भवन विहीन विद्यालयों से भी
शत प्रतिशत मैट्रिक रिजल्ट।
कैसे होता है यह चमत्कार ?
कोई हमारा ज्ञानवर्धन तो करे !
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--सुरेंद्र किशोर--
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दैनिक हिन्दुस्तान की खबर है कि इस साल पटना जिले के 20 भवन विहीन माध्यमिक विद्यालयों के सभी परीक्षार्थी मैट्रिक पास कर गए।
यह बात मुझे थोड़ी अविश्वसनीय लगती है।
मैं ओल्ड माॅडल (1963) का परीक्षार्थी जो ठहरा !!
क्या परीक्षा में कदाचार के बिना ऐसा चमत्कार संभव हुआ ?
क्या पढ़ाई का स्तर आसमान छू रहा है ?
ऐसे ही एक स्कूल के कुल 155 छात्रों में से 75 छात्र प्रथम श्रेणी में इस साल मैट्रिक पास हुए।
(हम एकमा स्कूल से 1963 में 14 लोग प्रथम श्रेणी में आए थे तो जिले में उस स्कूल का भी नाम हुआ था)
पर आज के रिजल्ट तो कुछ अधिक ही अविश्वसनीय लगते हंै।
कोई मुझे समझाए कि हाल के वर्षों में ऐसा कैसे होने लगा
है ?
हमारे जमाने में तो सबसे कम प्रथम श्रेणी और उससे अधिक द्वितीय श्रेणी में परीक्षार्थी पास होते थे।
तृतीय श्रेणी की संख्या तो बहुत बड़ी हुआ करती थी।
क्या अब यह असंभव नहीं लगता कि कुल परीक्षार्थियों में
सर्वाधिक परीक्षार्थी प्रथम श्रेणी में पास कर जाए !
उससे कम द्वितीय श्रेणी में और सबसे कम तृतीय श्रेणी में ?
मेधा की जांच का कौन सा नया फार्मूला आया है ?
ऐसी स्थिति पर चिंता और चिंतन स्वाभाविक है।
इस मामले में ऐसे चमत्कारिक रिजल्ट
देने वाले संबंधित अफसरों व शिक्षकों से मैं अपना ज्ञानवर्धन करने को तैयार हूं।
शायद वे ही सही हों।
मैं गलत साबित हो जाऊं !
कोई हर्ज नहीं।
मेरी चिंता यह है कि आज राज्य में शिक्षा का हाल कैसा है ?
क्या रिजल्ट उसके समानुपातिक आते हैं ?
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8 अप्रैल 21
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