रविवार, 9 सितंबर 2018

 कई बार यह लगता है कि वही सरकार इस राज्य की शिक्षा -व्यवस्था को सुधार सकती है जो पहले से ही यह मान ले कि उसे अगला चुनाव नहीं जीतना है।
क्या कभी ऐसा हो सकेगा ? पता नहीं !
 खुद सरकार दशकों से समय -समय पर लोगांे को यह बताती रहती है कि बिहार में शिक्षा माफिया सक्रिय हैं।
बताती जरूर है,पर माफियाओं पर निर्णायक चोट नहीं कर पाती।
यह कैसी विवशता है ?
1996 में पटना हाई कोर्ट के सख्त आदेश से बिहार बोर्ड की परीक्षा में चोरी बिलकुल बंद हो गयी थी।
12 दशमलव 61 प्रतिशत विद्यार्थी ही मैट्रिक पास कर सके थे।
 तत्कालीन शिक्षा मंत्री जय प्रकाश नारायण यादव ने कहा कि 
इस रिजल्ट से साफ है कि शिक्षा माफिया के पैर उखड़ गए।
 पैर न तो उखड़ने थे, न उखड़े।
  2007 मेंं तत्कालीन राज्यपाल आर.एस.गवई ने कहा कि शिक्षा माफिया से कड़ाई से निपटा जाएगा।
पर , नहीं निपट सके।
 हाल में बिहार परीक्षा बोर्ड के अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह और शिक्षा माफिया के नाम से चर्चित बच्चा राय माफियागिरी के आरोप में 2016 में  जेल गए।अब भी वे जेल में ही हैं।
फिर भी कितना फर्क पड़ा ?
गत 3 मई को तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 
कहा कि बिहार में  शायद ही कोई नेता होगा जिनका बीएड कालेज नहीं है।
मैंने कार्रवाई की तो सब मेरे खिलाफ हो गए।
पर मैं किसी से डरने वाला नहीं हूं।
अब नए राज्यपाल महोदय से सकारात्मक मिजाज वाले लोग उसी तरह की उम्मीद कर रहे हैं जो सपना मलिक जी ने दिखाया था।पर कई अन्य लोग कह रहे हैं कि यहां कुछ नहीं हो सकता।
क्यों नहीं हो सकता ? एक राजनीतिक प्रेक्षक ने बताया कि सत्ताधारी नेताओं को लगता है कि शिक्षा को सचमुच पटरी पर लाने की कोशिश की गयी तो एक बड़ा छात्र आंदोलन शुरू हो जाएगा या शुरू करवा दिया जाएगा।उसके कारण सरकार भी जा सकती है।जो नेता सरकार के बदले अगली पीढि़यों की चिंता करेगा,वह परिवत्र्तन ला ही सकता है।
पर अब तो ऐसी समस्या लगभग पूरे देश में भी है।उसका क्या किया जाए ? 
 इस देश में जितने इंजीनियर तैयार हो रहे हैं,उनमें से 27 प्रतिशत ही ऐसे हैं जिन्हें नौकरी पर रखा जा सके।
 देश के कई  मेडिकल कालेजों से पढ़कर निकल रहे डाक्टरों के स्तर को देख कर भी कई लोग सवाल उठाते हैं ।  


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