जनता दल यू के अध्यक्ष शरद यादव ने बाबाओं, अभिनेताओं और व्यापारियों के राजनीति व संसद में बढ़ते दखल का सार्वजनिक रूप से विरोध किया है। इसके लिए उन्होंने अपने सहयोगी दल भाजपा को दोषी ठहरा दिया है। ऐसा करके उन्होंने एक नई बहस छेड़ दी है। बहस अपनी जगह पर सही है। पर इस बहस को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाया भी जाना चाहिए। शरद यादव के अनुसार नाचने-गाने वाले लोगों का भूख, गरीबी, सड़क, बिजली ,पेय जल जैसी समस्याओं के निदान से कोई मतलब नहीं है।दरअसल शरद यादव की बात में आधी सच्चाई है। क्योंकि वे भी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि पूर्णकालिक राजनीति करने वालों में से अधिकतर लोगों को भी आम जन की भूख और गरीबी से कुछ लेना देना अब नहीं रह गया है। अन्यथा, आज इस देश में 20 रुपए रोज की औसत आय वाले गरीबों की संख्या 84 करोड़ तक नहीं पहुंच गई होती। दूसरी ओर फिल्मी क्षेत्र में भी सुनील दत्त जैसे व्यक्ति थे जो देश के बारे में सोचते थे। पर सामाजिक न्याय, समाजवाद, गांधीवाद, धर्मनिरपेक्षता तथा प्रखर राष्ट्रवाद के नाम पर चुनाव जीतने वाले लोक सभा सदस्यों की संख्या बढ़कर इन दिनों करीब सवा सौ तक पहुंच चुकी है जिनके खिलाफ घोटाले, हत्या, भ्रष्टाचार, अपहरण, बलात्कार, देशद्रोह तथा इस तरह के अनेक आरोपों के तहत मुकदमे चल रहे हैं। इनमें से कई सांसदों को तो निचली अदालतें सजा भी दे चुकी हैं। इन सवा सौ सांसदों में कितने बाबा, फिल्मी हस्ती या फिर उद्योगपति हैं ? इन सांसदों को गरीबों की भूख की कितनी चिंता रही है ? दरअसल जब पूरे कुएं में ही भांग पड़ गई है, तो क्या राजनीति और क्या फिल्मी क्षेत्र। बाबाओं और व्यापारियों को भी इस घनघोर कलियुग ने ग्रस ही लिया है। हर क्षेत्र में अच्छे और बुरे लोगों का अनुपात लगभग एक ही है। बल्कि देश के कुछ खास बड़े नेताओं की मदद से राजनीति में अपेक्षाकृत कुछ अधिक ही बुरे लोग प्रवेश कर गए हैं। अब यह नेताओं पर निर्भर करता है कि वे किन -किन क्षेत्रों से अच्छे लोगों का चयन करके राजनीति में आगे बढ़ाते हैं, ताकि वे गरीबों की भूख के बारे में भी सोचें।
गलती न दुहराने का वादा
एलके आडवाणी को ‘प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग’ का दर्जा दे दिया गया है। पता नहीं वे वेटिंग रूम से निकल कर सत्ता की राजधानी एक्सप्रेस गाड़ी पर सवार हो पाएंगे या नहीं। पर इससे पहले एक काम तो उन्हें कर ही देना चाहिए। बल्कि यह काम एनडीए के अन्य नेतागण भी करें तो वे फायदे में रहेंगे। वे मतदाताओं से एक वायदा करें। उन्हें चाहिए कि अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में पूरी सरकार और उनके कई मंत्रियों ने जो- जो गलतियां की थीं, उन्हें वे फिर से सत्ता मिलने पर कतई नहीं दुहराएंगे। वे गलतियां क्या थीं ? एक गलती यह थी कि हवाला घोटाले के अनुसंधान का काम सीबीआई को तब ठीक से नहींं करने दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर सीबीआई को फटकारा भी था। वाजपेयी मंत्रिमंडल के चार सदस्य हवाला कांड के आरोपी थे। यदि एनडीए की फिर से केंद्र में सरकार बनती है और दुबारा ऐसा कोई घोटाला होता है, तो उन आरोपित मत्रियों के खिलाफ इस बार सीबीआई ईमानदारी से अनुसंधान करेगी, ऐसा वादा आडवाणी जी जनता से करें।तब तत्कालीन मुख्य सतर्कता आयुक्त एन ट्ठिल ने वाजपेयी मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों की संपत्ति की जांच के लिए जांच एजेंसी को लिखा था। इससे बौखला कर केंद्र सरकार ने सतर्कता आयोग के सदस्यों की संख्या एक से बढ़ा कर तीन कर दी थी, ताकि बिट्ठल के इकलौते चंगुल से उन मंत्रियों को साफ बचा लिया जाए। वे बच भी गए। इस तरह की कुछ और गलतियां वाजपेयी सरकार ने की थी। गलतियां करना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। पर उन्हें जान बूझ कर दुहराना महापाप है। यह पाप उस पाप से बड़ा है जो संसद में बाबाओं, फिल्मी अभिनेताओं और उद्योगपतियों को प्रवेश दिला कर किया जा रहा है। हालांकि वाजपेयी सरकार ने कई अच्छे काम भी किए थे। वे अच्छे काम बाबाओं और फिल्मी हस्तियों ने ही सरकार से करवाए, यह खबर नहीं मिली। साथ ही यह भी खबर नहीं मिली कि जो बुरे काम अटल सरकार ने किए, वे बाबाओं, फिल्मी हस्तियों के दबाव में ही किए गए।
और अंत में
जो नेता सत्ता की गद्दी छोड़ने के लिए हर दम तैयार रहता है, बार-बार गद्दी लौटकर उसके पास वापस आ जाती है।
प्रभात खबर (दो फरवरी, 2009)
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