पटना में जारी ‘अतिक्रमण हटाओ अभियान’ के संदर्भ में
करीब छह साल पहले का सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय प्रासंगिक है।
महा नगरों में अवैध निर्माण की समस्या पर वह निर्णय था।
न्यायाधीश जी.एस.सिंघवी और न्यायाधीश एस.जे.मुखोपाध्याय के खंडपीठ ने 10 अक्तूबर, 2012 को कहा कि ‘अवैध निर्माण रोकने के लिए इसे ध्वस्त करने का आदेश ही काफी नहीं है,बल्कि ऐसे लोगों को दंडित करना भी जरूरी है।
अवैध निर्माण न सिर्फ योजनागत विकास की अवधारणा को चैपट करता है बल्कि पानी, बिजली और सिवरेज की बुनियादी सुुविधाओं पर भी असहनीय बोझ डालता है।
खंडपीठ ने अपना कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि इससे सिर्फ कानून का ही उलंघन नहीं होता बल्कि कई संवैधानिक और मौलिक अधिकारों का भी हनन होता है।ऐसी इमारतें लोगों के लिए खतरा तो है ही ,इनसे ट्राफिक की समस्या भी पैदा होती है।महा नगरों की आॅथरिटीज का यह फर्ज है कि वे न केवल ऐसी इमारतें ध्वस्त करंे ,बल्कि उन्हें बनाने वालों पर कठोर जुर्माना भी लगाए।
@20 सितंबर 18@
करीब छह साल पहले का सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय प्रासंगिक है।
महा नगरों में अवैध निर्माण की समस्या पर वह निर्णय था।
न्यायाधीश जी.एस.सिंघवी और न्यायाधीश एस.जे.मुखोपाध्याय के खंडपीठ ने 10 अक्तूबर, 2012 को कहा कि ‘अवैध निर्माण रोकने के लिए इसे ध्वस्त करने का आदेश ही काफी नहीं है,बल्कि ऐसे लोगों को दंडित करना भी जरूरी है।
अवैध निर्माण न सिर्फ योजनागत विकास की अवधारणा को चैपट करता है बल्कि पानी, बिजली और सिवरेज की बुनियादी सुुविधाओं पर भी असहनीय बोझ डालता है।
खंडपीठ ने अपना कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि इससे सिर्फ कानून का ही उलंघन नहीं होता बल्कि कई संवैधानिक और मौलिक अधिकारों का भी हनन होता है।ऐसी इमारतें लोगों के लिए खतरा तो है ही ,इनसे ट्राफिक की समस्या भी पैदा होती है।महा नगरों की आॅथरिटीज का यह फर्ज है कि वे न केवल ऐसी इमारतें ध्वस्त करंे ,बल्कि उन्हें बनाने वालों पर कठोर जुर्माना भी लगाए।
@20 सितंबर 18@
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें