कारोना की महा विपत्ति में भी कुछ लोग
खोज रहे हैं अपने लिए सत्ता और संपत्ति !!
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--सुरेंद्र किशोर--
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नोटबंदी के ठीक बाद उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव हुआ था।
तब राजग विरोधी दल यह अनुमान लगा रहे थे कि वहां उनकी ही सरकार बनेगी।
क्योंकि मोदी सरकार ने नोटबंदी
करके पूरे देश को बैंकों के सामने लाइन में खड़ा कर दिया।
लोगों से रोजगार छिन गए।
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पर, राजग विरोधियों का वह अनुमान गलत निकला।
क्योंकि अधिकतर मतदाताओं को ‘मुख्तार अंसारी’ जैसों का राज मंजूर नहीं था।
उन्होंने छोटी विपत्ति (नोटबंदी ) को मंजूर करते हुए बड़ी विपत्ति की वापसी को रोक दिया।
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गुजरात विधान सभा चुनाव से ठीक पहले जी.एस.टी.लागू हुआ।
मुख्य प्रतिपक्ष ने उसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहा।
उसने गुजरात चुनाव नतीजे में अपनी सत्ता की वापसी की उम्मीद देखी।
पर उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई्र।
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गत साल कोरोना की शुरूआत के समय लाखों बिहारी मजदूरों की पीड़ादायक पैदल वापसी लोगों ने अपने टी.वी.सेटों पर देखी।
बिहार के प्रतिपक्ष को लगा कि नीतीश सरकार अब नहीं रहेगी।
पर, मतदाताओं ने उनकी इच्छा पूरी नहीं की।
क्योंकि उन्हें लगा कि बिहार में भी ‘‘मुख्तार अंसारी’’ जैसों का राज वापस नहीं आना चाहिए।
हां,बिहार विधान सभा में राजग की सीटें जरूर घटीं।पर उसके दो अलग कारण थे ।उन कारणों का मजदूरों के कष्टप्रद पलायन से कोई संबंध नहीं था।
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अब आइए कोरोना नए व भयंकर रूप की चर्चा करें।
कुछ राजग विरोधी दल और नेतागण तो अब 2024 के लोस चुनाव में केंद्र से मोदी सरकार के सफाए का सपना भी देखने लगे हैं।
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क्या ऐसा हो जाएगा ?
पिछले अनुभवों को देखकर तो नहीं लगता।
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क्योंकि ऐसी प्राकृतिक विपत्ति के लेकर अधिकतर लोग किसी सरकार से यह उम्मीद करते हैं कि उसने राहत-सेवा की भरसक कोशिश की या नहीं ?
या उसने भी विपत्ति को अपने लिए लूट का अवसर बनाया ?
इस मामले में जनता जिस नतीजे पर पहुंचती है,उसके अनुसार निर्णय करती है।
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वैसे पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव और 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के नतीजे कुछ ठोस राजनीतिक संकेत दे सकते हैं।
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कल्पना कीजिए कि 2024 के लोक सभा चुनाव में राजग हार गया।
प्रतिपक्ष को बहुमत मिल गया।
फिर क्या होगा ?
प्रधान मंत्री कौन बनेगा ?
कांग्रेस का कोई अन्य ‘‘मनमोहन सिंह’’ ?
क्षेत्रीय दलों में से कोई ‘‘देवगौड़ा’’ ?
ममता बनर्जी या कोई और ?
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कल्पना कीजिए गैर राजग सरकार केंद्र में बन गई।
उस सरकार का पहला काम क्या होेगा ?
इस मामले में पिछले अनुभव आपको राह दिखाते हैं।
पहला काम होगा-गैर राजग दलों खासकर कांग्रेसी नेताओं के नेताओं के खिलाफ जितने मुकदमे चल रहे हैं, उन्हें उठा लेना या कमजोर कर देना।
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दूसरा काम होगा-जिस तरह मनमोहन सिंह की सरकार चल रही थी,उसी तरह की सरकार को चलाना।
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1979 के प्रधान मंत्री चरण सिंह ने संजय गांधी के खिलाफ जारी मुकदमों को वापस लेने से मना कर दिया था।
नतीजतन उनकी सरकार गिरा दी गई।
चंद्रशेखर की सरकार ने बोफोर्स केस उठाने से इनकार कर दिया।
नतीजतन उनकी सरकार चली गई।
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अब एक नई स्थिति की कल्पना कीजिए।
नए ‘मनमोहन सिंह’ तो वैसा कोई भी काम कर देंगे।
पर, कोई गैरकांग्रेसी प्रधान मंत्री क्या करेगा ?
कितना गरल पान करेगा ?
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अब 1971 के बिहार के गांव की एक कहानी।
तब मैं गांव में रहता था।
भीषण बाढ़ आई थी।
सारण जिले के दिघवारा के सिनेमा हाॅल के पास हम नाव पर सवार होते थे और करीब साढ़े तीन किलोमीटर दूर अपने दालान के पास ही उतरते थे।
उससे पहले कांग्रेसी सरकार से नदी पर बांध बनाने की गुहार की जाती थी।
सरकार की प्राथमिकता में वह बात नहीं थी।
लोग मान रहे थे कि इस बार यानी 1972 के बिहार विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के विधायक रामजयपाल सिंह यादव तो हारेंगे ही।
पर, हुआ उल्टा।
वे जीत गए।
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मैंने दिघवारा के एक मतदाता से पूछा,
‘‘ऐसा क्यों हुआ ?’’
उसने भोजपुरी में कहा कि बाढ़ तो भगवान ने भेजा था।
किंतु भरपूर रिलीफ (सामग्री)तो हमें जयपाल बाबू ने ही दिया।
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अब देखना है कि मौजूदा कोरोना महा विपत्ति के दौरान चल रहे सरकारी राहत कार्यों से देश के लोग कितने संतुष्ट या नाराज हैं ?
इसका भी असर अगले किसी चुनाव पर पड़ेगा।
वैसे देश में कोरोना के अलावा भी चुनावी मुद्दे और भी हैं और रहेंगे भी।
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24 अप्रैल 21
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