मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

सराहनीय श्रवण कुमार पुरस्कार

इससे बेहतर कोई खबर नहीं हो सकती थी जो अभी -अभी मिली है। महावीर मंदिर न्यास समिति ने श्रवण कुमार पुरस्कार के लिए समिति की घोषणा कर दी। शारीरिक रूप से अक्षम माता-पिता की निःस्वार्थ सेवा के लिए श्रवण कुमार पुरस्कार कायम किया गया है। इसके लिए अनुशंसा भेजने की आखिरी तारीख 31 मार्च, 2009 तय कर दी गई है। पटना स्थित महावीर मंदिर की न्यास समिति और किशोर कुणाल इसके लिए बधाई के पात्र हैं। कु-पुतों और कु-पतोहुओं की बढ़ती संख्या के बीच उपेक्षित माता-पिता के लिए बड़ी राहत भरी खबर है। शायद इन पुरस्कारों के जरिए उनकी उपेक्षा कुछ कम हो सके। मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एसएन झा ने पुरस्कार समिति की अध्यक्षता स्वीकारी है। इससे इस समिति की विश्वसनीयता भी बढ़ी है। साथ ही पुरस्कार की राशि भी आकर्षक है। यानी प्रथम पुरस्कार एक लाख रुपए का है। दूसरा पुरस्कार 50 हजार रुपए का। तीसरा पुरस्कार 25 हजार रुपए का है। इसके अलावा 25 लोगों के लिए सांत्वना पुरस्कार एक -एक हजार रुपए का है। शिशु कन्या भ्रूण हत्या और दहेज प्रताड़ना की तरह ही उपेक्षित माता-पिता की समस्या भी इस देश और प्रदेश में चिंताजनक होती जा रही है। सरकार की तरफ से समुचित सामाजिक सुरक्षा के अभाव में यह समस्या और भी विकराल होने वाली है। ऐसे में अपने ढंग से महावीर मंदिर न्यास ने सकारात्मक पहल की है। अभी तो इसकी शुरुआत हो रही है, पर यदि साधन-सुविधा में बढ़ोतरी हो तो बाद के वर्षों में ऐसे अनेक पुरस्कारों की व्यवस्था जिला स्तर पर भी की जानी चाहिए। पर सवाल यह भी है कि एक किशोर कुणाल कहां -कहां क्या -क्या करेंगे ! एक व्यक्ति की अपनी सीमा भी है। बुजुर्गों की उपेक्षा संयुक्त परिवार के टूटते जाने से और भी बढ़ी है। स्व-केंद्रित युवा वर्ग अभी यह महसूस ही नहीं कर रहा है कि उसके घर में भी एक दिन ‘बागवान’ फिल्म की कहानी दुहराने की नौबत आ सकती है। मैं हर सुनने वाले को कहता हूं कि तुम अपने पिता-माता को बीच- बीच में गांव से बुला कर अपने पास रखो और उनकी सेवा करो, ताकि तुम्हारे बढ़ते हुए बच्चे भी देख कर यह सीख सकें। इससे होगा यह कि तुम्हारे बच्चे जब बड़े हो जाएंगे, तो वे भी तुम्हारा ध्यान रखेंगे। जिन कुछ देशों में भारत की तरह बड़ी संख्या में अरबपति पैदा नहीं होते, वहां भी बेरोजगारी और वृद्धावस्था पेंशन की राशि इतनी अधिक होती है, जिससे उनका जीवन चल जाता है। पर हमारे यहां जहां जनता के पैसे ही लूट कर कुछ लाख लोगों को तो अत्यंत अमीर बनने की छूट सरकार ने दे रखी है, पर मुझे हर माह सिर्फ 1046 रुपए पेंशन देती है। यदि मैं पत्नी और संतान के मामले में सौभाग्यशाली नहीं होता, तो क्या होता ? यदि रिटायर होने के बाद भी मुझमें काम करते रहने की शारीरिक क्षमता नहीं होती तो क्या होता ? यदि देश के संपादकों की मेरे प्रति सदाशयता नहीं होती, तो क्या होता ? पर, अमीर लोगों से भरे पड़े इस गरीब देश में मेरे जैसे कितने सौभाग्यशाली बुजुर्ग हैं ? मैंने अपनी पेंशन राशि सिर्फ उदाहरण के रूप में यहां पेश की। इसका कोई और उद्देश्य कतई नहीं है। यदि मेरी पेंशन राशि कम है, तो इसकी खुद मुझे कोई परवाह नहीं है। पर इससे इस देश की पेंशन व्यवस्था का पता तो चल ही जाता है। मेरी 1046 रुपए की पेंशन के बारे में भी कुछ शब्द और। यह पेंशन राशि भविष्य निधि के साथ जुड़ी हुई है। सरकार ने ठीक ही कल्पना की थी कि रिटायर करने के बाद भविष्य निधि की एकमुश्त राशि से तो आम तौर पर मकान निर्माण, लड़की की शादी तथा दूसरी जिम्मेदारियां पूरी होती हैं। यदि किसी रिटायरकर्मी का पुत्र दबंग और निकम्मा हुआ, तो वह उस एकमुश्त राशि को किसी-न-किसी बहाने झपट लेता है। फिर जीवन भर नौकरी निभा कर घर लौटा बुजुर्ग कैसे खाएगा ? इसी समस्या को ध्यान में रखकर शुरू की गई यह पेंशन योजना। पर इसकी अत्यल्प राशि तो देखिए। अन्य पेंशन राशि के विपरीत इस राशि में सालाना बढ़ोतरी भी नहीं होती। खैर यह तो एक अलग विषय है। इस पर सोचने की फुर्सत हमारे हुक्मरानों को नहीं है, जो आए दिन अपने वेतन, सुविधा और पेंशन बेशर्मी से बढ़ाते रहते हैं। जबकि उनमें से अधिकतर हुक्मरानों ने इन लाखों अत्यल्प पेंशनधारी बुजुर्गों की तरह जीवन भर लोक सेवा नहीं की है। जो हो, ऐसे लाखों लोग रिटयर होने के बाद इसी तरह की अत्यल्प राशि हर माह उठाते हैं। इनमें कुछ लोगों को तो मुझसे भी कम राशि मिलती है। ऐसे लोग अपनी संतान पर बुरी तरह निर्भर हंै, पर अधिकतर संतानों के लिए वे बोझ ही हैं। जिन बुजुर्ग लोगों के जीवन में किसी तरह की कोई पेंशन राशि नहीं है और यदि वे अपनी संतान की ओर से उपेक्षित हैं, तो कैसे उनका जीवन कटता होगा, इसकी कल्पना किशोर कुणाल ने की है। इसीलिए श्रवण कुमार पुरस्कार सामने आया है। शायद इन पुरस्कारों से उनमें से कुछ के जीवन में कुछ फर्क आए !
(दो फरवरी 2009)

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