पर, भारतीय ‘धन-पशु’ चिंतामुक्त
भारत के भी अनेक अमीर लोगों की भारी धन राशि उस बैंक में जमा है। जाहिर है कि वे काली कमाई की राशि है। गत साल यह खबर आई भी थी कि भारत के अमीर लोगों ने विदेशों में 30 से 40 बिलियन डालर गैर कानूनी तरीके से जमा कर रखा है। इस देश के टैक्स चोर हर साल नौ लाख करोड़ रुपए की टैक्स चोरी करते हैं। इस पृष्ठभूमि में इसी साल के प्रारंभ में यह खबर आई कि लाइखटेंस्टाइन में अमीर भारतीयों के गुप्त खातों के बारे में जानकारी देने संबंधी जर्मन सरकार की पेशकश पर भारत सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की है। इस संबंध में लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने तब प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह को पत्र लिखा था। पी चिदम्बरम् ने 16 मई, 2008 को उस पत्र का जवाब दे दिया। चिदम्बरम् ने स्वीकार किया कि जर्मनी सरकार ने ऐसी पेशकश की थी। चिदम्बरम् के अनुसार भारत सरकार ने फरवरी में ही उससे खातों का विवरण मांगा था। पर, जर्मन सरकार के कर कार्यालय ने जवाब दिया कि वह तत्काल ऐसा करने की स्थिति में नहीं है। सवाल है कि भारत सरकार कीबर से ही सूचनाएं खरीदने की कोशिश क्यों नहीं करती ? जो तरीका ब्रिटेन और जर्मनी की सरकारों ने अपनाया, वही तरीका भारत सरकार क्यों नहीं अपना सकती ? क्या भारत सरकार ने अपने किसी दूत केे जरिए जर्मन सरकार के प्रतिनिधि से मिलकर सूचनाएं खरीदने की कोशिश की ? या फिर आलोचनाओं से बचने के लिए सिर्फ पत्र-व्यवहार करके औपचारिकता पूरी कर ली ? क्या ऐसे मामले सिर्फ पत्र-व्यवहार से सुलझते हैं ? अगले लोकसभा चुनाव में प्रतिपक्ष यह सवाल खड़ा कर सकता है कि लाइख के खातों को छिपाने में केंद्र सरकार का कैसा निहितस्वार्थ है ?कैसा है प्रतिपक्ष का दामन
पर क्या ऐसे सवालों पर बोलने का नैतिक अधिकार भाजपा को कितना है ? सन् 2002 में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी। तब यह एक बड़ा खुलासा हुआ था कि इस देश के व्यापारी व उद्योगपति सरकारी बैंकों के 11 खरब रुपए दबा कर बैठ गए हैं। उन्होंने कर्ज के रूप में लिया था। पर रिजर्व बैंक उन डिफाॅल्टरों के नाम तक सार्वजनिक करने को तैयार नहीं है। इस 11 खरब की ‘लूट’ पर मनमोहन सिंह और पी चिदम्बरम् के तब के बयानों की शब्दावली उससे भी कड़ी थी जैसा ‘उद्गार’ अपने पत्र में श्री आडवाणी ने लाइख टंेस्टाइन बैंक के गुप्त खातों के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में व्यक्त किया था। इस बीच यह खबर आई है कि सिर्फ बीस रुपए रोज पर जीवन गुजारने वाले भारतीयों की संख्या 80 करोड़ से बढ़ कर 84 करोड़ हो गई है। काला धन स्वदेश वापस आता तो वह इन गरीबों के तो काम आता, पर गरीबांे की चिंता आज कितने नेताओं को है ? और अंत में
अपनी गलतियां सार्वजनिक रूप से कबूलना सचमुच अच्छी बात है। पर, कबूली गई उन्हीं गलतियों को जानबूझ कर बार-बार दुहराना गलत बात है।प्रभात खबर (24नवंबर, 2008)
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