आज के राजनीतिक कार्यकत्र्ता लोहिया
-जेपी के इस पक्ष को भी जरा जान लें !
उन्हें सिलेबस तक ही सीमित रखोगे ??
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पर,सवाल है कि उनकी यह सब ‘‘अव्यावहारिक
बातें’’ जानने में कितनों की रूचि है ?
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खैर, मेरी रूचि बताने में जरूर है,चाहे कोई सुने या नहीं।
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--सुरेंद्र किशोर--
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1.-डा.राममनोहर लोहिया ने शादी नहीं की।
घर नहीं बसाया।
क्योंकि उनका मानना था कि जिन्हें सार्वजनिक जीवन में
जाना है,उन्हें शादी नहीं करनी चाहिए।
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आज राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद की ‘महामारी’ को देखने से यह लगता है कि शायद डा.लोहिया यह जान गए थे कि एक दिन यही सब होने वाला है।
नेहरू परिवार को तो वे देख भी चुके थे।
इन दिनों तो इन बुराइयों के कारण कुछ राजनीतिक दल मुरझाते भी जा रहे हैं।
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2.-लोक सभा के सदस्य रहने के बावजूद डा.लोहिया ने अपने लिए कार नहीं खरीदी।
वे कहते थे कि कार को मेन्टेन करने लायक मेरी आय नहीं है।
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लोहिया यह भी जान गए थे कि नेताओं को जायज आय से अधिक खर्च करने की आदत पड़ जाएगी तो देश घोटालों-महा घोटालों में डूब जाएगा ।
आज देश के कितने छोटे -बड़े नेतागण भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में मुकदमे झेल रहे हैं,उनकी गिनती की है आपने ?
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3.-लोहिया का नारा था-‘‘पिछड़े पावें सौ में साठ।’’
वे सभी जातियों-समुदायों की महिलाओं को भी पिछड़ा मानते थे।
वे ऊंची जातियों के विरोधी नहीं थे।
बारी-बारी से उनके जितने भी निजी सचिव हुए,
सब के सब ब्राह्मण थे।
यह बात बहुत मायने रखती है कि कोई नेता किसे अपना निजी सचिव रखता है।
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याद रहे कि जातीय-साम्प्रदायिक वोट बैंक के किले में सुरक्षित हो जाने के कारण इस देश के अनेक नेताओं ने जितने भ्रष्टाचार व अनर्थ किए हैं,वह एक रिकाॅर्ड है।
यह आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था।कुछ लोग कहते हैं कि उसके पहले से ही जारी था।
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4.-लोहिया ने एक बार एक ऐसे व्यक्ति को पार्टी छोड़ देने को कहा था कि जिसके भोजनालय में शराब भी बिकती थी।
रांची के उस व्यक्ति ने शराब का व्यापार छोड़ दिया,पर पार्टी नहीं छोड़ी।
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इस देश में आज कितने नेता हैं जो शराब नहीं पीते ?
उसका राजनीतिक व गैर राजनीतिक युवा पीढ़ी पर कैसा असर पड़ता है ?
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5.-लोहिया ने 1967 के चुनाव से ठीक पहले कहा कि मैं सामान्य नागरिक संहिता के पक्ष में हूं।
इस पर उनके एक सहकर्मी ने कहा कि यह आपने क्या कह दिया ?!!
आप तो अब चुनाव हार जाएंगे।
उस पर डा.लोहिया ने कहा कि ‘‘मैं सिर्फ चुनाव जीतने के लिए राजनीति नहीं करता।
देश बनाने के लिए राजनीति करता हूं।’’
उस बयान के बाद वे चुनाव हारते -हारते जीते थे।
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सामान्य नागरिक संहिता संविधान के नीति निदेशक तत्वों वाले चैप्टर में है।
आज कितने नेता हैं जो अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण संविधान या उसकी भावना की उपेक्षा नहीं करते हैं ?
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ये तो बानगी भर हैं।
उनके बारे में और
भी बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो राजनीति में आज कहीं नजर नहीं आतीं।
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अब जरा जयप्रकाश नारायण के बारे में
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जयप्रकाश नारायण का निजी खर्च कैसे चलता था,
आपको पता है ?
उनके गांव से अनाज आता था।
मेगसायसाय पुरस्कार में मिले पैसों को बैंक में जमा कर दिया गया था जिसके सूद से उनका खर्च चलता था।
उनके लिए कपड़े उनके कुछ संपन्न मित्र बनवा देते थे।फर्नीचर भी मित्रों से मिले थे।
उनके निजी सचिव का वेतन ‘‘इंडियन एक्सप्रेस’’ यानी राम नाथ गोयनका देते थे।
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ऐसा जीवन वे सत्ता को ठोकर मार कर खुशी -खुशी बिता रहे थे।
पचास के दशक में तत्कालीन प्रधान मंत्री व उनके मुंहबोले ‘‘बड़े भाई’’ जवाहरलाल नेहरू ने सरकार से सहयोग करने के लिए जेपी को आमंत्रित किया था।
पर जेपी ने उनके सामने कार्यक्रमों की सूची संभवतः 14 या 15 सूत्री पेश कर दी ।उसमें बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी शामिल था।
कहा कि इन्हें मान लीजिएगा तो हम आपकी सरकार को सहयोग करेंगे।
नेहरू ने उसे मानने में अपनी असमर्थता दिखाई।
जेपी भी पीछे हट गए।
जानकार लोग बताते हैं कि यदि जेपी नहीं हटे होते तो बाद में जो पद लालबहादुर शास्त्री को मिला,वह जेपी को मिल सकता था।
पर जेपी तो उसके लिए नहीं बने थे।
जेपी की चिट्ठी पर नेहरू ने दिनकर जी को राज्य सभा का सदस्य बना दिया तो उन्हें क्या नहीं बना देते !
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लोहिया की तरह ही जेपी के बारे में भी और बहुत सारी बातें हैं जिसके लिए यह जगह यानी वाॅल छोटी पड़ती है।
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पहले के जमाने में ऐसे त्यागी-तपस्वी नेताओं के बारे में बड़े नेतागण अपने कार्यकत्र्ताओं को बताते हैं।
आज भी इक्के -दुक्के बताते होंगे।
पर अधिकतर नेता कहते हैं कि वह जमाना ही कुछ और था।
वह सब आज संभव नहीं है।
फिर सिलेबस से निकाले जाने पर हो -हल्ला क्यों ?
लगता है कि उतना ही करना उनके वश में है।
तो मैं कौन होता हूं रोकने वाला ?
जन्म दिन -पुण्यतिथि मनाइए,कभी कभी सिलेबस जैसे मामले उठा दीजिए, और फिर अपनी राह पर
चलते रहिए !
पर कई बार यह राह नेता को कहीं और भी ले जाती है,यह भी याद रहे।
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