श्रद्धांजलि
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रमेश थानवी नहीं रहे।
वे 78 साल के थे।
गत 12 फरवरी, 2022 को ही जयपुर में उनका निधन हुआ।
निधन के समय वे अपने भतीजा ओम थानवी (पूर्व संपादक और मौजूदा वी.सी.)के आवास पर थे।
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उनके निधन की सूचना मुझे उनकी पत्रिका ‘औपचारिकता’ के जरिए मिली जिसका ताजा अंक मुझे डाक से आज मिला।
रमेश जी उस पत्रिका के संस्थापक संपादक थे।
रमेश जी शिक्षा विद्,गांधी विचार के संवाहक,प्रौढ़ शिक्षा का अलख जगाने वालों में अग्रणी और साहित्य दर्शन के अध्येता थे।
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रमेश थानवी 2019 में मेरे पटना स्थित आवास पर आए थे।
उस समय मैंने जो पोस्ट लिखा था,उसे दुबारा यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
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4 अक्तूबर, 2019
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आज रमेश थानवी मेरे घर आए।
स्नेहिल व्यक्तित्व के धनी थानवी जी शहर से दूर गांव में होने के बावजूद मेरे यहां आए।
सड़क भी अच्छी नहीं है।
वे गांधी विचार समागम के सिलसिले में पटना आमंत्रित थे।
रमेश जी जब सत्तर के दशक में दिल्ली से प्रकाशित चर्चित साप्ताहिक पत्रिका ‘प्रतिपक्ष’ के संपादकीय विभाग मंे कार्यरत थे,उन दिनों मैं उस पत्रिका का बिहार संवाददाता था।
उन दिनों तो यदाकदा पत्रिका के काम के सिलसिले में उनसे सिर्फ पत्र-व्यवहार होता था।
बाद के वर्षों में कई बार फोन पर बातचीत हुई।
रमेश थानवी एक ऐसे परिवार से आते हैं जिसके एक से अधिक सदस्य अपने बारे में कम ,देश व समाज के बारे में अधिक सोचते रहे हैं।
यह परिवार जोधपुर के पास के गांव का मूल निवासी है।
खुद रमेश जी ने अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया।
देश-विदेश घूमे।
ज्ञानार्जन किया।
नये काम किए।
उनके भतीजा ओम थानवी जनसत्ता के संपादक रहे।
इन दिनों ओम जी हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जन संचार विश्व विद्यालय,जयपुर के कुलपति हैं।
ओम थानवी के दिवंगत पिता शिवरतन थानवी शिंक्षक,शिक्षाविद् और शिक्षा से संबंधित दो सम्मानित पत्रिकाओं के संपादक रह चुके थे।
गत साल उनका निधन हो गया।
जब मैं जनसत्ता में था तो ओम थानवी जी यदाकदा कहा करते थे कि आप तो मेरे चाचा के साथ काम कर चुके हंै।
ऐसे यशस्वी परिवार के सदस्य रमेश थानवी जब आज मेरे घर आए तो उसके पीछे सिर्फ उनका मेरे प्रति स्नेह ही था और किसी प्रयोजन का सवाल की नहीं उठता।
मैं अभिभूत हो गया।
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सुरेंद्र किशोर
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