षों तक राजनीति, ‘सेवा’ थी।

1972 में जब स्वतंत्रता सेनानियों के लिए और 1976 में पूर्व सांसदों के लिए पेंशन का प्रावधान किया गया,तो मान लिया गया कि राजनीति ‘नौकरी’ है।

सन 1992 में जब सांसद फंड की व्यवस्था हुई तो राजनीति का व्यावसायिक रूप सामने आया।

    राजनीति में निरंतर गिरावट के कारण अब स्थिति यह है कि राजनीति को ‘‘उद्योग का दर्जा’’ मिल चुका है।

जब भी किसी बड़े नेता की संपत्ति की जांच होती है तो अनेक मामलों में यह पाया जाता है कि उसके पास अरबों की अघोषित संपत्ति है।

  .......................................................

राजनीति में सक्रिय कुछ नेता व दल इसके अपवाद जरूर हैं।

किंतु अधिकतर वंशवादी-परिवारवादी दलों को देखकर लगता है कि वे राजनीति के नाम पर निजी उद्योग चला रहे हैं।

 ..............................................

किंतु उन्होंने मुंजाल की तरह अपने वंशजों को शिक्षित किया होता तो तीन-चार पीढ़ियां बीतते -बीतते उनके दुबले होते जाने की नौबत नहीं आती।

............................................

हालांकि वंशवादी-परिवारवादी दलों में उत्तराधिकारी के रूप में कुछ ऐसे अपात्र नेता भी सामने आए हैं जिन्हें शिक्षित करने से भी कोई फायदा नहीं होने वाला था।

...........................................

--सुरेंद्र किशोर-11 अप्रैल 21  


 भैरव लाल दास का नाम उन चंद लेखकों में शामिल 

हो गया है जो खोजपूर्ण व तथ्यपरक लेखन करते हैं।

  उनकी नई पुस्तक पंडित राज कुमार शुक्ल पर आई है।

पुस्तक का नाम है -‘‘महात्मा गांधी के तीसरे गुरु पं.राजकुमार शुक्ल।’’

प्रकाशक है आदित्य इंटरप्राइजेज,पटना।

  नाम से ही विषय वस्तु की एक झलक मिल जाती है।

वैसे भी जो चम्पारण के गांधी को जानते हैं,वे राजकुमार शुक्ल की भूमिका से भी अवगत हैं।

  भैरव लाल दास की अन्य पुस्तकें हैं 

गोत्राध्याय,

कैथी लिपि का इतिहास,

विप्लवी बटुकेश्वर दत्त,

गदर आंदोलन का इतिहास,

महात्मा गांधी के चम्पारण आंदोलन के सूत्रधार -राजकुमार शुक्ल की डायरी,

चम्पारण में गांधी की सृजन यात्रा

तिनकठिया,

क्रांतिकारी गांधीवादी: देवशरण सिंह

और विन्घ्येश्वरी प्रसाद वर्मा-एक संत राजनेता।

.................................

‘आशा और विश्वास एक यात्रा’

...............................

मशहूर चिकित्सक और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा.सी.पी.ठाकुर ने इसी नाम से किताब लिखी है।

दैनिक प्रभात खबर के अनुसार 

‘‘डा.ठाकुर की पुस्तक में उनके पटना मेडिकल काॅलेज में प्रवेश से लेकर ब्रिटेन में उच्च शिक्षा हासिल करने और राजनीति में आने तक के प्रसंगों की जीवंत चर्चाएं हैं।’’ 

इसे मशहूर ‘प्रभात प्रकाशन’ ने प्रकाशित किया है।

  डाक्टर साहब एक सफल चिकित्सक व सफल राजनेता रहे हैं।

उनकी पुस्तक तो मेरे सामने नहीं है।

किंतु मैं अनुमान लगा सकता हूं कि पुस्तक में अनेक ऐसे प्रसंग होंगे जो दोनों क्षेत्रों के लोगों को प्रेरित करेंगे।

    इस देश के बड़े नेतागण अब आम तौर पर अपने संस्मरण खुद नहीं लिखते।अपवादों की बात और है।

आजादी की लड़ाई के दौर के अनेक नेताओं ने लिखे हंै।

  डा.ठाकुर को धन्यवाद कि उन्होंने लिखा।

ऐसी पुस्तकों से न सिर्फ उस हस्ती के बारे में बल्कि उस समय के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां मिल जाती हैं।

............................  

सुरेंद्र किशोर--10 अप्रैल 21


शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

 


 भ्रष्टाचार-अपराध के ऊंटों को पहाड़ के नीचे लाने के लिए धन्यवाद--सुरेंद्र किशोर

..........................................

चर्चित गैंगेस्टर मुख्तार अंसारी जैसा अपराध जगत का ऊंट अब पहाड़ के नीचे आ गया है।

उधर भ्रष्टाचार जगत के ऊंटों के ‘‘आदेशपालक’’ पुलिस अफसर सचिन वाझे भी 

जांच एजेंसी के मजबूत शिकंजे में हैं।

  यह इस देश की अदालतों की महिमा है कि इतने बड़े -बड़े ‘‘ऊंट’’ भी पहाड़ के नीचे आते जा रहे हैं। अब इनके आका और  लगुए-भगुए भी देर -सवेर कठघरों में होंगे।

 कतिपय शीर्ष नेताओं की मदद से मुख्तार अंसारी दशकों से उत्तर प्रदेश में अपनी बादशाहत चला रहे थे।

  कोई उन्हें छूने वाला नहीं था।

छूने वाले अफसर ही शीर्ष सत्ता द्वारा छूमंतर कर दिए जाते थे।अब स्थिति बदल रही है।

उन्हें दिन में तारे देखने होंगे।

 इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का, शांतिप्रिय लोग,न्यायपालिका 

 के शुक्रगुजार रहेंगे।

उधर सचिन वाझे की स्वीकारोक्तियों के कारण महाराष्ट्र के बड़े- बड़े नेताओं के असली चेहरे जल्द ही सामने आएंगे।

  अदालतों की सक्रियता के कारण ही इस देश के कई विवादास्पद नेता व माफिया विभिन्न राज्यों के जेलों में पहले से कैद हैं। 

कुछ अन्य गंभीर आरोपों में मुकदमों का सामना कर रहे हैं।

उनमें से कई जेल के रास्ते में हैं। 

  अदालतें इसी तरह भेदभावरहित होकर सक्रिय रहीं तो सार्वजनिक धन के  बाकी बचे अन्य लुटेरों को भी इसी तरह बुरे दिन देखने पड़ेंगे।

सार्वजनिक धन, आमजन से प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से वसूले गए टैक्स के पैसों से ही, एकत्र होता है।

सार्वजनिक धन में से अपार राशि शासकों की मदद से कुछ थोड़े लोग यदि लूट लें तो देश का विकास कैसे होगा ?

गरीबों की गरीबी दूर कैसे होगी ?

आंतरिक और बाह्य सुरक्षा बल को मजबूत करने के लिए साधन कैसे जुटेगा ?

.....................................................

  देश में धन का केंद्रीकरण

  ..........................................

इस देश में अरबपतियों की संख्या बढती जा रही है।

यह संख्या एक साल में 102 से 140 हो गई।

दुनिया के अरबपतियों की सूची में भारत का स्थान तीसरा है।

यानी, इस विकासशील देश में धन का संकेंद्रीकरण हो रहा है।

संविधान निर्माताओं को इस स्थिति का अंदेशा था।

इसीलिए संविधान के नीति निदेशक तत्वों वाले अध्याय में इसकी चर्चा की गई है।

   अनुच्छेद-39 (ग)में यह कहा गया है कि 

देश की ‘‘आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन ओर उत्पादन के साधनों का अहितकारी संकेंद्रण न हो।’’

 अधिकतर सार्वजनिक उपक्रमों की विफलता के कारण भी पूंजीवाद मजबूत हुआ है।

पूंजीवाद धीरे -धीरे एकाधिकार पूंजीवाद में बदलने लगा है।

 आजादी के बाद केंद्र सरकार ने मिश्रित अर्थ -व्यवस्था को बढ़ावा देने की कोशिश की थी।

  इसलिए एक तरफ जहां अनेक निजी उपक्रमों का सरकारीकरण हुआ,वहीं सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों की बड़े पैमाने पर स्थापना की।

 इनमें से कई सार्वजनिक उपक्रम अब भी बढ़िया काम कर रहे हैं।

पर अधिकतर उपक्रम भ्रष्टाचार और काहिली के शिकार हो गए।

   दरअसल जब राजनीति में सदाचार का लोप होने लगा तो उसका कुपरिणाम सार्वजनिक उपक्रमों पर पड़ना ही था।

  यदि अब से भी भ्रष्टाचार और काहिली के खिलाफ सरकारें कठोर हो जाएं तो सार्वजनिक उद्यम बढ़ेंगे।

मिश्रित अर्थ व्यवस्था विकसित होगी । आज जैसा धन का संकेंद्रण नहीं होगा।

क्या ऐसा हो पाएगा ?

पता नहीं।

जिस देश के अधिकतर नेताओं और अफसरों के बीच ‘‘पैसे से  सत्ता और सत्ता से पैसे बनाने की होड़ मची हो,उस देश में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विकास की संभावना कम ही है।

....................................

  पश्चिम बंगाल का चुनाव बाद परिदृश्य

................................................................

पश्चिम बंगाल के साथ -साथ केरल से भी चुनावी हिंसा की खबरें आती रही हैं।

आरोप लगा कि कोझिकोड में मंगलवार को सी.पी.एम.कार्यकत्र्ताओं ने मुस्लिम लीग के एक कार्यकत्र्ता की हत्या कर दी।

  पश्चिम बंगाल से तो आम दिनों में भी अनेक हत्याओं की खबरें आती रही हैं।

पर दोनों हत्याओं में अधिक नहीं तो थोड़ा फर्क जरूर है।

2012 की मई में केरल सी.पी.एम. के इडुकी जिला सचिव एम.एन.मणि ने कहा था कि ‘‘हम अपने राजनीतिक विरोधियों की हत्या करवा देते हैं।’’

उनका यह बयान देश भर के अखबारों में छपा था।

  पर, पश्चिम बंगाल की चुनावी हिंसा उसी तरह की है जिस तरह की हिंसा बिहार में अस्सी-नब्बे के दशकों में हुआ करती थी।

   अभी तो रिजल्ट आना बाकी है।इसलिए यह कहना संभव नहीं है कि बंगाल में अगली सरकार किसकी बनेगी।

मिल रहे अनुमानों के अनुसार किसी पक्ष की सरकार बन सकती है।

ममता बनर्जी की सरकार यदि फिर बन जाए तब तो हिंसा के मामले में भी किसी परिवत्र्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती।

किंतु भाजपा की बनी तो कुछ उम्मीद की जा सकती है।

  हालांकि नजर आने लायक परिवत्र्तन तभी होगा जब पिछली सत्ता से जुड़े बाहुबली, अगली सत्ता के हिस्सा न बन जाएं।

 पिछले दशकों में यही होता रहा है।

पश्चिम बंगाल में 1972 -77 की कांग्रेस सरकार ने नक्सलियों  के सफाए के लिए बाहुबली दस्ते तैयार किए थे।

पर जब 1977 में वाम मोर्चा की सरकार बनी तो उनमेंसे अनेक बाहुबली वाम मोर्चा में शामिल हो गए।

बाद में वही लोग ममता बनर्जी की पार्टी की शोभा बढ़ाने लगे। 

.....................................

और अंत में

....................................

बिहार के ताजा मैट्रिक रिजल्ट की मेधा सूची देखी।

92 टाॅपरों में से सिर्फ 14 विद्यार्थियों के नाम के साथ जाति सूचक उपनाम हैं।

खैर, नाम तो उनके अभिभावक ने रखे हैं।

यह किस बात का संकेत है कि अधिकतर लोग जातीय पहचान का प्रदर्शन अब नहीं चाहते।

ऐसा पहले नहीं था।

.......................................

कानोंकान,प्रभात खबर

पटना-9 अप्रैल 21



रविवार, 4 अप्रैल 2021

 पश्चिम बंगाल चुनाव 

....................................

ममता बनर्जी द्वारा मुसलमान मतदाताओं को एकजुट रखने की अपील सांप्रदायिकता नहीं है।

लेकिन हिन्दू वोटर एका की अपील सांप्रदायिक हो जाती है।

.......यह कौन सा मेकनिज्म है !

.....................................

  ---मीनाक्षी जोशी

  दैनिक जागरण

   4 अप्रैल 21

..........................................

संदर्भ 

........................

मुमहम्मद पुर,बेनी पट्टी ,मधुबनी में एक ही 

परिवार के पांच लोगों का सामूहिक संहार

.................................

यह बात एक बार फिर साबित हुई है।

किस सामाजिक समूह के नर संहार के बाद प्रतिक्रियास्वरूप  किस संगठन,किस नेता और किस बुद्धिजीवी को क्या बोलना 

है,कितना बोलना है या चुप रहना है,यह सब पहले से ही निर्धारित रहता है।

 ..........................................................

चुनाव में हारने वाले नेता

....................................

सन 1969 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया।

जनता ने खुश होकर इंदिरा जी को 1971 के लोक सभा चुनाव में भारी बहुमत से जिता दिया।

उस पर जनसंघ अध्यक्ष बलराज मधोक ने कहा कि मतपत्र पर रसियन स्याही का उपयोग किया गया था।यानी , इंदिरा गांधी की जीत फर्जी है।

..................................

इन दिनों जब कांग्रेस को अपने लिए कोई चुनावी उम्मीद 

नजर नहीं आ रही है तो पियंका गांधी कह रही हैं कि 

‘‘चुनाव आयोग ने अपनी रूल बुक से निष्पक्षता वाले पेज को फाड़कर फेंक दिया है।’’

....................................

अपनी गलतियों से नहीं सीख रही कांग्रेस

......................................

17 नवंबर, 2015 को मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तानियों से अपील की थी कि आप नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाओ।

...................................

सन 2019 के लोकसभा चुनाव में अधिक बहुमत 

से मोदी सरकार सत्ता से आ गई।

.....................................

गत शुक्रवार को राहुल गांधी ने एक अमरीकी से कहा कि भारत में 2014 के बाद लोकतंत्र बचा नहीं है।फिर भी अमरीका चुप है।

.............................................

अब देखना है कि राहुल के इस बयान का कांग्रेस पर कुप्रभाव 

उसी तरह पड़ता है या नहीं जिस तरह का असर मणिशंकर के 2015 के बयान का पड़ा था !

...............................................

--सुरेंद्र किशोर-

4 अप्रैल 21


शनिवार, 3 अप्रैल 2021

 समय से पहले और तकदीर से ज्यादा,

कभी किसी को कुछ नहीं मिलता।

रे मनुआ ! निराशा कैसी ?

समय आने पर पूरा मिलेगा,

जो तकदीर में बदा है,वह सब मिलेगा।

          --- अज्ञात 

मार्च 2021


   42 देशों को हथियार बेच रहा है भारत,

   अमेरिका भी लाइन में 

  ..................................................... 

रक्षा मंत्रालय की रपट के अनुसार भारत फिलहाल 42 देशों को रक्षा सामग्री निर्यात कर रहा है।

 इस देश के आयुध कारखानों द्वारा इस्रायल ,स्वीडन,यूएइ ,ब्राजील, बांग्लादेश, बुलगारिया देशों को हथियारों की बिक्री की जा रही है।

     कतर, लेबनान, इराक, इक्वेडोर व जापान जैसे देशों 

को भारत बाॅडी प्रोटेक्टिंग उपकरण निर्यात कर रहा है।

यू ए इ ने भारत से सर्वाधिक खरीद की है।

........................................

--प्रभात खबर,पटना-

2 अप्रैल 21

...................................

अब सवाल उठता है कि 2014 से पहले आयुध निर्यात की स्थिति क्या थी ?

तब क्या हम सिर्फ आयात ही करते थे या निर्यात भी ?

निर्यात भी तो कितने देशों को ?

क्या यह बात सच है कि हथियारों का आयात जारी रखने व उसे बढ़ाते रहने में 2014 से पहले सत्ताधारियों,पेशेवर दलालों व कुछ बिचैलिए मीडियाकर्मियों का निहितस्वार्थ था ?

क्या जानबूझकर हमारे अपने देश के आयुध कारखानों का विकास-विस्तार  नहीं किया गया ?

क्या इसके पीछे कमीशनखोरी की सुविधा बरकरार रखने की मंशा थी ?

आज हमारे यहां जितने हथियारों का उत्पादन हो रहा है,उसमें बढ़ोत्तरी की भी योजना है ?

इस संबंध में कोई जानकार व्यक्ति हमारा ज्ञान बढ़ाए तो हथियारों की उपलब्धता के बारे में देश की मौजूदा स्थिति का भी पता चलेगा।   

...................................

  --सुरेंद्र किशोर-

2 अप्रैल 21


 जम्मू एंड कश्मीर के डी.जी.पी.रहे शेष पाॅल वैद्य ने लिखा 

 है कि 

‘‘भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगने के एक हफ्ते बीत जाने के बाद भी महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने अब तक इस्तीफा नहीं दिया है।

   यदि वह पुलिस या डी.जी.पी.होते तो इस तरह के आरोप लगने के एक घंटे के अंदर बाहर कर दिए गए होते।

  अफसोस कि हमारे देश के नेताओं में जवाबदेही नाम की कोई चीज नहीं रह गई है।

.......................................

2 अप्रैल 21

  


 


 अंचलकर्मियों की घूसखोरी रोकने में सरकार 

ले विधायकों की मदद--सुरेंद्र किशोर 

 ....................................................  

बिहार के वैशाली जिले के हाजीपुर अंचल के प्रभारी राजस्व निरीक्षक पर 9 करोड़ 70 लाख रुपए की अवैध कमाई का मामला दर्ज हुआ है।

 एक मामूली पद की इतनी अधिक नाजायज कमाई ? !!

  एक आम धारणा है।

अधिकतर कर्मी जायज काम के लिए भी आम लोगों से जबरन वसूली करते रहते हैं।

 ऐसे कर्मी अपने लिए व अपने से ऊपर-नीचे के कर्मियों के लिए भी पैसे बनाते हैं।हालांकि सारे कर्मी ऐसा नहीं करते।

अपवादों को छोड़कर इस काम में ऊपर व नीचे के कर्मियों का भी सहयोग रहता है।

कानून यह भी बनना चाहिए कि पकड़ में आए कर्मियों के कंट्रोलिंग अफसरों की संपत्ति की भी साथ- साथ जांच हो।

 अधिकतर विधायकों तक ऐसे गोरखधंधे की खबरें पहुंचती रहती हंै।

पर,वे आम तौर पर चुप रहते हैं।

उसके कई कारण होते हैं।

कहते हैं कि विधायकों की शिकायत के बावजूद कई बार सरकार ऐसे भ्रष्ट कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती।

उधर आम लोग रोज-रोज थाने-अंचल कार्यालयों से प्रताड़ित होते रहते है।अपवादों को छोड़ दें तो उनके जायज काम भी नजराने-शुकराने  के बिना नहीं होते।

  यदि राजनीतिक कार्यपालिका चाहे तो अपने विधायकों से भ्रष्टाचार कम करने में ठोस सहयोग ले सकती है।

तय हो जाए कि जो विधायक जिला व अंचल स्तर के भ्रष्ट सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार की गुप्त रूप से अधिक से अधिक ठोस सूचना देंगे,उन्हें अगली बार टिकट मिलने की अधिक गुंजाइश रहेगी।

यदि जानकारी रहने के बावजूद सूचना नहीं दें तो टिकट कटने के अधिक चांस रहेंगे।

क्या राजनीतिक दल ऐसा कर पाएंगे ?

..........................................

घूसखोरी कम तो सरकार की बेहतर छवि 

..............................................

  हाजीपुर के राजस्व कर्मचारी की नाजायज कमाई की भारी   मात्रा देखकर यह साफ है कि घूस के लिए आम लोगों को उसने कितना प्रताड़ित किया होगा।

 आम जनता का ऐसे छोटे पदों पर बैठे कर्मियों से ही अधिक पाला पड़ता है।

इनके भ्रष्टाचार के कारणा आमलोगों में सरकार की छवि खराब होती है।

क्योंकि नीचे स्तर के भ्रष्ट कर्मी सच या झूठ कहते रहते हैं कि हमें तो ऊपर भी देना होता है। 

   यदि स्थानीय विधायक आम लोगों को भ्रष्ट अफसरों से बचाएं या बचाने की कोशिश करें तो उनकी लोकप्रियता भी न सिर्फ बनी रहेगी,बल्कि बढ़ेगी भी।

अब राज्य स्तर के नेतृत्व पर यह जिम्मेदारी आती है।वे अपने विधायकों से कहें कि वे अपने क्षेत्र में ऊपरी आय वाले सरकारी पदों पर बैठे कर्मियों व अफसरों पर निगरानी रखें।

 ताकि, वे जनता में सरकार की छवि और अधिक खराब न कर सकें।क्या ऐसा हो पाएगा ?

लगता तो नहीं है,पर कोशिश करने में क्या हर्ज है !

   .....................................................

नाम के साथ पद्मश्री 

लगाना नियम विरूद्ध


 .................................................... 

 सरकार जिस नियम को लागू नहीं कर पा रही होती है,उसे समाप्त ही कर देना चाहिए।

  नियम है कि भारत रत्न व पद्म सम्मान प्राप्त व्यक्ति उसका इस्तेमाल अपने नाम के साथ टाइटिल के रूप में नहीं कर सकता।

पर, इस देश के अनेक सम्मानित लोग इस नियम की धज्जियां उड़ाते पाए जाते हैं।

  2013 में तेलुगु फिल्मों की हस्तियों मोहनबाबू और ब्रह्मानंदम का मामला आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में गया था।

उन पर आरोप था कि वे पद्मश्री शब्द अपने नामों के साथ जोड़ते हैं।

  23 दिसंबर, 2013 को हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को निदेश दिया कि वह इनके पद्म पुरस्कार को वापस लेने के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश करे।

 इन हस्तियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट से कहा गया कि वे नियम की जानकारी के अभाव में ऐसा कर रहे थे।

अब नहीं करेंगे।

  इस आश्वासन पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया।

  इस प्रकरण के बाद भी आज देश के अनेक महानुभाव अपने नाम के आगे या पीछे पद्मश्री जोड़ लेते हैं।

कुछ सज्जन तो अपने मकान के नेम प्लेट में भी ऐसा ही लिखवा लेते हैं।

अखबारों में उनके बयान और लेख भी कई बार पद्मश्री सहित उनके नाम के साथ छपते हैं।

 लेटरहेड, निमंत्रण पत्र, पोस्टर, किताब आदि में इसका इस्तेमाल  करते रहते हैं।

  यदि शासन इसे नहीं रोक सकता तो ऐसे नियम को बनाए रख कर सरकार अपना उपहास क्यों कराती रहती है ?

    .............................................

  पीठासीन पदाधिकारी सम्मेलन 

  बुलाने की जरूरत

    ................................

किसान विधेयक पर राज्य सभा में गत वर्ष अभूतपूर्व व अशोभनीय हंगामा हुआ।

पिछले दिनों कर्नाटका विधान परिषद के उप सभापति को कई विधान पार्षदों ने मिलकर टांगा और उन्हें उनकी कुर्सी से हटा दिया।

हाल में बिहार विधान सभा के भीतर व बाहर जिस तरह के शर्मनाक दृश्य उपस्थित हुए,वह आम 

लोगों ने भी अपने टी.वी.चैनलों पर देखा।

इस देश की विधायिकाओं का यह हाल देखकर नई पीढ़ी शर्मसार होती रहती है।

क्या अब समय नहीं आ गया है कि हमारे हुक्मरान लोकतांत्रिक 

संस्थाओं को और अधिक शर्मसार करने वालों से लोकतंत्र के मंदिर को यथाशीघ्र बचा लें ?

  अखिल भारतीय पीठासीन पदाधिकारियों का विशेष सम्मेलन बुलाकर उसमें पतन को रोकने के उपाय ढूंढे़ जाने चाहिए।

........................

और अंत में

.........................

गत साल अगस्त में शिवसेना नेता संजय राऊत ने कहा था कि दुनिया मुम्बई पुलिस की क्षमता को जानती है।

इसकी तुलना स्काॅटलैंड यार्ड (लंदन पुलिस )से की जाती है।

यदि संजय राऊत की टिप्पणी का तब पता चला होगा तो उस समय तो लंदन पुलिस को यह तुलना शायद अच्छी लगी होगी।

किंतु अब मुम्बई पुलिस के निलंबित अधिकारी सचिन वाझे के सनसनीखेज कारनामों की खबरें सुनकर लंदन पुलिस को कैसा लग रहा होगा ?

.........................................

कानोंकान,प्रभात खबर,पटना, 2 अप्रैल 21


  



 



लोकतंत्र को शर्मसार करने के बदले अदालत जाना सम्मानजनक कदम-सुरेंद्र किशोर

 ................................................................

  बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021 को बिहार विधान मंडल ने पारित कर दिया।

अब उस विधेयक पर राज्यपाल की स्वीकृति भी मिल ही जाएगी।

फिर वह कानून का स्वरूप ग्रहण कर लेगा।

यदि प्रतिपक्ष को उस कानून पर एतराज है तो वह अदालत की शरण ले सकता है।

  अदालत जो भी फैसला करे, वह सबको मान्य होना चाहिए।

लेकिन उसको लेकर सदन के भीतर और बाहर हंगामा करने से न तो प्रतिपक्ष को कोई उपलब्धि हासिल हुई और न ही उसका सम्मान बढ़ा।

उल्टे अनेक लोगों को ‘जंगल राज’ की याद आ गई।

शांतिपूर्ण धरना,अनशन या सत्याग्रह में जितना नैतिक बल है,उतना तोड़-फोड़,हिंसा और गाली -गलौज में नहीं है।

यह बात कई बार साबित हो चुकी है।        

    ..............................................

     सी.पी.एम.ने किया था बंगाल 

     विधान सभा का बहिष्कार

    ...................................................

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(माक्र्सवादी) ने पूरे पांच साल(1972-77) तक पश्चिम बंगाल विधान सभा का बहिष्कार किया था।

सन 1972 में वहां विधान सभा का चुनाव हुआ था।

सी.पी.एम.को सिर्फ 14 सीटें मिली थीं।जबकि, उसके पहले के आम चुनाव में सी.पी.एम.को 113 सीटें मिली थीं।

1967 से 1972 तक मिलीजुली सरकारें बनीं,बिगड़ीं।

पर ं1972 में बड़े बहुमत से कांग्रेस सत्ता में आई थी।

सिद्धार्थ शंकर राय मुख्य मंत्री बन गए।

सी.पी.एम. ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने चुनाव में धांधली की।जबकि दूसरे सूत्रों के कहा कि 

बांग्ला देश के निर्माण में कांग्रेस की केंद्र सरकार के योगदान का लाभ पश्चिम बंगाल चुनाव में कांग्रेस को मिला।

  सी.पी.एम.के सभी 14 सदस्यों ने पूरे पांच तक विधान सभा का बहिष्कार किया।

तब यह सुना गया था कि चुने गए 14 सी.पी.एम. सदस्यों ने न तो विधान सभा सचिवालय में अपनी हाजिरी बनाई और न ही वेतन-भत्ता  उठाया।

यदि उन दिनों विधायक चुनाव क्षेत्र फंड का प्रावधान होता तो संभवतः उसका भी सी.पी.एम. बहिष्कार ही करती।तब राजनीति में शुचिता बाकी थी।

अब जब बिहार में राजद यह कह रहा है कि वह विधान सभा का बहिष्कार कर सकता है।

  क्या यह संभव है ?क्या यह उचित है ?क्या यह व्यावहारिक है ?अच्छा तो होगा कि राजद अपने रुख में बदलाव करे।

प्रतिपक्ष लोकतंत्र का अनिवार्य अंग है।

यदि बदलाव नहीं हुआ तो एक सवाल उठेगा।

आज किस दल के कितने विधायक उतना त्याग करने को तैयार होंगे जितना त्याग सी.पी.एम.विधायकों ने किया था ? 

  दिल्ली के उप राज्यपाल को ज्यादा शक्तियां देने वाले विधेयक को संसद ने पास कर दिया।

  आम आदमी पार्टी ने उसके खिलाफ अदालत की शरण लेने का निर्णय किया है।

‘आप’ का वह कदम संवैधानिक व सम्मानजनक है।

उसके बदले किसी विधेयक के खिलाफ दंगा करना और  सदन के बाहर-भीतर अशोभनीय कारनामे करना निदंनीय है।

इससे नई पीढ़ी के मन में मौजूदा राजनीति व लोकतंत्र के प्रति खराब धारणा बनती हेै।

.............................................

महिला आरक्षण का असर 

........................


बिहार सरकार की नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं।

इसका सकारात्मक असर कई हलकों पर पड़ा है।

किंतु प्रादेशिक राजधानी पटना में इसका स्पष्ट असर सड़कों पर दिख रहा है।

कुछ भौतिक और अधिक मनो वैज्ञानिक।

  अब अधिक संख्या में महिला सिपाही नगर के विभिन्न हिस्सांे में तैनात दिखाई पड़ती हैं।

  नतीजतन देर शाम नगर में निकलने वाली सामान्य महिलाएं भी अब खुद को पहले की अपेक्षा अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं।

   हालांकि महिला सुरक्षाकर्मियों के सामने कुछ कठिनाइयां भी हैं।

 महिला कर्मियों के लिए नगर में शौचालयों की कमी है।

 शौचालय हैं जरूर,किंतु पर्याप्त संख्या में नहीं हैं।हाल में पटना में दर्जनों जगह शौचालय बनाए गए हैं।

किंतु उनकी संख्या और भी बढ़ाई जानी चाहिए।खासकर ट्रैफिक पोस्ट के आसपास।

...................................

    अशिष्ट व्यवहार हानिकारक 

   .............................................. 

इस देश-प्रदेश का समकालीन राजनीतिक इतिहास हमें एक खास तरह की सीख देता है।

वह सीख यह है कि जो नेता राजनीति में अशिष्टता,अश्लीलता और बाहुबल के इस्तेमाल को अपना हथियार बनाते हंै,उनकी राजनीति अधिक टिकाऊ नहीं होती।

इसके बावजूद अनेक लोग  वह सीख ग्रहण नहीं करते।यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति  है।

......................................

 सोना तस्करी बना चुनावी मुद्दा

..........................

राजनीति के इस ‘‘अर्थ युग’’ ऐसे -ऐसे नेताओं व दलों पर भी अब ऐसे -ऐसे आरोप लग रहे हैं जिस तरह के आरोप पहले नहीं लगते थे।

 केरल के वामपंथी मुख्य मंत्री पर 

चुनाव प्रचार के दौरान 

सोना तस्करों से संबंध रखने का आरोप लग रहा है।

कम्युनिस्ट खास कर सी.पी.एम.नेताओं पर भ्रष्टाचार के पहले इतने बड़े आरोप नहीं लगा करते थे।

अब लगने लगे हंै।

कम्युनिस्ट नेताओं का निजी जीवन आम तौर पर सादगीभरा होता रहा है।

दूसरे देश के कम्युनिस्टों से साठगांठ रखने के उनपर आरोप जरूर थे,किंतु निजी जीवन आम तौर ठीकठाक रहा।

पर, पश्चिम बंगाल में लंबे समय  तक सत्ता में रहने के कारण छिटफुट आरोप लगने लगे।

तत्कालीन मुख्य मंत्री ज्योति बसु अक्सर यह कहा करते थे कि पार्टी के भीतर के भ्रष्ट तत्वों पर हम कार्रवाई करेंगे।पर सबक सिखाने वाली कार्रवाई नहीं हो सकी।

नतीजतन अनेक राज्यों में स्थिति बिगड़ती चली गई।

अब मुख्य मंत्री पर तस्करों से सांठगांठ का आरोप लगा है।

ऐसे आरोपों से कम्युनिस्ट दल के छोटे- छोटे ईमानदार कार्यकत्र्ताओं का मनोबल टूटता है।

.............................

और अंत में

......................

 पूणे स्थित सेरम इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया को उम्मीद है कि वह सन 2022 तक कोविड वैक्सीन का करीब चार बिलियन डाॅलर का सौदा करेगा।

  पिछले तीन महीने में कंपनी ने 80 देशों को करीब 250 मिलियन डाॅलर के वैक्सीन बेचे हैं।यह इस देश के लिए बड़ी उपलब्धि है।

....................................

कानोंकान,प्रभात खबर,पटना

26 मार्च 21