बुधवार, 2 मार्च 2022

 


 चारा घोटाले के सजायाफ्ता आई.ए.एस.अफसरों 

 को मिले अपार कष्टों से भी किसी ने सबक नहीं सीखा

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     सुरेंद्र किशोर

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  बिहार के चर्चित चारा घोटाले में अन्य लोगों के अलावा आधा दर्जन आई.ए.एस.अफसर भी आरोपित किए गए थे।

सजायाफ्ता भी हुए।

उन्होंने जेल और जेल के बाहर भी अपार कष्ट झेले।

उनकी दुनिया ही बदल गई।

 इसके बावजूद प्रशासन में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ।हां,चारा घोटाले जैसे बड़े और अनोखे घोटाले अब नहीं हो रहे हैं।

‘मेरे जीवन में अंधेरा छा गया।’यही कहा था कि आयुक्त स्तर के  आई.ए.एस.अफसर रहे के. अरुमुगम ने ।

कई साल पहले की बात है।वे चारा घोटाले से संबंधित  मुकदमे की सुनवाई के सिलसिले में अपने गृह राज्य तमिल नाडु से रांची अदालत में पहुंचे थे।

   बिहार सरकार के पशुपालन विभाग के सचिव रहे अरूमुगम को चारा घोटाले में सन 2013 में तीन साल की सजा हुई।ढाई साल तक जेल में रहे और अर्थाभाव व उपेक्षा के बीच कुछ ही साल पहले चीफ सेके्रट्री बनने का सपना लिए इस दुनिया से चले  गए।

  जो अन्य आई.एस.अफसर सजा पाए ,उनके नाम हैं फूलचंद सिंह,बेक जुलियस,महेश प्रसाद,एस.एन.दुबे और सजल चक्रवर्ती। 

अब भी इस घोटाले में जेल में बंद अनेक नेता, अफसर, आपूत्र्तिकत्र्ता खुद और उनके परिजन  कष्ट ,अर्थाभाव व उपेक्षा झेल रहे हैं।

 फिर भी आश्चर्य है कि बिहार में या यूं कहिए कि पूरे देश में भ्रष्टाचार कम ही नहीं हो रहा है।

कभी सृजन घोटाला सामने आ रहा है तो कभी मुजफ्फर पुर आसरा गृह घिनौना कांड।

 न तो नल जल योजना में भ्रष्टाचार रुक रहा है और न एमपी-विधायक फंड में कमीशनखारी बंद हो रही है।

 सवाल है कि घोटालेबाजों को अपना धंधा जारी रखने की यह ताकत कहां से मिल रही है ? 

नेताओं से,अफसरों से या फिर पूरा सिस्टम ही इसके लिए जिम्मेदार  है ?

इस पृष्ठभूमि में बिहार के चर्चित चारा घोटाले की एक बार फिर चर्चा मौजू है।क्योंकि हाल में एक अन्य केस में लालू प्रसाद तथा अन्य लोगों को सजा हुई है।

  इसके बावजूद अन्य मामलों में भी बाद के वर्षों में देश के  अन्य आई.ए.एस.अफसर भी जेल जाते रहे हैं।यानी कई लोग कोई सबक लेने को तैयार ही नहीं हंै।

भ्रष्टाचार से मिल रहे आसान पैसों का आकर्षण तो देखिए !

 चारा घोटाले के सिलसिले में जितने लोग अभी जेल में हैं,उनमें से कुछ लोग बीमार हैं।उनमें से कुछ लोग चारों तरफ से उपेक्षा के भी शिकार है।

 कुछ अन्य लोगों के परिवार बिखर गए।

कुछ आरोपी असमय गुजर गए।

कुछ ने आत्म हत्या कर ली।

 घोटाले के मुख्य अभियुक्त के पुत्र की असमय मृत्यु हो गयी क्योंकि जांच एजंेसी की पूछताछ वह बर्दाश्त नहीं कर सका।

पुत्र के शोक में  मुख्य अभियुक्त का भी असमय निधन हो गया।

 कई आरोपितों व सजायाफ्ताओं के परिवार की शादियां टूट गयीं।परिवार बिखर गए।

मित्र कन्नी काटने लगे।

नाजायज ढंग से कमाए धन अदालती चक्कर में समाप्त हो गए।

 इसमें आई..एस.अफसर अरूमुगम की कहानी दर्दनाक रही।

निधन से पहले उन्होंने कहा था कि ‘‘चारा घोटाले में नाम आते ही मेरी दुनिया बदल गयी।’’

 अरूमुगम को  तीन साल की सजा हुई थी।

बाद में जमानत पर छूटे थे।

अरूगुगम ने  बताया था कि लंबे कारावास के कारण  मोतियाबिंद का समय पर आपरेशन नहीं हो सका।नतीजतन मेंरी एक आंख जाती रही।

रख रखाव के अभाव में मेरी निजी कार रखी -रखी सड़ गयी।

मेरे पास उसे रखने की कहीं जगह नहीं थी।

कबाड़ी में बेचना पड़ा।

जेल से बाहर आने के बावजूद मेरा निलंबन नहीं उठा।

यह सब कतिपय बड़े अफसरों के द्वेषवश हुआ जो मुझे मुख्य सचिव नहीं बनने देना चाहते थे।

रिटायर होने के बाद केस की सुनवाई के लिए मुझे अक्सर तमिलनाडु से रांची आना पड़ता था।

रांची में एक छोटे से कमरे में रहता था जो मेरे एक मित्र से मिला था।ढाबे में खाना खाता था।

कभी- कभी चूड़ा दूध खाकर काम चला लेता था।मुकदमों ने धन और चैन दोनों छीन लिए।

मेरे जीवन में अंधेरा छा गया।

  याद रहे कि पूर्व मुख्य मंत्री द्वय लालू प्रसाद व डा.जगन्नाथ मिश्र सहित कुछ अन्य आइ.ए.एस.अफसरों को भी सजाएं हुई हैं।

उनकी भी दुनिया बदल चुकी है।नेता लोग तो ऐसे भी राजनीतिक आंदोलनों के सिलसिले में जेल यात्राओं  के अभ्यस्त होते हैं। 

पर किसी आई.ए.एस. के तो सपने ही कुछ और होते हैं।

उनके ईर्दगिर्द एक अजीब प्रभा मंडल रहता है।खुद अरूमुगम भी मुख्य सचिव बनने के सपना देख रहे थे।पर उनकी गलतियों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा।

 चारा घोटालेबाजों के कष्टों को देखते हुए पहले यह माना जा रहा था कि अब गलत ढंग से सरकारी खजाने से पैसे निकालने से पहले कोई हजार बार सोचेगा।

पर नहीं।

कुछ ही साल पहले भागल पुर से यह खबर आई कि वहां के सरकारी खजाने से अरबों रुपए इधर से उधर कर दिए गए।

आरोप है कि प्रभावशाली नेताओं-अफसरों के संरक्षण में ही वह घोटाला हुआ जो सृजन घोटाले के नाम से जाना जाता है।सी.बी.आई.उसकी भी जांच कर रही है।बड़ी संख्या में लोग गिरफ्तार हुए है।अब भी हो रहे हैं।

  ऐसी घटनाओं से  एक महत्वपूर्ण सवाल  उठता है ।

    सवाल यह कि नये घोटालेबाज उन पिछली सजाओं से भी नहीं डर रहे हैं जो पिछले घोटालों के बड़े बड़े ओहदेदार आरोपितों को मिलती जा रही है ? 

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ?

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