शनिवार, 3 अप्रैल 2021

 


 अंचलकर्मियों की घूसखोरी रोकने में सरकार 

ले विधायकों की मदद--सुरेंद्र किशोर 

 ....................................................  

बिहार के वैशाली जिले के हाजीपुर अंचल के प्रभारी राजस्व निरीक्षक पर 9 करोड़ 70 लाख रुपए की अवैध कमाई का मामला दर्ज हुआ है।

 एक मामूली पद की इतनी अधिक नाजायज कमाई ? !!

  एक आम धारणा है।

अधिकतर कर्मी जायज काम के लिए भी आम लोगों से जबरन वसूली करते रहते हैं।

 ऐसे कर्मी अपने लिए व अपने से ऊपर-नीचे के कर्मियों के लिए भी पैसे बनाते हैं।हालांकि सारे कर्मी ऐसा नहीं करते।

अपवादों को छोड़कर इस काम में ऊपर व नीचे के कर्मियों का भी सहयोग रहता है।

कानून यह भी बनना चाहिए कि पकड़ में आए कर्मियों के कंट्रोलिंग अफसरों की संपत्ति की भी साथ- साथ जांच हो।

 अधिकतर विधायकों तक ऐसे गोरखधंधे की खबरें पहुंचती रहती हंै।

पर,वे आम तौर पर चुप रहते हैं।

उसके कई कारण होते हैं।

कहते हैं कि विधायकों की शिकायत के बावजूद कई बार सरकार ऐसे भ्रष्ट कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती।

उधर आम लोग रोज-रोज थाने-अंचल कार्यालयों से प्रताड़ित होते रहते है।अपवादों को छोड़ दें तो उनके जायज काम भी नजराने-शुकराने  के बिना नहीं होते।

  यदि राजनीतिक कार्यपालिका चाहे तो अपने विधायकों से भ्रष्टाचार कम करने में ठोस सहयोग ले सकती है।

तय हो जाए कि जो विधायक जिला व अंचल स्तर के भ्रष्ट सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार की गुप्त रूप से अधिक से अधिक ठोस सूचना देंगे,उन्हें अगली बार टिकट मिलने की अधिक गुंजाइश रहेगी।

यदि जानकारी रहने के बावजूद सूचना नहीं दें तो टिकट कटने के अधिक चांस रहेंगे।

क्या राजनीतिक दल ऐसा कर पाएंगे ?

..........................................

घूसखोरी कम तो सरकार की बेहतर छवि 

..............................................

  हाजीपुर के राजस्व कर्मचारी की नाजायज कमाई की भारी   मात्रा देखकर यह साफ है कि घूस के लिए आम लोगों को उसने कितना प्रताड़ित किया होगा।

 आम जनता का ऐसे छोटे पदों पर बैठे कर्मियों से ही अधिक पाला पड़ता है।

इनके भ्रष्टाचार के कारणा आमलोगों में सरकार की छवि खराब होती है।

क्योंकि नीचे स्तर के भ्रष्ट कर्मी सच या झूठ कहते रहते हैं कि हमें तो ऊपर भी देना होता है। 

   यदि स्थानीय विधायक आम लोगों को भ्रष्ट अफसरों से बचाएं या बचाने की कोशिश करें तो उनकी लोकप्रियता भी न सिर्फ बनी रहेगी,बल्कि बढ़ेगी भी।

अब राज्य स्तर के नेतृत्व पर यह जिम्मेदारी आती है।वे अपने विधायकों से कहें कि वे अपने क्षेत्र में ऊपरी आय वाले सरकारी पदों पर बैठे कर्मियों व अफसरों पर निगरानी रखें।

 ताकि, वे जनता में सरकार की छवि और अधिक खराब न कर सकें।क्या ऐसा हो पाएगा ?

लगता तो नहीं है,पर कोशिश करने में क्या हर्ज है !

   .....................................................

नाम के साथ पद्मश्री 

लगाना नियम विरूद्ध


 .................................................... 

 सरकार जिस नियम को लागू नहीं कर पा रही होती है,उसे समाप्त ही कर देना चाहिए।

  नियम है कि भारत रत्न व पद्म सम्मान प्राप्त व्यक्ति उसका इस्तेमाल अपने नाम के साथ टाइटिल के रूप में नहीं कर सकता।

पर, इस देश के अनेक सम्मानित लोग इस नियम की धज्जियां उड़ाते पाए जाते हैं।

  2013 में तेलुगु फिल्मों की हस्तियों मोहनबाबू और ब्रह्मानंदम का मामला आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में गया था।

उन पर आरोप था कि वे पद्मश्री शब्द अपने नामों के साथ जोड़ते हैं।

  23 दिसंबर, 2013 को हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय को निदेश दिया कि वह इनके पद्म पुरस्कार को वापस लेने के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश करे।

 इन हस्तियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट से कहा गया कि वे नियम की जानकारी के अभाव में ऐसा कर रहे थे।

अब नहीं करेंगे।

  इस आश्वासन पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया।

  इस प्रकरण के बाद भी आज देश के अनेक महानुभाव अपने नाम के आगे या पीछे पद्मश्री जोड़ लेते हैं।

कुछ सज्जन तो अपने मकान के नेम प्लेट में भी ऐसा ही लिखवा लेते हैं।

अखबारों में उनके बयान और लेख भी कई बार पद्मश्री सहित उनके नाम के साथ छपते हैं।

 लेटरहेड, निमंत्रण पत्र, पोस्टर, किताब आदि में इसका इस्तेमाल  करते रहते हैं।

  यदि शासन इसे नहीं रोक सकता तो ऐसे नियम को बनाए रख कर सरकार अपना उपहास क्यों कराती रहती है ?

    .............................................

  पीठासीन पदाधिकारी सम्मेलन 

  बुलाने की जरूरत

    ................................

किसान विधेयक पर राज्य सभा में गत वर्ष अभूतपूर्व व अशोभनीय हंगामा हुआ।

पिछले दिनों कर्नाटका विधान परिषद के उप सभापति को कई विधान पार्षदों ने मिलकर टांगा और उन्हें उनकी कुर्सी से हटा दिया।

हाल में बिहार विधान सभा के भीतर व बाहर जिस तरह के शर्मनाक दृश्य उपस्थित हुए,वह आम 

लोगों ने भी अपने टी.वी.चैनलों पर देखा।

इस देश की विधायिकाओं का यह हाल देखकर नई पीढ़ी शर्मसार होती रहती है।

क्या अब समय नहीं आ गया है कि हमारे हुक्मरान लोकतांत्रिक 

संस्थाओं को और अधिक शर्मसार करने वालों से लोकतंत्र के मंदिर को यथाशीघ्र बचा लें ?

  अखिल भारतीय पीठासीन पदाधिकारियों का विशेष सम्मेलन बुलाकर उसमें पतन को रोकने के उपाय ढूंढे़ जाने चाहिए।

........................

और अंत में

.........................

गत साल अगस्त में शिवसेना नेता संजय राऊत ने कहा था कि दुनिया मुम्बई पुलिस की क्षमता को जानती है।

इसकी तुलना स्काॅटलैंड यार्ड (लंदन पुलिस )से की जाती है।

यदि संजय राऊत की टिप्पणी का तब पता चला होगा तो उस समय तो लंदन पुलिस को यह तुलना शायद अच्छी लगी होगी।

किंतु अब मुम्बई पुलिस के निलंबित अधिकारी सचिन वाझे के सनसनीखेज कारनामों की खबरें सुनकर लंदन पुलिस को कैसा लग रहा होगा ?

.........................................

कानोंकान,प्रभात खबर,पटना, 2 अप्रैल 21


  



कोई टिप्पणी नहीं: