शनिवार, 3 अप्रैल 2021

 



लोकतंत्र को शर्मसार करने के बदले अदालत जाना सम्मानजनक कदम-सुरेंद्र किशोर

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  बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021 को बिहार विधान मंडल ने पारित कर दिया।

अब उस विधेयक पर राज्यपाल की स्वीकृति भी मिल ही जाएगी।

फिर वह कानून का स्वरूप ग्रहण कर लेगा।

यदि प्रतिपक्ष को उस कानून पर एतराज है तो वह अदालत की शरण ले सकता है।

  अदालत जो भी फैसला करे, वह सबको मान्य होना चाहिए।

लेकिन उसको लेकर सदन के भीतर और बाहर हंगामा करने से न तो प्रतिपक्ष को कोई उपलब्धि हासिल हुई और न ही उसका सम्मान बढ़ा।

उल्टे अनेक लोगों को ‘जंगल राज’ की याद आ गई।

शांतिपूर्ण धरना,अनशन या सत्याग्रह में जितना नैतिक बल है,उतना तोड़-फोड़,हिंसा और गाली -गलौज में नहीं है।

यह बात कई बार साबित हो चुकी है।        

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     सी.पी.एम.ने किया था बंगाल 

     विधान सभा का बहिष्कार

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भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(माक्र्सवादी) ने पूरे पांच साल(1972-77) तक पश्चिम बंगाल विधान सभा का बहिष्कार किया था।

सन 1972 में वहां विधान सभा का चुनाव हुआ था।

सी.पी.एम.को सिर्फ 14 सीटें मिली थीं।जबकि, उसके पहले के आम चुनाव में सी.पी.एम.को 113 सीटें मिली थीं।

1967 से 1972 तक मिलीजुली सरकारें बनीं,बिगड़ीं।

पर ं1972 में बड़े बहुमत से कांग्रेस सत्ता में आई थी।

सिद्धार्थ शंकर राय मुख्य मंत्री बन गए।

सी.पी.एम. ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने चुनाव में धांधली की।जबकि दूसरे सूत्रों के कहा कि 

बांग्ला देश के निर्माण में कांग्रेस की केंद्र सरकार के योगदान का लाभ पश्चिम बंगाल चुनाव में कांग्रेस को मिला।

  सी.पी.एम.के सभी 14 सदस्यों ने पूरे पांच तक विधान सभा का बहिष्कार किया।

तब यह सुना गया था कि चुने गए 14 सी.पी.एम. सदस्यों ने न तो विधान सभा सचिवालय में अपनी हाजिरी बनाई और न ही वेतन-भत्ता  उठाया।

यदि उन दिनों विधायक चुनाव क्षेत्र फंड का प्रावधान होता तो संभवतः उसका भी सी.पी.एम. बहिष्कार ही करती।तब राजनीति में शुचिता बाकी थी।

अब जब बिहार में राजद यह कह रहा है कि वह विधान सभा का बहिष्कार कर सकता है।

  क्या यह संभव है ?क्या यह उचित है ?क्या यह व्यावहारिक है ?अच्छा तो होगा कि राजद अपने रुख में बदलाव करे।

प्रतिपक्ष लोकतंत्र का अनिवार्य अंग है।

यदि बदलाव नहीं हुआ तो एक सवाल उठेगा।

आज किस दल के कितने विधायक उतना त्याग करने को तैयार होंगे जितना त्याग सी.पी.एम.विधायकों ने किया था ? 

  दिल्ली के उप राज्यपाल को ज्यादा शक्तियां देने वाले विधेयक को संसद ने पास कर दिया।

  आम आदमी पार्टी ने उसके खिलाफ अदालत की शरण लेने का निर्णय किया है।

‘आप’ का वह कदम संवैधानिक व सम्मानजनक है।

उसके बदले किसी विधेयक के खिलाफ दंगा करना और  सदन के बाहर-भीतर अशोभनीय कारनामे करना निदंनीय है।

इससे नई पीढ़ी के मन में मौजूदा राजनीति व लोकतंत्र के प्रति खराब धारणा बनती हेै।

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महिला आरक्षण का असर 

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बिहार सरकार की नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं।

इसका सकारात्मक असर कई हलकों पर पड़ा है।

किंतु प्रादेशिक राजधानी पटना में इसका स्पष्ट असर सड़कों पर दिख रहा है।

कुछ भौतिक और अधिक मनो वैज्ञानिक।

  अब अधिक संख्या में महिला सिपाही नगर के विभिन्न हिस्सांे में तैनात दिखाई पड़ती हैं।

  नतीजतन देर शाम नगर में निकलने वाली सामान्य महिलाएं भी अब खुद को पहले की अपेक्षा अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं।

   हालांकि महिला सुरक्षाकर्मियों के सामने कुछ कठिनाइयां भी हैं।

 महिला कर्मियों के लिए नगर में शौचालयों की कमी है।

 शौचालय हैं जरूर,किंतु पर्याप्त संख्या में नहीं हैं।हाल में पटना में दर्जनों जगह शौचालय बनाए गए हैं।

किंतु उनकी संख्या और भी बढ़ाई जानी चाहिए।खासकर ट्रैफिक पोस्ट के आसपास।

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    अशिष्ट व्यवहार हानिकारक 

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इस देश-प्रदेश का समकालीन राजनीतिक इतिहास हमें एक खास तरह की सीख देता है।

वह सीख यह है कि जो नेता राजनीति में अशिष्टता,अश्लीलता और बाहुबल के इस्तेमाल को अपना हथियार बनाते हंै,उनकी राजनीति अधिक टिकाऊ नहीं होती।

इसके बावजूद अनेक लोग  वह सीख ग्रहण नहीं करते।यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति  है।

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 सोना तस्करी बना चुनावी मुद्दा

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राजनीति के इस ‘‘अर्थ युग’’ ऐसे -ऐसे नेताओं व दलों पर भी अब ऐसे -ऐसे आरोप लग रहे हैं जिस तरह के आरोप पहले नहीं लगते थे।

 केरल के वामपंथी मुख्य मंत्री पर 

चुनाव प्रचार के दौरान 

सोना तस्करों से संबंध रखने का आरोप लग रहा है।

कम्युनिस्ट खास कर सी.पी.एम.नेताओं पर भ्रष्टाचार के पहले इतने बड़े आरोप नहीं लगा करते थे।

अब लगने लगे हंै।

कम्युनिस्ट नेताओं का निजी जीवन आम तौर पर सादगीभरा होता रहा है।

दूसरे देश के कम्युनिस्टों से साठगांठ रखने के उनपर आरोप जरूर थे,किंतु निजी जीवन आम तौर ठीकठाक रहा।

पर, पश्चिम बंगाल में लंबे समय  तक सत्ता में रहने के कारण छिटफुट आरोप लगने लगे।

तत्कालीन मुख्य मंत्री ज्योति बसु अक्सर यह कहा करते थे कि पार्टी के भीतर के भ्रष्ट तत्वों पर हम कार्रवाई करेंगे।पर सबक सिखाने वाली कार्रवाई नहीं हो सकी।

नतीजतन अनेक राज्यों में स्थिति बिगड़ती चली गई।

अब मुख्य मंत्री पर तस्करों से सांठगांठ का आरोप लगा है।

ऐसे आरोपों से कम्युनिस्ट दल के छोटे- छोटे ईमानदार कार्यकत्र्ताओं का मनोबल टूटता है।

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और अंत में

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 पूणे स्थित सेरम इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया को उम्मीद है कि वह सन 2022 तक कोविड वैक्सीन का करीब चार बिलियन डाॅलर का सौदा करेगा।

  पिछले तीन महीने में कंपनी ने 80 देशों को करीब 250 मिलियन डाॅलर के वैक्सीन बेचे हैं।यह इस देश के लिए बड़ी उपलब्धि है।

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कानोंकान,प्रभात खबर,पटना

26 मार्च 21


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