सोमवार, 24 सितंबर 2018

जब मैंने रजनीश का आॅटोग्राफ लिया !


संभवतः बात 1970 की है।पक्के तौर पर साल बता देता यदि नरेंद्र घायल से संपर्क हो पाता।
 तब चर्चित आचार्य रजनीश पटना आए थे।
गांधी मैदान में धर्म महा सम्मेलन हो रहा  था।
रजनीश सम्मेलन  मंच पर आए और अपनी पहली ही दो -चार पंक्तियों के बाद छा गए।
 मैं भी मंच के सामने वाले हिस्से में नीचे बैठा हुआ था।
रजनीश शुरू हुए,‘ मेरे आत्मन ! चांदनी रात थी। कुछ लोग नौका विहार को निकले।
गए नदी किनारे।नाव पर बैठ गए।लगे नाव खेने।
जब आधी रात हुई तो सोचा कि देखें हम कहां पहुंचे हंै तो वे हैरान रह गए।
नाव तो फिर भी किनारे खंूटे में ही बंधी थी।
 उसी तरह हम लोगों की बुद्धि की नाव आज धर्म के खूंटे से बंधी हुई है ।
इस तरह हम कहां पहुंचेंगे ?
मंच पर बैठे शंकराचार्य इस पर गरम हुए।उनके कुछ अनुयायियों ने रजनीश को बोलने से रोकने की कोशिश भी की।
 पर, शंकराचार्य ने जोर से कहा कि ‘बोलने दो !’
श्रोताओं के बीच से हम लोग ‘रजनीश जिन्दाबाद’ के नारे लगाने लगे।युवा समाजवादी मन जो था !
इस पर मंच पर बैठे अन्य धार्मिक गुरूओं को और भी खराब लगा।
शंकराचार्य के बोलने की बारी आई तो रजनीश ने कहा कि मैं आपके तर्कों का जवाब दूंगा।
आयोजक ने कहा कि अब आपको मौका नहीं मिलेगा।
इस पर रजनीश ने कहा कि फिर तो मैं आपका भाषण सुनने यहां नहीं बैठूंगा।
वे मंच से उतर गए।हमलोग भी सामने से पीछे गए और रजनीश को घेर कर खड़े हो गए।वे अपनी कार के पास थे।
कई लोग मांग करने लगे कि 
आपको कल से यहां प्रवचन करना चाहिए।
नरेंद्र घायल उनके साथ थे।तय हुआ कि कल से सिन्हा
लाइब्रेरी के प्रांगण में रजनीश का प्रवचन होगा।
होने लगा।कई दिनों तक चला।उन्हें सुनने कुछ बड़े नेता
भी जाते थे।
उनमें से मैं दारोगा प्रसाद राय और महेश प्रसाद सिन्हा को पहचानता था।मैं भी रोज जाता था।
कोई भीड़-भाड़ नहीं।कोई सुरक्षा नहीं।रजनीश करीब 45 मिनट बोलते थे।प्रवचन समाप्त होने के बाद हम अतृप्त रह जाते। ऐसा लगता था जैसे कोेई व्यक्ति सुस्वादु भोजन के बाद अंगूठा चाटता हुआ उठे।
एक दिन मैं उनके पास चला गया।मैंने अपना आॅटोग्राफ बुक उनके सामने बढ़ा दिया।उन्होंने उस पर कुछ लिख दिया जिसे मैं पढ़ नहीं पा रहा था।मैंने पूछा,यह आपने  क्या लिख दिया ?उन्होंने कहा,‘रजनीश का  प्रणाम !’
मैंने उसे संजो कर रखा था।
सोचा आपसे शेयर करूं।
आचार्य रजनीश की उस पटना यात्रा के जो प्रत्यक्षदर्शी हमारे बीच उपलब्ध  हांे और वे कुछ और बता सकें तो मैं आभारी रहूंगा।
 संभवतः आचार्य रजनीश राजेंद्र नगर में किन्हीं वरीय प्रोफेसर के अतिथि थे।मेरे काॅफी हाउस के परिचित नरेंद्र घायल भी वहीं आसपास रहते थे।वे रजनीश का साथ दे रहे थे।
मुझे लगता था कि घायल जी भाग्यशाली हैं।  
 उस घटना के बाद तो मैं रजनीश पर मोहित हो गया था।पर बाद में उम्र बढ़ने और कई तरह की बातें सुनने के बाद मैं तटस्थ हो गया।पर प्रशंसा के भाव आज भी हैं।
उनके खिलाफ प्रकाशित गोविन्द सिंह की भी एक पुस्तक पढ़ी।एकतरफा है।
पर, कुल मिलाकर यह जरूर कहूंगा कि रजनीश ऐसा विलक्षण व तार्किक वक्ता मैंने अन्यत्र नह देखा न सुना।

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