आज सुबह सोकर उठा, तो देखा कि मेरा फोन कई दिनों के बाद एक बार फिर ‘डेड’ हो गया। आशंका थी कि संभवतः गत रात में भी किसी उदंड ट्रक ड्रायवर ने फोन के तार की परवाह किए बिना गाड़ी दौरा दी होगी। घर से बाहर निकला, तो दूर से ही यह लग गया कि तार फिर टूटा हुआ है। पर पोल के निकट जाने पर लग गया कि यह तो किसी तार कटवा की कारस्तानी है। कटे हुए फोन तार का बचा हुआ, हिस्सा साफ इसकी गवाही दे रहा था। इतना ही नहीं, तार का जो हिस्सा घर से भीतर बच गया है, उसके आस-पास के सामान की हालत दयनीय हो गई। बाहर तो तार काटा गया, पर भीतर से झटके से उसे खींच लिया गया, जिससे ट्यूब लाइट क्षतिग्रस्त हो गई। यानी आशियाना नगर फेज वन सरीखे शांत और शालीन मुहल्ले में भी चोर निर्भीक हो गए हैं। बड़े अपराधी जरूर इन दिनों अपेक्षाकृत शंात हैं । पर, छोटों पर लगाम कस जाना अभी बाकी है। पटना का यह एक ऐसा मुहल्ला है, जहां महिलाएं रात में भी भोजन के बाद सड़क पर टहल सकती हैं। यहां किसी भी मकान के साथ एक दूकान खोल देने की छूट नहीं है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस मुहल्ले के सभी गेट एक साथ नहीं खुले रहते हंै। सफाई -व्यवस्था ठीक -ठाक है। जलापूर्ति को लेकर भी कोई शिकायत नहीं है, पर किसी अन्य शहरी इलाके की तरह यहां भी यह जरूरी नहीं है कि एक पड़ोसी अपने बगल के किसी मकान में रहनेवाले के बारे में जाने। किराए के मेरे आवास के पड़ोस के मकान मालिक साल में एक -दो बार ही कुछ दिनों के लिए ही यहां आते हैं। बाकी महीने वह घर खाली यानी बंद रहता है। उस मकान में यदा -कदा चोर ऐसे ही चोरी की कोशिश करते पाए जाते हैं, जिस तरह किसी बंद पड़े मकान में चूहे या तेलचट्टे उछल कूद करते रहते हंै। उस मकान मालिक ने किसी स्थानीय व्यक्ति को अपना फोन नंबर तक नहीं दिया है, ताकि किसी दुर्घटना की स्थिति में उन्हें सूचना दी जा सके। मेरे घर के भीतर आया फोन का तार उसी बंद पड़े मकान के अहाते से होकर गुजरता है। शायद चोर को लगा होगा कि वह उसी खाली मकान में लगे फोन का तार काट रहा है। उसे किसी तरह के प्रतिरोध का भय नहीं रहा होगा। हालांकि मेरा यह अनुमान गलत भी हो सकता है। तार कटने का कोई और कारण भी हो सकता है। हालांकि इस घटना ने मुझे चैंकन्ना कर दिया है। अब हमें कुछ अधिक ही सावधान रहना पड़ेगा। क्यांेकि बीट पुलिसिंग की कोई झलक मेरे घर तक अभी नहीं पहुंची है। अपनी रक्षा खुद ही करनी है। इसके साथ ही फोन महकमे के बारे में भी दो शब्द। इस बार तो मेरे फोन का तार ट्रक से नहीं टूटा है, पर इससे पहले कई बार ट्रकों या बड़े वाहनों का कोप मैं झेल चुका हूं। वाहन के टकराने से फोन का तार टूटने का एक मात्र कारण है कि मेरे घर के सामने फोन का पोल जरूरत के अनुसार पर्याप्त ऊंचा नहीं है। मैं तो इस मुहल्ले के लिए नया हूं, पर देखने से लगता है कि फोन के पोल जब लगे होंगे, तो सड़क की ऊंचाई कम रही होगी। अब ऊंचाई बढ़ गई है और पोल छोटा पड़ चुका है। इसलिए छोटे वाहनों से तो तारों को कोई कष्ट नहीं होता, पर कभी -कभी बड़े वाहन आते हैं तो फोन को डेड कर जाते हंै। एक पत्रकार के लिए फोन कितना जरूरी है, यह बात कोई पत्रकार ही समझ सकता है। फोन महकमे वालों के लिए इस महत्व का कोई मतलब नहीं है। एक समय था कि जबकि पत्रकारों सहित कुछ महत्वपूर्ण नागरिक सेवाओं से जुड़े लोगों के फोनों की समय -समय पर टेस्टिंग होती रहती थी, ताकि यह देख लिया जाए कि फोन किसी कारणवश बंद तो नहीं है। ऐसे फोनों की एक सूची फोन महकमा अपने पास रखता था। इस टेस्टिंग के लिए किसी तरह की शिकायत करने की जरूरत नहीं पड़ती थी।पर जिस तरह अन्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार, गिरावट और काहिली ने घर कर लिया है, उससे फोन महकमा अछूता कैसे रह सकता है ? अब शिकायत कीजिए और कई दिनों तक इंतजार कीजिए। इसके अलावा कोई चारा ही नहीं है। बड़े अफसरों को कहने का भी अब आम तौर पर कोई फायदा नहीं होता। अब तो मैंने कुछ कहना भी छोड़ दिया है। एक कटु अनुभव के बाद मुझे फोन महकमे से काफी निराशा हुई। जब मैं मजिस्ट्रेट कालोनी में रहता था, तो मेरे पास दो फोन थे। एक का नंबर 2586562 है, जो अब भी मेरे पास है। और दूसरे का नंबर था- 2586732 । दूसरा नंबर सन् 1996 में मैंेने अपने एक रिश्तेदार को दे दिया। उसके नाम फोन ट्रांसफर भी हो गया। उस व्यक्ति ने अलग से जमानत राशि भी जमा कराई जैसा कि नियम है। अब मेरे द्वारा जमा कराई गई जमानत राशि वापस होनी चाहिए थी। पर, करीब तेरह साल होने को है। अब भी मैं उस जमानत राशि का इंतजार कर रहा हूं। प्रारंभ के कुछ वर्षों तक तो मैंेने काफी दौड़- धूप की, पर बाद में हार कर छोड़ दिया। हालांकि इससे पहले संबंधित दफ्तर में फोटोग्राफर नरेंद्र देव के साथ जाकर वहां सुनील कुमार सिन्हा नामक एक अफसर को संबंधित सारे कागजात मैंने सौंप दिए थे और यह भी लिख कर दे दिया था कि फोन सेट की कीमत मेरी जमानत राशि में से काट ली जाए। याद रहे कि जिस रिश्तेदार को मैंने फोन ट्रांसफर किया था, उसे फोन महकमे ने कोई फोन सेट नहीं ही दिया। ऐसे कटु अनुभव के बावजूद मैं यह उम्मीद करता हूं कि फोन महकमे से अब और अधिक लोगों की नाराजगी नहीं बढ़े। क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र का भी जीवित रहना जरूरी है।
(तीन फरवरी, 2009)
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