सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

नेता नहीं तो बाबा सही

कभी जेपी तो कभी वीपी और अब बाबा राम देव ! भ्रष्टाचार के खिलाफ इनके धारावाहिक अभियानों को यह देश देख रहा है। जेपी और वीपी के अभियान व संघर्ष तो बाद में कुछ भ्रष्ट व निकम्मे नेताओं के चलते एक तरह से निष्फल कर दिए गए। पर, अब बाबा राम देव के अभियान का क्या होगा ? इस प्रस्तावित अभियान के अच्छे नतीजों का देश को इंतजार रहेगा। जय प्रकाश नारायण ने सत्तर के दशक में भ्रष्टाचार तथा कुछ अन्य समस्याओं के खिलाफ अभियान शुरू किया था। अस्सी के दशक में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफर्स तथा अन्य कई घोटालों को लेकर देश में ऐसा समां बांधा था कि सन् 1989 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। सन् 1990 में देश की कई विधान सभाओं के चुनावों में भी कांग्रेस सरकारें बुरी तरह हार गईं। पर तब जिस तरह की जनता दल सरकारें बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में बनीं, उसने अपने काम काज से कांग्रेसियों को भी लजा दिया। भ्रष्टाचार बेतहासा बढ़ा। 1974 के जेपी आंदोलन के बाद केंद्र और राज्यों में जो सरकारें बनीं थीं,वे भी जेपी की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकीं, किंतु 1990 के बाद राज्यों में बनी सरकारों से फिर भी वे बेहतर थीं।जेपी आंदोलन से उपजी केंद्र की सरकार के मुखिया मोरारजी देसाई थे।बिहार में सन् 1977 में मुख्य मंत्री बने थे कर्पूरी ठाकुर और उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव।तीनों नेता व्यक्तिगत रूप से ईमानदार थे। इसीलिए शासन-प्रशासन में वैसी गिरावट नहीं आई जैसी बाद के वर्षों में आई। अब तो भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि नेताओं के बीच से भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आवाज उठाने वाला कोई नेता भी उपलब्ध नहीं है। भ्रष्टाचार से जर्जर राजनीति में अब वह नैतिक ताकत ही नहीं बची है।राज्य स्तर पर बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने जरूर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान शुरू किया है,पर उस अभियान का भी बाहर-भीतर से इतना परोक्ष और प्रत्यक्ष विरोध हो रहा है कि मुख्य मंत्री अपने ही संघर्ष में हांफते नजर आ रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में स्वामी राम देव ने देश की राजनीति और शासन में कैंसर की तरह फैल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के लिए कमर कस ली है।जेपी और वी।पी.की ताकत भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने से बढ़ी थी।जेपी हालांकि आजादी की लड़ाई के अप्रतिम योद्धा थे,पर सर्वोदय मेंे चले जाने के बाद उनकी सभाओं में कुछ सौ या हजार लोग ही आम तौर पर जुट पाते थे।पर जब उन्होंने 1974 में बिहार आंदोलन का नेतृत्व संभाला तो उन्हें सुनने के लिए लाखों लोग जुटने लगे थे। वीपी सिंह ने राजीव सरकार से संघर्ष का खतरा उठाया और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ दिया।लोगों ने उन पर विश्वास किया। क्योंकि वे भी व्यक्तिगत रूप से ईमानदार थे।पर अपने निधन के कुछ साल पहले वीपी सिंह ने यह कह कर देश को चैंका दिया कि उन्होंने बोफर्स को लेकर राजीव गांधी पर कोई आरोप ही नहीं लगाया था। उनका यह कहना सच नहीं था। सही बात यह है कि वी.पी.सिंह ने अपना पूरा बोफर्स अभियान राजीव गांधी के खिलाफ ही चलाया था। वीपी के पलटने से भी राज नेताओं की विश्वसनीय घटी। वैसे भी राजनीति में ं कितने लोग अब भी माजूद हैं जिनकी कुछ ताकत बची है और फिर भी वे भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाना चाहते हैं ? ऐसा नहीं हैं। संभवतः इसीलिए स्वामी राम देव को सामने आना पड़ रहा है। शारीरिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्वामी राम देव ने देश को जितना दिया है, उतना कम ही लोगों ने दिया है। जनता के एक बड़े हिस्से में उनकी काफी साख है। इसलिए उनको यह पूरा अधिकार है कि जनता की अन्य ज्वलंत समस्याओं पर अपनी राय रखें और उसके निराकरण के लिए अभियान चलाएं।गंगा की सफाई को लेकर उन्होंने जो अभियान चलाया,उसी का नतीजा है कि केंद्र सरकार ने गंगा बेसिन प्राधिकार बनाया। अब भ्रष्टाचार के खिलाफ जब भी वे अभियान शुरू करेंगे ,लोग उसे गंभीरता से लेंगे। शायद उसके कुछ अच्छे नतीजे भी सामने आएं।पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाना जितना जरूरी है, उसी अनुपात में उस अभियान में सफल होना उतना ही कठिन है। क्योंकि देश के हर क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों में से अधिकतर लोग इस देश को अपनी पूरी ताकत से लूटने में लगे हुए हैं। जेपी और वीपी के विपरीत रामदेव ने अपने अन्य उपायों से संचित जन समर्थन की ताकत के बल पर अभियान शुरू करने का निर्णय किया है। वे यह भी कहते हैं कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी नहीं है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्रिय बाबा राम देव की यह समझ सही है कि देश की 99 प्रतिशत जनता ईमानदार है और 99 प्रतिशत नेता बेईमान हैं। याद रहे कि अनेक नेता यह तर्क देते हैं कि जब जनता ही चोर है तो नेताओं को भी वैसा बनने की मजबूरी है। बाबा ऐसा नहीं मानते। राम देव यह भी नहीं मानते कि देश की सिर्फ 5 प्रतिशत जनता ही टैक्स देती है। ऐसा प्रचार वहीं लोग करते हैं जो इस बात की अघोषित छूट चाहते हैं कि कुछ ही लोगांे ंको इस देश के संसाधनों के इस्तेमाल का हक हे। बल्कि सही बात यह है कि जो गरीब व्यक्ति नमक भी खरीदता है,वह भी टैक्स देता है और सरकार के संसाधनों पर उसका भी हक है। कुछ नेता यह कहते हैं कि भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता।रामदेव ऐसा नहीं मानते। इसी तरह की कुछ और बातें राम देव कहते हैं। यानी,देश की बीमारी की सही पहचान रामदेव ने कर ली है। जिस ईमानदार व योग्य डाक्टर ने मर्ज की सही पहचान कर ली,उसने बीमारी दूर भी कर दी। देखना है कि राम देव क्या कर पाते हैं। दुःखद बात यह है कि इस देश में जेपी कौन कहे, वीपी जैसे नेता भी अब उपलब्ध नहीं है। यह इस देश की राजनीति पर टिप्पणी है। इसीलिए राम देव को आगे आना पड़ रहा है। जबकि आज जेपी और वीपी के समय की अपेक्षा देश को अधिक गंभीर समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। (एक फरवरी, 2009)
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