रविवार, 9 सितंबर 2018

1961 बैच के दिवंगत आई.ए.एस.,टी.एस.आर.सुब्रमनियन
देश के चंद ईमानदार व कत्र्तव्य निष्ठ अफसरों में एक थे।
कैबिनेट सचिव भी रहे।
   उनकी कुछ पंक्तियां गौर करने लायक हैं जो दैनिक भास्कर के 23 दिसंबर, 2014 के अंक में छपी हैं।
‘जब आप यूरोप में यात्रा करें तो आम तौर पर आपको ट्रेन या बस में आपके टिकट की जांच करने वाला टिकट इंस्पेक्टर दिखाई नहीं देता।
आप ऐसी कई यात्राएं कर सकते  हैं,जिसमें आपके टिकट की जांच ही न हो।
 किंतु काफी समय बाद अचानक न जाने कहां से तीन चार इंस्पेक्टर प्रकट होंगे।
सारे दरवाजों पर खड़े हो जाएंगे और तेजी से टिकटों की जांच कर लेंगे।
जिसके पास टिकट नहीं होगा,उसे तत्काल वास्तविक कीमत का  150 गुना दाम चुकाना होता है।
कोई बहाना नहीं चलता।जुर्माना नहीं भरा तो आपको हिरासत मंे ले लिया जाएगा।
यह सिद्धांत अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन ने 1980 के दशक में निकाला था।सिद्धांत यह है कि मैं आप पर भरोसा करूंगा ।पर कभी -कभार परख भी लूंगा।विकसित देशांे में ज्यादातर क्षेत्रों में शासन का यही सिद्धांत लागू किया जाता है और यह कारगर भी है।’
सुब्रमनियन ने कुछ अन्य अच्छी बातें भी लिखी हैं।
पर सवाल है कि यहां इसे कौन लागू करेगा ?हालांकि चाहे तो लागू करना असंभव भी नहीं है।
   भारत जैसे देश में इसे लागू करने के लिए सरकार के पास मजबूत इच्छा शक्ति होनी चाहिए। सिर्फ दोहरे मापदंड से बचने का संयम हो तो कोई भारतीय शासक इसे यहां भी लागू करवा ही सकता है।
 पर यहां फिलहाल तो किसी  आसरा गृह के घोटाले बाज सरगना  की गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही बड़े -बड़े नेताओं की पैरवी के फोन आने लगते हैं।किसी बड़ी हस्ती के माॅल के खिलाफ जारी  अतिक्रमण हटाओ अभियान एक फोन पर बीच में ही रुक जाता है। 
  

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