सौ पैसे का घिसकर 15 पैसे बन जाना !
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सन 1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि
जन कल्याण के लिए केंद्र सरकार जो खर्च करती है,उसके प्रत्येक रुपए यानी सौ पैसों में से सिर्फ 15 पैसे ही उन तक पहुंच पाते हैं जिनके लिए पैसे आबंटित होते हैं।
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अब सवाल है कि सौ पैसों में से 85 पैसे बीच में ही लूट लिए जाने के लिए कौन-कौन लोग जिम्मेदार रहे हैं ?
क्या राजीव गांधी से पहले बने प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू,इंदिरा गांधी या लाल बहादुर शास्त्री जिम्मेदार थे ?
इनमें से कोई एक जिम्मेदार था ?
या तीनों जिम्मेदार थे ?
यानी, जिस शीर्ष सत्तासीन व्यक्ति को सरकारी खजाने की रक्षा की जिम्मेदारी थी,उन्होंने उसकी रक्षा क्यों नहीं की ?
उनकी क्या मजबूरी थी ?
ऐसे में क्या वे सफल नेता माने जाएंगे ?
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या, सौ पैसे के घिस कर 15 पैसे बने जाने के लिए अफसरशाही जिम्मेदार थी ?
क्या अन्य राजनीतिक लोग जिम्मेदार थे ?
या कोई अन्य जिम्मेदार थे ?
क्या इसका तार्किक जवाब देश को कभी मिल पाएगा ?
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--सुरेंद्र किशोर
28 अप्रैल 21
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