पप्पू बनाम रंजीता
हाल में लोक सभा के बाहर देश की संसदीय राजनीति पर गंभीर चर्चा हुई। लोक सभा स्पीकर सोम नाथ चटर्जी भी उपस्थित थे। इस चर्चा के दौरान सहरसा की सांसद रंजीता रंजन ने ंमार्के की एक बात कही। उन्होंने कहा कि मैं सदन की बैठक को बाधित करने में विश्वास नहीं करती। पर हमारे दलीय नेता ऐसा करने के लिए बाध्य कर देते हैं। फिर मैं क्या करूं ? आप ही बताएं। इस पर एक अन्य नामी वक्ता ने आशंका व्यक्त की कि यहां ऐसा कह देने के लिए शायद अगली बार आपको पार्टी से टिकट ही नहीं मिले ! पप्पू यादव से कितनी अलग हैं उनकी पत्नी !बेशुमार चुनावी खर्च
आंध्र प्रदेश के एक चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता व राजनीतिक विश्लेषक जय प्रकाश ने कहा है कि अगले आंध्र विधान सभा चुनाव में प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में करीब पंद्रह करोड़ रुपए खर्च होने वाले हैं। इसमें से 80 से 90 प्रतिशत राशि वोटरों को खरीदने की कोशिश में ही खर्च होगी। इससे पहले छत्तीस गढ़ से भी यह खबर आई है कि कई उम्मीदवार वहां वोटरों को खरीदने पर भारी धनराशि खर्च कर रहे हैं। वहां चुनाव प्रचार जारी है। इन खबरों के बीच अब इस देश में इस मांग का महत्व बिलकुल समाप्त ही हो गया है कि सरकार, उम्मीदवारों के चुनावों का खर्च दे ताकि चुनावों में काले धन का असर समाप्त हो सके। कोई भी सरकार चुनाव लड़ने के लिए सरकारी खजाने से अधिकत्तम कितनी धनराशि देगी ? औसतन एक चुनाव क्षेत्र के लिए पंद्रह करोड़ तो कतई नहीं देगी।अल्वा के साथ अन्याय क्यों ?
इस देश में एक राजनीतिक दल है जो डकैतों को भी चुनावी टिकट दे देता है, यदि डकैत टिकट चाहे। एक अन्य दल है जो छोटे हत्यारे को विधान सभा व बड़े हत्यारे को भी लोक सभा का टिकट दे देता है। एक तीसरा दल छोटे माफिया को लोक सभा और अंतरराष्ट्रीय माफिया को राज्य सभा का टिकट देता है। अब कोई कहे कि पहले दल ने एक डकैत को टिकट दिया और दूसरे को इसी आधार पर नहीं दिया कि वह डाकू है तो क्या कहा जाएगा ! और, दूसरे दल ने किसी हत्यारे को दुतकार दिया और तीसरे ने यदि यह कह कर माफिया को टिकट नहीं दिया कि वह तो माफिया है तो यह अस्वाभाविक ही तो माना जाएगा ! इसी लाइन पर कांग्रेसी नेता मार्गरेट अल्वा की पीड़ा जायज है जिनके पुत्र को चुनावी टिकट देने से पार्टी ने इनकार कर दिया है। जिस कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व परिवारवाद के आधार पर ही निर्मित है, वह पार्टी मार्गरेट अल्वा के साथ अन्याय कैसे कर सकती है ! जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ! फिर एक अल्वा के बाद दूसरा अल्वा क्यों नहीं ? और अंत में
एमपी विधायक फंड में ‘कमीशनखोरी’ के आरोपों की तेज होती चर्चाओं के बीच अब जन प्रतिनिधियों पर जाली टीए-डीए उठाने के आरोप लगने लगभग बंद हो गए हैं।प्रभात खबर (10 नवंबर, 2008)
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