अनिल अंबानी का व्यापारिक साम्राज्य डूब रहा है।
इसका मतलब यह तो नहीं कि वे अपने कारोबार को
किसी अन्य व्यक्ति को सौंप कर खुद हिमालय चले जाएं या विदेश में बस जाएं ?!!
उसी तरह यदि कोई खानदानी राजनीतिक पार्टी डूब रही है तो इसका मतलब यह तो नहीं ,वह दल, खानदान से अलग किसी अन्य व्यक्ति को सौंप दिया जाए !
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एक समय था जब राजनीति सेवा थी।
बाद में नौकरी हुई।
फिर व्यापार बनी।
अब उद्योग है।
अपवादों की बात और है।
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पुनश्चः
संकेत हैं कि खानदानी पार्टियां एक -एक कर डूबेंगी।
कुछ जल्दी और कुछ अन्य देर से।
जिन दलीय सुप्रीमो ने चंबल के डकैतांे (बेचारे वे तो कुछ हजार-लाख पर ही संतोष कर लेते थे !!)की तरह देश के अरबों रुपए लूट कर रखे हैं और जिन पर गंभीर मुकदमे चल रहे हैं,वे भी देर-सवेर सत्ताधारी दल के समक्ष सरेंडर करेंगे।
गत चुनाव में उत्तर प्रदेश में ऐसी घटना घट चुकी है।
क्योंकि जेलों में बड़ा कष्ट होता है।
जयललिता,हर्षद मेहता अन्य उसके उदाहरण हैं।
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15 मार्च 22
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