जामिया मिलिया की छवि दांव पर
दिल्ली में आतंकी गतिविधि में शामिल आरोपितों को जामिया मिलिया के वी।सी.मुशीरूल हसन ने जामिया मिलिया के खर्चे पर कानूनी सहायता देने का निर्णय किया है। भारत में हो रही आतंकवादी घटनाओं के बारे में मुशीरूल साहब क्या सोचते हैं,यह बात खुद उन्होंने गत 22 सितंबर 2008 को सार्वजनिक रूप से बताई है। उन्होंने एन.डी.टी.वी. के कार्यक्रम में कहा कि ऐसी आतंकवादी घटनाएं इसलिए हो रही हैं क्योंकि भारत का मुस्लिम समुदाय यहां खुद को अलग थलग महसूस कर रहा है।उन्होंने सच्चर कमेटी की रपट का जिक्र करते हुए कहा कि मसलमानों की आर्थिक दशा काफी खराब है। मुशीरूल हसन के इस तर्क से यह बात स्पष्ट होती है कि आतंकवादी गतिविधियों में शामिल आरोपित ‘अलग-थलग पड़े’ मुस्लिम समुदाय की ओर से हिंसक लड़ाई लड़ रहे हैं।जबकि इस देश में आतंकी कार्रवाइयों में लिप्त सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के जेहादी बार बार लिख लिख कर और बयान दे देकर यह खुलेआम कह रहे हैं कि वे भारत में इस्लामी शासन कायम करने के लिए लड़ रहे हैं। वे खलीफा का राज चाहते हैं। अब इन बातों का यहां अधिक व्याख्या करना जरूरी नहीं है। पाठक खुद समझ लें कि अंततः कौन क्या चाहता है। हा, एक सवाल मुशीरूल हसन से पूछा जा सकता है।वह यह कि वे जिन आतंकवादियों को कानूनी सहायता दे रहे हैं, वे यदि अदालत से दोषी करार दे दिए गए तो फिर जामिया मिलिया की पूरी दुनिया में कैसी छवि बनेगी ? क्या उसकी वह छवि बनी रह पाएगी जैसी छवि की कल्पना उसके कभी के उसके एक कुलपति जाकिर हुसेन ने की थी ?नक्सली और इंडियन मुजाहिदीन
दिल्ली के जामिया नगर में हुई आतंकी-पुलिस मुंठभेड़ के बाद कुछ लोगों के द्वारा नक्सलियों से इन आतंकियों की तुलना की जाने लगी है।कहा जा रहा है कि नक्सली भी तो समाज की मुख्य धारा से अलग- थलग पड़े मुख्यतः दलितों और आदिवासियों को गोलबंद करके उनके लिए हथियारबंद लड़ाई लड़ रहे हैं ! पर यह तुलना गलत है। इंडियन मुजाहिदीनों और नक्सलियों के चरित्र में मूल अंतर हैं।नक्सलियों ने न सिर्फ दलित-आदिवासी के लिए, बल्कि समाज के करीब अस्सी प्रतिशत गरीब लोगों के लिए लड़ाई शुरू की है।वे इस देश पर सर्वहारा का शासन चाहते हैं। इस देश में अस्सी प्रतिशत सर्वहारा हैं जिनकी रोज की औसत आय मात्र बीस रुपए है। यानी वे बहुमत का शासन चाहते हैं।पर इंडियन मुजाहिदीन कुरान के उपदेशों के आधार पर अल्पसंख्यक का बहुमत पर शासन कायम करना चाहते हैं जैसा कि मध्य युग में यहां था।यह बात उनके साहित्य और बयानों में है जिसे मुशीरूल हसन जैसे बुद्धिजीवी जानबूझकर या अनजाने में नजरअंदाज कर रहे हैं।हालांकि यहां नक्सलियों के तरीके का समर्थन नहीं किया जा रहा है।एक बात और याद रखने की है।जब नक्सलियों की धरपकड़ के सिलसिले में उनके छिपे हुए स्थानों में पुलिस या अर्ध सैनिक बल धावा बोलते हैं और मुंठभेड़ें होती हैं और कुछ निर्दोष लोगों को भी क्षति पहुंचती है,तो उन स्थानों और उसके आसपास के लोगों की वैसी ही प्रतिक्रिया नहीं होती जैसी प्रतिक्रिया इन दिनों जामिया नगर और आसपास के कुछ लोगों की हो रही है।दिन में कहीं, रात में कहीं और
राजनीति में भीतरघाती पहले भी हुआ करते थे,पर अब उनकी संख्या काफी बढ़ गई है। राजनीति में पैसे का बोलबाला बढ़ने और किसी तरह के आदर्श के लोप होतेे जाने के कारण ऐसा हुआ है। बिहार में किस दल का कौन नेता दिन में कहां है और रात में कहां रहता है, इसका पता ही नहीं चल रहा है। अपने दलीय सुप्रीमो से विश्वासघात करने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। कुछ सुप्रामों भी परेशान हैं।पर उन्होंने भी जब मौका आया था तो अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए अपने कैरियर निर्माताओं के साथ इसी तरह विश्वासघात किया था। छोटे नेता अपने बड़े नेताओं को अब उसी लहजे में जवाब दे रहे हैं।कहते हैं कि एक गति से चलना गधे का गुण होता हे। होशियार व्यक्ति तो जिस सीढ़ी के जरिए छत पर चढ़ता उस सीढ़ी को ढोए नहीं फिरता। यह बात और है कि जब वह छत से गिरता है तो उसे चोट बहुत लगती है। यह हर पेशे में है।पर राजनीति जबसे सेवा के बदले पेशा हो गई है, तब से इसमें यह अधिक है। हालांकि आज भी राजनीति में कई अच्छे लोग भी हैं। अगले लोक सभा चुनाव में बिहार का कौन सा नेता कहां से लड़ेगा, यह ठीक नहीं है। इस आशंका में टिकटार्थियों द्वारा लाॅयल्टी बदलने की प्रक्रिया तेज है। कोसी प्रलय को लेकर नेताओं और दलों के बीच आरोप प्रत्यारोप का जो दौर चल रहा है उसमें तो कई नेता अपने ही सुप्रीमो के खिलाफ उनके राजनीतिक विरोधियों को दबे छिपे सूचना, ‘मसाला’ व तर्कों से लैस कर रहे हैं।तापमान (अक्टूबर, 2008)
1 टिप्पणी:
wow great website, informative content. Visit our website.
Odia Story Book Bhagbanra Desha
Order Odia Books
Odia Books Online
एक टिप्पणी भेजें