‘विजय माल्या भगाओ अभियान’ में दो सरकारी संगठनों के कुछ अफसरों की भूमिका संदिग्ध लग रही है।
वे संगठन हैं सी.बी.आई.और स्टेट बैंक आॅफ इंडिया।
इनके संबंधित अफसरों का नार्को टेस्ट हो जाए तो पता चल जाएगा कि किस बड़ी हस्ती के कहने से या खुद अपने से उन अफसरों ने ऐसा काम किया ताकि विजय माल्या आसानी से देश छोड़ सके जिस पर बैंक का हजारों करोड़ रुपए लेकर नहीं लौटाने का आरोप है।
या फिर उन अफसरों का मात्र ‘एरर आॅफ जजमेंट’ था।
पर कठिनाई यह है कि नार्को टेस्ट ,ब्रेन मैपिंग और लाई डिटेक्टर जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में ही रोक लगा रखी है।
मुख्य न्यायाधीश के.जी.बालकृष्णन और न्यायमूत्र्ति आर.वी.रवीन्द्रण के पीठ ने 6 मई 2010 को यह कहा कि ऐसी जांच व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ है और इस तरह गैर संवैधानिक है।
सवाल है कि कोई व्यक्ति इस देश के खजाने का हजारों करोड़ रुपए लूट ले।उन रुपयों की कमी के कारण देश के अनेक लोग भूख से व दवा के बिना मर जाएं।उनकी जीने की स्वतंत्रता की अपेक्षा क्या माल्या जैसे लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता अधिक मूल्यवान है ?
सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर दिलाया जाए तो शायद पुराने जजमेंट को वह उलट दे।सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई जजमेंट को हाल में पलटा भी है।
इस 2010 के आदेश में संशोधन के लिए किसी को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करनी चाहिए।क्योंकि 2010 के निर्णय ने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को इस देश में बहुत नुकसान पहुंचाया है।
भले नार्को टेस्ट वगैरह की रिपोर्ट को कोर्ट सबूत के रूप में स्वीकार नहीं करता ,पर ऐसे टेस्ट से अन्य अपराधियों व सबूत तक पहुंचने की राह कई बार जांच एजेंसी को मिल जाती है।
अब इन सरकारी संगठनों के कारनामे देखिए।
1.-28 फरवरी, 2016 को स्टेट बैंक के विधि सलाहकार ने बैंक को सलाह दी कि एस.बी.आई.को चाहिए कि वह माल्या को देश छोड़ने से रोकने के लिए कोर्ट की शरण ले ।
लेकिन स्टेट बैंक ने इस संबंध में कुछ नहीं किया।
उधर 2 मार्च 2016 को माल्या ने देश छोड़ दिया।
2.-सी.बी.आई.ने 16 अक्तूबर 2015 को लुक आउट सर्कुलर जारी करते हुए मुम्बई पुलिस को कहा कि वह विजय माल्या को भारत छोड़ने से रोके।
पर,पता नहीं क्यों , 24 नवंबर 2015 को उसी सी.बी.आई.ने मुम्बई पुलिस के स्पेशल ब्रांच को कहा कि वह माल्या के सिर्फ आगमन-प्रस्थान की सूचना दे।
इस बारे में बाद में कभी सी.बी.आई ने कहा कि एरर आॅफ जजमेंट था तो कभी कहा कि माल्या को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे।
यह अच्छी बात है कि भारत सरकार माल्या को लंदन से वापस लाने के लिए ब्रिटेन के कोर्ट में जी- जान से लड़ रही है।
ऐसा कांग्रेस सरकार ने क्वत्रोचि के केस में कत्तई नहीं किया था जबकि उस पर आयकर भी बाकी था।
फिर भी नरेंद्र मोदी सरकार इस बात की कठोरता से जांच कराए कि सी.बी.आई.और स्टेट बैंक को किस राजनीतिक या गैर राजनीतिक हस्ती ने प्रभावित करके माल्या को भाग जाने की भूमिका तैयार की।
यदि सही जांच हो जाएगी तो मोदी सरकार की साख बढ़ेगी अन्यथा अगले चुनाव में जनता को जवाब देना कठिन होगा।
वे संगठन हैं सी.बी.आई.और स्टेट बैंक आॅफ इंडिया।
इनके संबंधित अफसरों का नार्को टेस्ट हो जाए तो पता चल जाएगा कि किस बड़ी हस्ती के कहने से या खुद अपने से उन अफसरों ने ऐसा काम किया ताकि विजय माल्या आसानी से देश छोड़ सके जिस पर बैंक का हजारों करोड़ रुपए लेकर नहीं लौटाने का आरोप है।
या फिर उन अफसरों का मात्र ‘एरर आॅफ जजमेंट’ था।
पर कठिनाई यह है कि नार्को टेस्ट ,ब्रेन मैपिंग और लाई डिटेक्टर जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में ही रोक लगा रखी है।
मुख्य न्यायाधीश के.जी.बालकृष्णन और न्यायमूत्र्ति आर.वी.रवीन्द्रण के पीठ ने 6 मई 2010 को यह कहा कि ऐसी जांच व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ है और इस तरह गैर संवैधानिक है।
सवाल है कि कोई व्यक्ति इस देश के खजाने का हजारों करोड़ रुपए लूट ले।उन रुपयों की कमी के कारण देश के अनेक लोग भूख से व दवा के बिना मर जाएं।उनकी जीने की स्वतंत्रता की अपेक्षा क्या माल्या जैसे लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता अधिक मूल्यवान है ?
सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर दिलाया जाए तो शायद पुराने जजमेंट को वह उलट दे।सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई जजमेंट को हाल में पलटा भी है।
इस 2010 के आदेश में संशोधन के लिए किसी को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करनी चाहिए।क्योंकि 2010 के निर्णय ने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को इस देश में बहुत नुकसान पहुंचाया है।
भले नार्को टेस्ट वगैरह की रिपोर्ट को कोर्ट सबूत के रूप में स्वीकार नहीं करता ,पर ऐसे टेस्ट से अन्य अपराधियों व सबूत तक पहुंचने की राह कई बार जांच एजेंसी को मिल जाती है।
अब इन सरकारी संगठनों के कारनामे देखिए।
1.-28 फरवरी, 2016 को स्टेट बैंक के विधि सलाहकार ने बैंक को सलाह दी कि एस.बी.आई.को चाहिए कि वह माल्या को देश छोड़ने से रोकने के लिए कोर्ट की शरण ले ।
लेकिन स्टेट बैंक ने इस संबंध में कुछ नहीं किया।
उधर 2 मार्च 2016 को माल्या ने देश छोड़ दिया।
2.-सी.बी.आई.ने 16 अक्तूबर 2015 को लुक आउट सर्कुलर जारी करते हुए मुम्बई पुलिस को कहा कि वह विजय माल्या को भारत छोड़ने से रोके।
पर,पता नहीं क्यों , 24 नवंबर 2015 को उसी सी.बी.आई.ने मुम्बई पुलिस के स्पेशल ब्रांच को कहा कि वह माल्या के सिर्फ आगमन-प्रस्थान की सूचना दे।
इस बारे में बाद में कभी सी.बी.आई ने कहा कि एरर आॅफ जजमेंट था तो कभी कहा कि माल्या को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे।
यह अच्छी बात है कि भारत सरकार माल्या को लंदन से वापस लाने के लिए ब्रिटेन के कोर्ट में जी- जान से लड़ रही है।
ऐसा कांग्रेस सरकार ने क्वत्रोचि के केस में कत्तई नहीं किया था जबकि उस पर आयकर भी बाकी था।
फिर भी नरेंद्र मोदी सरकार इस बात की कठोरता से जांच कराए कि सी.बी.आई.और स्टेट बैंक को किस राजनीतिक या गैर राजनीतिक हस्ती ने प्रभावित करके माल्या को भाग जाने की भूमिका तैयार की।
यदि सही जांच हो जाएगी तो मोदी सरकार की साख बढ़ेगी अन्यथा अगले चुनाव में जनता को जवाब देना कठिन होगा।
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