‘मेरे जीवन में अंधेरा छा गया।’यही कहा था कि आयुक्त स्तर के आई.ए.एस.अफसर रहे के. अरुमुगम ने ।करीब दस साल पहले की बात है।वे चारा घोटाले से संबंधित मुकदमे की सुनवाई के सिलसिले में अपने गृह राज्य तमिल नाडु से रांची अदालत में पहुंचे थे।
बिहार सरकार के पशुपालन विभाग के सचिव रहे अरूमुगम को चारा घोटाले में 2013 में तीन साल की सजा हुई।ढाई साल तक जेल में रहे और अर्थाभाव व उपेक्षा के बीच कुछ ही साल पहले चीफ सेके्रट्री बनने का सपना लिए इस दुनिया से चले गए।
अब भी इस घोटाले में जेल में बंद अनेक नेता, अफसर, आपूत्र्तिकत्र्ता खुद और उनके परिजन कष्ट ,अर्थाभाव व उपेक्षा झेल रहे हैं।फिर भी आश्चर्य है कि बिहार में या यूं कहिए कि पूरे देश में भ्रष्टाचार कम ही नहीं हो रहा है।
कभी सृजन घोटाला सामने आ रहा है तो कभी मुजफ्फर पुर आसरा गृह घिनौना कांड।ताजा खबर यह है कि बिहार के खगडि़या जिले के एक मजदूर बलराम साह के बैंक खाते में करीब 99 करोड़ रुपए पाए गए।
किसी दलाल ने कुछ समय पहले बैंक लोन दिलाने के बहाने बलराम से पास बुक ले लिया था।तब उसके खाते में मात्र 59 रुपए थे।
सवाल है कि घोटालेबाजों को अपना धंधा जारी रखने की यह ताकत कहां से मिल रही है ? नेताओं से,अफसरों से या फिर पूरा सिस्टम ही इसके लिए जिम्मेदार है ?
ऐसे में बिहार के चर्चित चारा घोटाले की एक बार फिर चर्चा मौजू है।
चारा घोटाले में अनेक बड़े नेताओं के साथ -साथ करीब आधा दर्जन आई.ए.एस.अफसरों को निचली अदालत से सजा हो चुकी है।इस संबंध में दायर अन्य मुकदमांे की सुनवाई हो ही रही है।
इसके बावजूद अन्य मामलों में बाद के वर्षों में अन्य आई.ए.एस.अफसर भी जेल जाते रहे हैं।यानी कई लोग कोई सबक लेने को तैयार ही नहीं हंै।
भ्रष्टाचार से मिल रहे आसान पैसों का आकर्षण तो देखिए !
चारा घोटाले के सिलसिले में जितने लोग अभी जेल में हैं,उनमें से कुछ लोग बीमार हैं।उनमें से कुछ लोग चारों तरफ से उपेक्षा के भी शिकार है।
कुछ अन्य लोगों के परिवार बिखर गए।
कुछ आरोपी असमय गुजर गए।कुछ ने आत्म हत्या कर ली।
घोटाले के मुख्य अभियुक्त के पुत्र की असमय मृत्यु हो गयी क्योंकि जांच एजंेसी की पूछताछ वह बर्दाश्त नहीं कर सका।
पुत्र के शोक में मुख्य अभियुक्त का भी असमय निधन हो गया।
कई आरोपितों व सजायाफ्ताओं के परिवार की शादियां टूट गयीं।परिवार बिखर गए।
मित्र कन्नी काटने लगे।
नाजायज ढंग से कमाए धन अदालती चक्कर में समाप्त हो गए।
इसमें अरूमुगम की कहानी दर्दनाक रही।
निधन से पहले उन्होंने कहा था कि चारा घोटाले में नाम आते ही मेरी दुनिया बदल गयी।
अरूमुगम को तीन साल की सजा हुई थी।
बाद में जमानत पर छूटे थे।
अरूगुगम ने बताया था कि लंबे कारावास के कारण मोतियाबिंद का समय पर आपरेशन नहीं हो सका।नतीजतन मेंरी एक आंख जाती रही।
रख रखाव के अभाव में मेरी निजी कार रखी -रखी सड़ गयी।
मेरे पास उसे रखने की कहीं जगह नहीं थी।
कबाड़ी में बेचना पड़ा।
जेल से बाहर आने के बावजूद मेरा निलंबन नहीं उठा।
यह सब कतिपय बड़े अफसरों के द्वेषवश हुआ जो मुझे मुख्य सचिव नहीं बनने देना चाहते थे।
रिटायर होने के बाद केस की सुनवाई के लिए मुझे अक्सर तमिलनाडु से रांची आना पड़ता था।
रांची में एक छोटे से कमरे में रहता था जो मेरे एक मित्र से मिला था।ढाबे में खाना खाता था।
कभी- कभी चूड़ा दूध खाकर काम चला लेता था।मुकदमों ने धन और चैन दोनों छीन लिए।मेरे जीवन में अंधेरा छा गया।
याद रहे कि पूर्व मुख्य मंत्री द्वय लालू प्रसाद व डा.जगन्नाथ मिश्र सहित कुछ अन्य आइ.ए.अफसरों को भी सजाएं हुई हैं।
उनकी भी दुनिया बदल चुकी है।नेता लोग तो ऐसे भी राजनीतिक आंदोलनों के सिलसिले में जेल यात्राओं के अभ्यस्त होते हैं।
पर किसी आई.ए.एस. के तो सपने ही कुछ और होते हैं।
उनके ईर्दगिर्द एक अजीब प्रभामंडल रहता है।खुद अरूमुगम भी मुख्य सचिव बनने के सपना देख रहे थे।पर उनकी गलतियों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा।
चारा घोटालेबाजों के कष्टों को देखते हुए पहले यह माना जा रहा था कि अब गलत ढंग से सरकारी खजाने से पैसे निकालने से पहले कोई हजार बार सोचेगा।
पर नहीं।पिछले वर्ष भागल पुर से यह खबर आई कि वहां के सरकारी खजाने से अरबों रुपए इधर से उधर कर दिए गए।
आरोप है कि प्रभावशाली नेताओं के संरक्षण में ही वह घोटाला हुआ जो सृजन घोटाले के नाम से जाना जाता है।सी.बी.आई.उसकी भी जांच कर रही है।
ऐसी घटनाओं से एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है ।सवाल यह कि नये घोटालेबाज उन सजाओं से भी नहीं डर रहे हैं जो पिछले घोटालों के आरोपितों को मिलती जा रही है ?
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ?
@मेरा यह लेख फस्र्टपोस्ट हिन्दी में 24 सितंबर 2018 को प्रकाशित हुआ@
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