यूपी के चुनावी आंकड़े
कल्याण सिंह के मुलायम सिंह से मिल जाने के बाद उत्तर प्रदेश के पिछले चुनावी आंकडों पर एक नजर डाल लेना दिलचस्प होगा।समाजवादी पार्टी को पिछले तीन चुनावों में यूपी में हर बार करीब -करीब छब्बीस प्रतिशत मत मिले। 2002 में 26।27 प्रतिशत, 2004 में 26.74 प्रतिशत और 2007 में 26.07 प्रतिशत। यानी ‘गुंडा राज’ के बसपा के आरोप के बावजूद सपा के अपने वोट नहीं घटे। ये तीन चुनाव हैं - सन् 2002 का विधानसभा चुनाव, 2004 का लोक सभा चुनाव और 2007 का विधान सभा चुनाव। हां, सपा की सत्ता इसलिए छिन गई क्योंकि बहुजन समाज पार्टी का वोट 25 प्रतिशत (2004) से बढ़कर 30 प्रतिशत (2007) हो गया। ये अतिरिक्त मत ब्राह्मण मतदाताओं के थे जिन्हें सतीश मिश्र ने बसपा से जोड़ा।ये मतदाता भाजपा से इसलिए नाराज थे कि उसने ब्राह्मणों को राज्य का भी नेतृत्व नहीं सौंपा। दूसरी ओर, राजा भैया जैसे ठाकुर नेताओं ने सपा की सत्ता का लाभ उठा कर अपना वर्चस्व बढ़ाया।अब तो बसपा राज पर ही ‘गुंडा राज’ का आरोप लग रहा है। अब ‘बाबरी मस्जिद प्रसिद्धी’ वाले कल्याण सिंह के मुलायम सिंह से जुड़ने के बाद क्या होगा ? बसपा के खिलाफ सत्ता- विरोध के तत्व का कितना असर अगले लोक सभा चुनाव पर पड़ेगा ? यूपी भाजपा में ब्राह्मणों का वर्चस्व बढ़ने के बाद क्या ब्राह्मणों के एक हिस्से की फिर घर-वापसी होगी ? अगले कुछ हफ्तों में इन सवालों के जवाब मिलेंगे। फिर उसी के आधार पर चुनाव नतीजे तय होंगे। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि बसपा और सपा के बीच मतों का अधिक अंतर नहीं जान पड़ता है।फर्क सिवान और सारण का !
सिवान और सारण जिले के कालेज एक ही विश्वविद्यालय के तहत हैं। पर सिवान जिले की परीक्षाओं में कदाचार नहीं के बराबर है। इसलिए वहां के काॅलेजों में नामांकन कम हो रहे हैं। दूसरी ओर सारण और गोपाल गंज जिलों में कदाचार पर कारगर रोक नहीं है। इसलिए वहां के काॅलेजों में छात्र-छात्राओं की भरमार है। एक ही विश्व विद्यालय में ऐसा दोहरा मापदंड क्यों ? या तो छूट सब जगह रहे या कहीं न रहे।और अंत में
मुलायम सिंह यादव - कल्याण सिंह - मिलन की खबर पाकर यही लगा कि इस देश की राजनीति में सत्ता ही सत्य है और बाकी सारी बातें झूठ हैं।प्रभात खबर (26 जनवरी, 2009)
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