बिजनेसमैन भी अपनी संतान को
शिक्षित व काबिल बनाते हैं।
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किंतु इस देश के वंशवादी-परिवारवादी
दलों की अगली पीढ़ियों को कमान देने से पहले
कितना शिक्षित किया जाता है ?
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--सुरेंद्र किशोर--
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टूव्हीलर श्रेणी में हीरो दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है।
उसका इंश्योरेंस डिस्टीब्यूशन बिजनेस भी देश का सबसे बड़ा है।
ऐसा कैसे संभव हुआ ?
इसका कारण बताते हैं कंपनी चेयरमैन सुनीलकांत मुंजाल।
उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि
‘‘हमने कोशिश की कि हम हर पीढ़ी को अच्छी शिक्षा दें।
मुंजाल इस बात से सहमत थे कि आम तौर पहली पीढ़ी बिजेनस तैयार करती है।दूसरी पीढ़ी उसे एक मुकाम पर ले जाती है।
ज्यादातर मामलों में तीसरी पीढ़ी उसे बर्बाद कर देती है।
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अब इसकी तुलना इस देश की वंशवादी-परिवारवादी राजनीतिक पार्टियों से कीजिए।
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आजादी के लड़ाई के दिनों और बाद के कुछ वर्षों तक राजनीति, ‘सेवा’ थी।
1972 में जब स्वतंत्रता सेनानियों के लिए और 1976 में पूर्व सांसदों के लिए पेंशन का प्रावधान किया गया,तो मान लिया गया कि राजनीति ‘नौकरी’ है।
सन 1992 में जब सांसद फंड की व्यवस्था हुई तो राजनीति का व्यावसायिक रूप सामने आया।
राजनीति में निरंतर गिरावट के कारण अब स्थिति यह है कि राजनीति को ‘‘उद्योग का दर्जा’’ मिल चुका है।
जब भी किसी बड़े नेता की संपत्ति की जांच होती है तो अनेक मामलों में यह पाया जाता है कि उसके पास अरबों की अघोषित संपत्ति है।
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राजनीति में सक्रिय कुछ नेता व दल इसके अपवाद जरूर हैं।
किंतु अधिकतर वंशवादी-परिवारवादी दलों को देखकर लगता है कि वे राजनीति के नाम पर निजी उद्योग चला रहे हैं।
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किंतु उन्होंने मुंजाल की तरह अपने वंशजों को शिक्षित किया होता तो तीन-चार पीढ़ियां बीतते -बीतते उनके दुबले होते जाने की नौबत नहीं आती।
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हालांकि वंशवादी-परिवारवादी दलों में उत्तराधिकारी के रूप में कुछ ऐसे अपात्र नेता भी सामने आए हैं जिन्हें शिक्षित करने से भी कोई फायदा नहीं होने वाला था।
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--सुरेंद्र किशोर-11 अप्रैल 21
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